जमशेदपुर : हाथियों के लिए दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी पूरे देश में जाना जाता है. लेकिन अब दलमा से हाथी भी रुखसत होने लगे है. हालात यह है कि वन विभाग की अकर्मण्यता के कारण दलमा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण, आदमी की लगातार होने वाली आवाजाही, सुवर्णरेखा परियोजना के निर्माण समेत वन विभाग की ओर से लगातार दलमा में किये जा रहे ढांचागत निर्माण के कारण हाथियों का आना-जाना मुश्किल हो गया है.
हालात यह है कि नवंबर माह तक हाथी अपने माइग्रेशन का वक्त पूरा करने के बाद बंगाल की ओर से आ जाते थे और जनवरी और मार्च तक रहते थे, लेकिन अब एक साल से यह बदलाव दिख रहा है कि जनवरी तक हाथी यहां आते है और फिर मार्च में ही बंगाल की ओर चले जाते है.
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वन अधिकारियों का कहना है कि पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर जगह-जगह डैम बनाये गये हैं. डैम की वजह से वहां हमेशा फसलें लहलहाती रहती हैं. हाथियों के लिए पानी व भोजन पर्याप्त मात्रा में मिलने के कारण हाथी पश्चिम बंगाल के अयोध्या पहाड़, बांकुड़ा, पुरुलिया आदि इलाके में रह जाते हैं. रेंजर इसके अलावा पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सीमा क्षेत्र में हाथीरोधी ट्रेंच का निर्माण कर दिया है, जिसके कारण भी हाथी दलमा की ओर नहीं आ पा रहे हैं. दलमा में हाथियों के नहीं आने से वन विभाग के अधिकारी भी चिंतित हैं.
सरकारी बेरुखी भी बनी वजह. हाथियों के लिए संरक्षित दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी को सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने दलमा को इको सेंसेटिव जोन घोषित कर दिया है. इसमें धड़ल्ले से वाहनों का आना-जाना, बड़े-बड़े बिल्डिंग का बनना, बड़े-बड़े हैलोजन बल्ब, क्रशर, गोदाम, पत्थर का उत्खनन आदि हाथियों के लिए बेरुखी का कारण बनता जा रहा है. बड़ी बिल्डिंग व सड़क किनारे चकाचौंध रोशनी हाथियों को पसंद नहीं है. दलमा के कोर क्षेत्र में हाथियों का सबसे पसंदीदा खाना महुलान का पत्ता बड़े पैमाने पर पाया जाता है.
जनवरी तक आयेंगे हाथी : आरपी सिंह
हाथी जनवरी तक जरूर आयेंगे. स्थिति को और बेहतर करने की कोशिश हो रही है, लेकिन बंगाल से रास्ता रोके जाने के कारण परेशानी हो रही है. हम लोगों ने मुद्दा उठाया है और दलमा के आबोहवा को भी और बेहतर कैसे किया जा सकता है, इसके लिए काम कर रहे है.
आरपी सिंह, रेंजर, दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी