योगी के बाद अब रघुवर के गृह क्षेत्र में 60 बच्चों की मौत

तीन सदस्यीय टीम पहुंची अस्पताल, की जांच जमशेदपुर /रांची. जमशेदपुर के महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज में पिछले 30 दिनों में 60 बच्चों की मौत हो गयी. सभी बच्चे कुपोषित थे. इन कुपोषित बच्चों को गंभीर स्थिति में अस्पताल के सीसीयू में भरती कराया गया था. बच्चों की मौत को विभाग ने गंभीरता से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 26, 2017 7:52 AM
तीन सदस्यीय टीम पहुंची अस्पताल, की जांच
जमशेदपुर /रांची. जमशेदपुर के महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज में पिछले 30 दिनों में 60 बच्चों की मौत हो गयी. सभी बच्चे कुपोषित थे. इन कुपोषित बच्चों को गंभीर स्थिति में अस्पताल के सीसीयू में भरती कराया गया था. बच्चों की मौत को विभाग ने गंभीरता से लिया है.
जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम गठित की है. टीम में डायरेक्टर मेडिकल एंड एजुकेशन डॉ एएन मिश्रा, रीजनल डिप्टी डायरेक्टर डॉ हिमांशु भूषण और सिविल सर्जन डॉ केसी मुंडा शामिल हैं. टीम के सदस्यों ने शुक्रवार को अस्पताल पहुंच कर मामले की जांच की. एनआइसीयू, पीआइसीयू व वार्ड में चार माह में हुई बच्चों की मौत को लेकर बीएचटी व डाटा इंट्री की जांच की. बच्चों की उम्र, मौत के कारण और इलाज की सुविधा की जानकारी भी ली. बच्चा वार्ड के प्रभारी और नर्स से पूछताछ की. जांच के क्रम में टीम ने पाया कि अस्पताल में बच्चों की मौत से संबंधित आंकड़े ठीक नहीं है. बीएचटी में बच्चों की उम्र कुछ और डाटा इंट्री में कुछ और दर्ज है. इससे आंकड़ा निकालने में परेशानी हुई. स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि एक हजार में 25 बच्चों की मौत होती है, तो यह मान्य है. पर यहां तो मौत का आंकड़ा काफी अधिक है, जो चिंता का विषय है.
एनआइसीयू में चार माह में 112 बच्चे की मौत : अस्पताल में मई से अगस्त के दौरान एनआइसीयू, पीआइसीयू व वार्ड में विभिन्न रोगों से ग्रस्त 1867 बच्चों को भरती किया गया था. इनमें 164 बच्चे की मौत हो गयी. एनआइसीयू में सबसे अधिक 112 बच्चों की मौत ( कुल 343 बच्चे भरती थे) हुई. अगस्त में इन तीनों जगहों पर कुल 470 बच्चों को भरती कराया गया था, जिनमें 41 बच्चों की मौत हो चुकी है. पीआइसीयू में 110 बच्चों में 31 और वार्ड में 1410 में 21 बच्चों की मौत हो गयी.
क्या है कारण: टीम ने जांच में पाया कि अस्पताल में हर माह बच्चों के भरती होने की संख्या बढ़ रही है. उसी अनुपात में मौत का आंकड़ा भी बढ़ रहा है. एनआइसीयू में शून्य से 28 दिन के बच्चों को रखा जाता है. सबसे अधिक मौत एनआइसीयू में ही हुई है. इस अस्पताल में बंगाल, ओड़िशा सहित पूरे कोल्हान के लोग अपने बीमार बच्चे का इलाज कराने आते हैं. टीम ने पाया कि पहले यहां पीआइसीयू व एनआइसीयू नहीं रहने के कारण गंभीर बच्चों को दूसरे अस्पतालों में भेज दिया जाता था. लेकिन अब वैसे बच्चों का भी यहां इलाज किया जाता है. इससे भी बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़ा है. बच्चों की मौत का मुख्य कारण उनका तय समय से पहले जन्म लेना, मां के कमजोर होने और उनमें खून की कमी होने से बच्चों का भी कमजोर होना शामिल है. ऐसे बच्चों को बचा पाना चुनौती भरा होता है.
कुपोषण की वजह से मौत : डॉ मिश्र
जांच दल में शामिल निदेशक मेडिकल एजुकेशन डॉ एएन मिश्र ने कहा, अब तक की जांच से पता चला है कि बच्चों की मौत कुपोषण से ही हुई है. गर्भवती मां अस्पताल में जाकर एएनसी नहीं कराती, जिस कारण उन्हें सही खुराक नहीं मिल पाती. टेटेनस की सुई नहीं मिल पाती. जन्म के बाद भी नवजात को जो टीका मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता. नतीजतन बच्चों की स्थिति जब बिगड़ जाती है, तब अस्पताल लेकर आते हैं.
निदेशक प्रमुख को भेजा गया
बच्चों की मौत की खबर पर स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी के निर्देश पर निदेशक प्रमुख डॉ सुमंत मिश्र तत्काल पहुंचे और एमजीएम अस्पताल में जांच की.
दोषी पर होगी कार्रवाई
निदेशक प्रमुख डॉ सुमंत मिश्रा ने कहा : बच्चों की मौत के कारणों का पता लगाया जा रहा है. अभी तक की जांच में यह बात सामने आयी है कि जिले में संस्थागत प्रसव बढ़ा है. पहले बच्चे की मौत हो जाती थी, तो पता ही नहीं चलता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. संस्थागत प्रसव के बाद बच्चे की स्थिति खराब होने पर उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और उसके बाद अस्पताल भेजा जा रहा है. उन्होंने कहा, सरकार गर्भवती महिलाओं के लिए कई योजनाएं चला रही है. लेकिन जागरूकता के अभाव में गर्भवती महिलाएं इसका लाभ नहीं उठा पाती हैं. इससे विटामिन की पूरी खुराक नहीं मिल पाती है, जिससे कमजोर हो जाती है. इससे बच्चे भी कमजोर व कुपोषित पैदा हो रहे हैं. जांच टीम ने रिपोर्ट तैयार कर ली है. इसकी जांच की जायेगी. जो भी दोषी पाया जायेगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.

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