टाटा उद्योग समूह के संस्थापक जमशेदजी नौसेरवान जी टाटा की 179वीं जयंती आज भव्यता से मनायी जा रही है.इसमौके पर हर साल की तरह जमशेदजी टाटा के सपनों का शहर जमशेदपुर उन्हें खास ढंग से श्रद्धांजलि दे रहा है.
यह जमशेदजी कीदूरदृष्टि ही थी, जिसपरकामकर उन्होंने गुलाम भारत में स्वदेशी का झंडा उठाते हुए औद्योगिक भारत की नींव रखी. और इसका केंद्र बना जमशेदपुर. कैसे? आइए जानें-
थॉमस कारलाइलकावह भाषण
स्कॉटलैंड के प्रसिद्ध दार्शनिक और लेखक थॉमस कारलाइल ने अपने एक भाषण में कहा था – जिस देश का लोहे पर नियंत्रण हो जाता है, उसकाजल्द ही सोने पर नियंत्रण हो जाता है. इंग्लैंड के मैनचेस्टर में दिये उनके इस भाषण को सुनकर एक नौजवानबड़ा प्रभावित हुआ. उसने अपने व्यापार को एक नयी दिशा दी और आगे चल कर वह भारत के औद्योगिक विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गया. यह नौजवान काेई और नहीं जमशेदजी नौसेरवान जी टाटा था.
शुरुआती जीवन
जमशेदजी टाटा का जन्म दक्षिणी गुजरात के नवसारीमें एक पारसी परिवार में 3 मार्च 1839 को हुआ था. उनके पिता का नाम नौसेरवानजीऔर माता का नाम जीवनबाई टाटा था. नौसेरवानजी अपने खानदान में अपना व्यवसाय करने वाले पहले व्यक्ति थे. केवल 14 वर्ष कीउम्र में ही जमशेदजी अपने पिता के साथ बंबई चले गये और व्यवसाय में कदम रखा. छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने पिता का साथ देना शुरू कर दिया था.
कॉलेज, डिग्री और शादी
जमशेदजी जब 17 साल के थे, तब उन्होंने मुंबई के एलिफिंसटन कॉलेज में प्रवेश लिया और दो वर्ष बाद सन 1858 में ग्रीन स्कॉलर स्नातक की डिग्री लेकर निकलेऔर पिता के व्यवसाय में पूरी तरह लग गये. इसके बाद इनका विवाह हीरा बाई दबू के साथसंपन्न हुआ.
कारोबारकीबारीकियां
कारोबारकीबारीकियां जानने के लिए जमशेदजी ने इंग्लैंड, अमेरिकाऔर चीन सहित कई देशों की यात्राएं की. इन जगहों पर उन्होंने काफी प्रायोगिक ज्ञान हासिल किया. इन यात्राओं से जमशेदजी को यह अनुभव हो गया कि ब्रिटिश आधिपत्य वाले कपड़ा उद्योग में भारतीय कंपनियां भी सफल हो सकती हैं. बताते चलें कि तब के जमाने में केवल यूरोपीय, और खास तौर पर अंग्रेज ही उद्योग स्थापित करने में कुशल समझे जाते थे.
21 हजार की पूंजी से शुरुआत
29 साल की उम्र तक जमशेदजी ने पिता की कंपनी में काम कियाऔर फिर उसके बाद वर्ष 1868 में 21 हजार की पूंजी से एक व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित किया.वर्ष 1869 में उन्होंने एक दिवालिया तेल मिल खरीदी और उसे एक कॉटन मिल मेंबदलकर उसका नाम एलेक्जेंडर मिल रख दिया. इसके दो साल बाद जमशेदजी ने इस मिल को अच्छे-खासे मुनाफे के साथ बेच दिया. इन्हीं रुपयों से उन्होंने वर्ष 1874 में नागपुर में एक कॉटन मिल स्थापित की. इस मिल का नाम उन्होंने एम्प्रेस मिल रखा.
