यूनियन से ज्यादा लोगों को कैसे जोड़ा जाये, इसकी कोशिश होनी चाहिए
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पदाधिकारी का चुनाव लड़ने का दबाव बनाने वालों को समझायेंगे : डिंडा
यूनियन से ज्यादा लोगों को कैसे जोड़ा जाये, इसकी कोशिश होनी चाहिए जमशेदपुर : टाटा वर्कर्स यूनियन में 34 साल से सक्रिय महामंत्री बीके डिंडा सात माह बाद रिटायर होने वाले हैं. इस बार के चुनाव में वे इसलिए चर्चा में हैं, क्योंकि उन्होंने पहले कमेटी मेंबर या पदाधिकारी का चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा […]
जमशेदपुर : टाटा वर्कर्स यूनियन में 34 साल से सक्रिय महामंत्री बीके डिंडा सात माह बाद रिटायर होने वाले हैं. इस बार के चुनाव में वे इसलिए चर्चा में हैं, क्योंकि उन्होंने पहले कमेटी मेंबर या पदाधिकारी का चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा नहीं की थी, लेकिन कमेटी मेंबर का चुनाव लड़े. अब उन पर अध्यक्ष या महामंत्री पद का चुनाव लड़ने का दबाव बनाया जा रहा है. यूनियन से जुड़े लोगों को उनसे काफी उम्मीदें हैं. श्री डिंडा ने ‘प्रभात खबर’ से अपनी भावी रणनीति व आगे क्या करने वाले हैं, इस पर बात की.
सवाल : टाटा वर्कर्स यूनियन में आगे आपकी क्या भूमिका रहेगी?
जवाब : हम चाहेंगे कि स्वच्छ छवि के मजदूरहित में काम करने लोग यूनियन में आयें. टाटा वर्कर्स यूनियन 1920 से चल रही है. इसकी अपनी गरिमा है. युवा जरूर आगे आयें. इस बार कम लोगों ने नामांकन पत्र लिया. यह दर्शाता है कि यूनियन के प्रति लोगों का झुकाव या विश्वास कम हो रहा है. यह खतरे का संकेत है. कभी लोग 1100 तक नामांकन पत्र लेते थे. इससे पहले कभी भी 900 से कम नामांकन पत्र नहीं लिये गये, लेकिन इस बार करीब 500 लोग ही सामने आये. यूनियन से ज्यादा से ज्यादा लोगों को कैसे जोड़ा जाये, इसकी कोशिश होनी चाहिए. टाटा वर्कर्स यूनियन सबसे बड़ी लोकतांत्रिक यूनियन है.
सवाल : आप पर अध्यक्ष व महामंत्री पद से चुनाव लड़ने का दबाव है, आप क्या सोचते हैं ?
जवाब : मेरे काफी वेलविशर (शुभचिंतक) हैं. पिछले 34 सालों से मुझे सिर आंखों पर बैठा कर रखा. महामंत्री पद तक पहुंचाया. इसका एहसान वे उतार नहीं सकते हैं. अपने कार्यकाल में हमने मजदूरहित में काम करने की कोशिश की. हमारे शुभचिंतक हमेशा चाहेंगे कि मैं यूनियन में रहूं. लेकिन मेरे पास सात माह का ही समय है. यूनियन चलाने के लिए काफी समय की जरूरत पड़ती है. कई अनुभवी व नये लोग हैं, जो महामंत्री का पद संभाल सकते हैं. मैं अब तक रहा. एक जायेगा तो दूसरा आयेगा. आज भी लोग मेरे बारे में सोच रहे हैं, इसके लिए मैं उनका आभारी हूं.
सवाल : पहले आपने कमेटी मेंबर का भी चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन नामांकन भरा और निर्विरोध हो गये. अब अध्यक्ष या महामंत्री के पद के लिए दबाव आयेगा तो क्या तैयार नहीं होंगे?
जवाब : हम सबको समझाने की कोशिश करेंगे. केवल भावना से प्रेरित होकर संस्था नहीं चलती. संस्था के हित में भी सोचना चाहिए. संस्था के हित में सोचकर ही मैंने पदाधिकारी का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है.
सवाल : मजदूरहित को रोकने में मैनेजमेंट अड़ंगा आता है?
जवाब : टाटा मैनेजमेंट ने कभी ऐसा नहीं किया है. अच्छा बुरा हर दिन देखा है. लेकिन कोई दबाव ऐसा नहीं होता है. इससे यूनियन को कभी दिक्कत की स्थिति पैदा नहीं हुई. चुनाव में भी मैनेजमेंट का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है.
सवाल : आपके रिटायरमेंट के बाद क्या होगा ?
जवाब : हम वर्तमान में करीब 19 जगहों पर यूनियन से जुड़े हुए हैं. हम वहां समय नही दे पाते थे. अब वहां समय देने की कोशिश करेंगे.
सवाल : टाटा स्टील के कर्मचारी या कमेटी मेंबर को कैसा नेतृत्व चुनना चाहिए ?
जवाब : जो स्वच्छ छवि का हो, मजदूर हित में काम करने वाला हो, मिलनसार और आसानी से लोगों से संपर्क कर सके, वैसे व्यक्ति को चुनना चाहिए. नेतृत्वकर्ता को हर तरह से ईमानदार होना चाहिए. जो मजदूर के साथ भी न्याय करे व अन्याय का विरोध कर सके. स्पष्ट वक्ता होना चाहिए. कथनी और करनी में फर्क नहीं होना चाहिए.
सवाल : वेज रिवीजन जैसे मुद्दा को सोचकर वोट देना चाहिए ?
जवाब : वेज रिवीजन करना यूनियन का काम है. यह बड़ा काम जरूर है, लेकिन अगर कोई एक या दो बार के समझौता का अध्ययन कर लेगा तो बहुत बड़ा काम नहीं होगा. ग्रेड रिवीजन आर्ट है. कलेक्टिव बारगेनिंग का हिस्सा है. अगर बेहतर समझ वाला व्यक्ति होगा, समय देगा तो आदमी कोई भी वेज रिवीजन कर सकता है.
नेतृत्वकर्ता को हर तरह से ईमानदार होना चाहिए. जो मजदूर के साथ भी न्याय करे व अन्याय का विरोध कर सके
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