सेमिनार में झारखंड समेत ओडिशा व बंगाल आये समाज के बुद्धिजीवी व प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखा. वक्तओं ने कहा कि आधुनिक की चकाचौंध में हजारों वर्षों से चली आ रही पारंपरिक रूढ़ि व प्रथा को कुछ लोग भूल रहे हैं जो चिंता का विषय है. पूरा विश्व बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से चिंतित है. लेकिन आदिवासी ही एक मात्र समुदाय है जो निरंतर पर्यावरण को बचाने का काम कर रहा है. वर्तमान समय में भी पेड़-पौधे वहीं बचे हुए हैं जहां आदिवासी समुदाय रह-निवास कर रहे हैं. प्रकृति ही जीवन का आधार है, अंधी विकास की दौड़ से हमें दूर रहना चाहिए. पारंपरिक रूढ़ि व प्रथा हमें प्रकृति से प्रेम करना सीखाती है. लेकिन आधुनिक व्यवस्था इसे खत्म करना सीखाती है.
उन्होंने कहा कि समाज को एकसूत्र में बांधे रखने के लिए शैक्षणिक स्थिति को मजबूत करने की जरूरत है. शिक्षा ही एकमात्र हथियार है जो सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक हर दृष्टिकोण से हमें मजबूती प्रदान करेगा. किसी बाहरी प्रभाव से बचने का प्रयास करने की जरूत है. संविधान निर्माण के साथ ही आदिवासी समुदाय को संविधान में विशेष अधिकार प्रदान किया गया है. अब समाज के हर व्यक्ति को हक व अधिकार के लिए एकजुटता होना होगा. सेमिनार में विभिन्न राज्यों से आये पोनोत पारगाना को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने क्षेत्र में देश, तोरोफ व पीढ़ परगाना के साथ मिलकर माझी बाबा के माध्यम से समाज के लोगों को पारंपरिक व्यवस्था की महत्ता व संवैधानिक अधिकारों से अवगत कराये. इसे अभियान के रूप में लें.
तीनों राज्यों के आदिवासियों ने झारखंड का गलत स्थानीय नीति का विरोध किया. गलत स्थानीय नीति व भूमि अधिग्रहण बिल संशोधन को वापस लेने के लिए आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया. भारोत जाकात माझी पारगाना माहाल का चौथा महासम्मेलन 16-17 दिसंबर को झारखंड प्रदेश में होगा. सेमिनार में दिशोम परगाना बाबा नित्यानंद हेंब्रम, भारोत दिशोम जोगो पारगाना बैजू मुर्मू, दिशोम गोडेत रामचंद्र मुर्मू, पोनोत जोगो पारगाना दासमात हांसदा, बंगाल पोनोत जोगो पारगाना राबोन दास हेंब्रम, किंझीर दिशोम देश परगाना सोमरा सोरेन, श्रीकांत हांसदा, हरिपोदो मुर्मू, बाबूलाल हेंब्रम, लालजी मुर्मू, सुफाल मुर्मू, शंखो मुर्मू, रामजी बेसरा, प्रोफेसर गुमदा टुडू, अरविंद टुडू, लालदेव सोरेन, माझी बाबा दुर्गा चरण मुर्मू समेत विभिन्न गांवों के माझी बाबा मौजूद थे.