धैर्य और निष्ठा का साथ
कारोबार की शुरुआत में जमशेदजी को कई मुश्किलाें का सामना करना पड़ा. लेकिन वे बिना घबराये, धैर्य और निष्ठा के साथ अपने काम में लगे रहे. उन्होंने अपने कारखानों में नयी तकनीकों और नयी मशीनों का प्रयोग किया. उद्योग स्थापना के मूल में स्वदेशी वस्तुओं के ज्यादा से ज्यादाइस्तेमाल की भावना काम कर रही थी.
देश प्रेम की भावना
जमशेदजी भारत में मौजूद प्रकृतिक संपदा और पूंजी का उपयोग भारत में ही करने के पक्षधर थे. ‘स्वदेशी मिल लिमिटेड’ नामक मिल की स्थापना के पीछे भी यही देश प्रेम की भावना काम कर रही थी. वे भारतीय उद्योग को विश्व व्यापार में सम्मानित स्थान दिलाना चाहते थे. जमशेदजी मानते थे कि आर्थिक स्वतंत्रता ही राजनीतिक स्वतंत्रता का आधार है. दादाभाई नौरोजी और फिरोजशाह मेहता जैसे अनेक राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी नेताओं से उनके नजदीकी संबंध थे और दोनों पक्षों ने अपनी सोच और कार्यों से एक दूसरे को बहुत प्रभावित किया था.
ऐसे पूरे हुए सपने
जमशेद जी के जीवन के बड़े लक्ष्य थे – एक स्टील कंपनी खोलना, एक विश्व प्रसिद्ध अध्ययन केंद्र स्थापित करना, एक अनूठा होटल खोलना और एक जलविद्युत परियोजना लगाना. हालांकि उनके जीवनकाल में इनमें से केवल एक ही सपना पूरा हो सका, होटल ताज महल की स्थापना. बाकी परियोजनाओं को उनकी आने वाली पीढ़ियों ने पूरा किया. होटल ताज महल दिसंबर 1903 में 4,21,00,000 रुपये के खर्च से तैयार हुआ. उस समय यह भारत का एकमात्र होटल था, जहां बिजली की व्यवस्था थी. इस होटल की स्थापना उनकी राष्ट्रवादी सोच का गवाह है. गौरतलब है कि भारत में उन दिनों भारतीयों को बेहतरीन यूरोपियन होटलों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी. ताजमहल होटल का निर्माण कर उन्होंने अंग्रेजों की इस दमनकारी नीति काे करारा जवाब दिया था.
आयरन एंड स्टील मिल्स की शुरुआत
नागपुर कपड़ा मिल की स्थापना के मात्र तीन साल बाद ही वर्ष 1880 में जमशेद जी के मन में इस्पात उद्योग लगाने की इच्छा हुई. लेकिन अंग्रेज सरकार से इतने बड़े उद्योग को स्वीकृत कराना आसान नहीं था. इसके लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. अंततः कई वर्षों के संघर्ष के बाद उन्हें सरकार की तरफ से अनुमति मिल गयी. अभी खनिज सर्वेक्षण का कार्य चल ही रहा था, कि जमशेद जी का देहांत हो गया. जमशेद जी के बाद उनके बेटे दोराब जी टाटा अौर रतन जी टाटा ने पिता के अधूरे सपनों को पूरा किया. वर्ष 1907 में लोहा और इस्पात के कारखाने की स्थापना के साथ ही जमशेदजी टाटा काबड़ा सपना पूरा हुआ. तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) में साकची गांव के घने जंगलों को साफ कर टाटा आयरन एंड स्टील मिल्स का कारखाना शुरू किया गया. ऊंघता हुआ साकची गांव देश का पहला प्लान्ड शहर बन गया. अब यह क्षेत्र एक महानगर के रूप में बदल गया है, जिसका नाम उन्हीं के नाम पर जमशेदपुर रखा गया है.
यह दूरदृष्टि थी जमशेदजी की. देश केअसल स्टार्टअपमैन को हमारा सलाम.