गाय-भैंस का टेस्ट करने वाली लैब में बाघों के खून की जांच

जमशेदपुर : टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क (चिड़ियाघर) में बाघों की मौत की जांच में बड़ा खुलासा हुआ है. दरअसल, बाघों के खून के नमूनों की जांच गाय-भैंस का ब्लड टेस्ट करने वाले लैब में करवाकर उसी के अनुसार बेबिसिओसिस की दवा दी गयी थी. आशंका है कि दवा के साइड इफेक्ट ने बाघों की जान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 5, 2018 5:16 AM

जमशेदपुर : टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क (चिड़ियाघर) में बाघों की मौत की जांच में बड़ा खुलासा हुआ है. दरअसल, बाघों के खून के नमूनों की जांच गाय-भैंस का ब्लड टेस्ट करने वाले लैब में करवाकर उसी के अनुसार बेबिसिओसिस की दवा दी गयी थी. आशंका है कि दवा के साइड इफेक्ट ने बाघों की जान ले ली, क्योंकि बाघों को यह बीमारी थी ही नहीं. इन आशंकाओं के मद्देनजर अब वन विभाग मामले की उच्च स्तरीय जांच की तैयारी में है.

अभी तक की जांच के मुताबिक बाघों में से एक मादा शावक की तबीयत खराब होने पर उसका ब्लड सैंपल लेकर उसे खासमहल स्थित गाय-भैंस की ब्लड टेस्ट करने वाली पायनियर वेट लैब भेजा गया था. लैब से 18 मार्च 2018 को चिड़ियाघर को प्राप्त हुई जांच रिपोर्ट में बाघों में बेबिसिओसिस होने की बात कही गयी. इसके तत्काल बाद चिड़ियाघर प्रबंधन ने बेबिसिओसिस के उपचार
के लिए दवा शुरू कर दी. शावक को बारानिल की खुराक दी जाने लगी. उक्त लैब की जांच रिपोर्ट के आधार पर ही दूसरे दिन 19 मार्च को जू प्रबंधन ने एक प्रेस बयान जारी कर बेबिसिओसिस को बाघों की मौत का कारण बता दिया.
वन विभाग के जानकारों का कहना है कि बेबिसिओसिस बीमारी में उपचार की दवा नहीं दी जाती है. सिर्फ इसकी रोकथाम के लिए दवा दी जाती है. जानकार बताते हैं कि बेबिसिओसिस की दवा बाघ या कुत्ते को बिना पुष्टि के खिला देने पर उसकी मौत भी हो सकती है. वन विभाग ने इसी संदेह को आधार बनाकर उच्च स्तरीय जांच करने का निर्णय लिया है.
पोस्टमार्स्टम रिपोर्ट में बेबिसिओसिस का जिक्र नहीं
शावक की मौत के बाद टीवीओ डॉ अखिलेश कुमार, धालभूमगढ़ के बीएचओ
डॉ ज्योतिंद्र नारायण और जू वेटनरी कंसल्टेंट डॉ वीके सिंह की टीम तथा वन विभाग के अधिकारी शबा आलम अंसारी, जू के निदेशक विपुल चक्रवर्ती और क्यूरेटर एसके महतो की उपस्थिति में पोस्टमॉर्टम किया गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बेबिसिओसिस की पुष्टि नहीं हुई है. रांची और भुवनेश्वर की जांच रिपोर्ट में भी बाघोंं में बेबिसिओसिस नहीं होने की जानकारी दी गयी है.
वन विभाग इन बिंदुओं पर कर रहा जांच
– बेबिसिओसिस की पुष्टि के बाद दूसरा चिकित्सकीय परामर्श क्यों नहीं लिया गया?
– गाय और भैंस की तरह बाघों का इलाज क्यों किया गया?
– रोकथाम की दवा ना देकर उपचार की दवा क्यों दी गयी?
– सीजेडीए के साथ क्यों नहीं समन्वय स्थापित किया गया?
– वन विभाग को बाघ की मौत की जानकारी क्यों नहीं दी गयी?
सभी बिंदुओं पर जांच चल रही है. ज्यादा जानकारी अभी नहीं दी जा सकती है. जांच होने के बाद ही कुछ साफ हो पायेगा कि लापरवाही कहां हुई है या बाघों की मौत कैसे हुई है. शबा आलम अंसारी, डीएफओ

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