दावा: नीलाम नहीं हो सकती टायो, एनसीएलटी में दायर याचिका फर्जी

जमशेदपुर : टायो को टाटा स्टील के कब्जे से मुक्त कर सरकार खुद टेकओवर करे. यह मांग लोक स्वातंत्रय संगठन (पीयूसीएल) ने की है. पीयूसीएल के निशांत अखिलेश ने शनिवार को बिष्टुपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते उक्त मांगें रखीं. काॅन्फ्रेंस में एसआर नाग, इब्राहिम, कमल कुमार समेत अन्य लोग मौजूद थे. निशांत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 22, 2018 8:16 AM

जमशेदपुर : टायो को टाटा स्टील के कब्जे से मुक्त कर सरकार खुद टेकओवर करे. यह मांग लोक स्वातंत्रय संगठन (पीयूसीएल) ने की है. पीयूसीएल के निशांत अखिलेश ने शनिवार को बिष्टुपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते उक्त मांगें रखीं. काॅन्फ्रेंस में एसआर नाग, इब्राहिम, कमल कुमार समेत अन्य लोग मौजूद थे. निशांत अखिलेश ने कहा कि टायो टाटा स्टील की समअनुषंगी इकाई है अतः यह तब तक दिवालिया नहीं हो सकती है जब तक टाटा स्टील दिवालिया न हो जाये.

अतः टायो कंपनी ने नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल, कोलकाता में खुद को दिवालिया घोषित कर इससे उबारने के लिए जो याचिका दाखिल की है, वह फरजी है. निशांत अखिलेश ने बताया कि झारखंड सरकार ने इंडस्ट्रियल डिसप्यूट एक्ट की धारा 25 (ओ) के तहत अक्तूबर 2016 में ही टायो कंपनी को बंद करने से मना किया था पर टाटा स्टील ने उक्त आदेश की अनदेखी कर टायो कंपनी बंद कर दी और कामगारों और कर्मचारियों को वेतन देना बंद कर दिया. कंपनी लाॅ ट्रिब्यूनल में उनकी याचिका रद्द होने के बाद टायो ने कामगारों और कर्मचारियों की मेडिकल सेवाएं भी बंद कर दी.

जब झारखंड सरकार ने कंपनी को बंद करने से मना कर दिया उसके बाद भी टायो को दिवालिया घोषित कर नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में ले जाने का हक नहीं है. टाटा स्टील अगर इस कंपनी को चलाना नहीं चाहती है तो उसे कंपनी की परिसंपत्तियों और उसके परिसर को छोड़कर हट जाना चाहिए था. लेकिन टाटा स्टील उस पर कब्जा जमाये बैठी हुई है. पीयूसीएल ने झारखंड सरकार से मांग की है कि वह टाटा स्टील का टायो कंपनी और उसकी परिसंपत्तियों से कब्जा हटवाये तथा टायो कंपनी का टेक ओवर करे. ऐसी व्यवस्था करे कि कामगारों और कर्मचारियों की को-आपरेटिव टायो कंपनी को चला सके.

दिवालिया कानून में कामगारों को भी पक्ष रखने का हक
अखिलेश ने बताया कि 2016 के दिवालिया कानून में कामगारों और कर्मचारियों को लेनदार भी माना गया है और कामगारों और कर्मचारियों की तरफ से किसी एक को उनका पक्ष रखने का अधिकार भी दिया गया है, पर नेशनल कंपनी ला ट्राइब्यूनल, कोलकाता ने यह गलत व्यवस्था दी कि प्रत्येक कामगार और कर्मचारी को अलग-अलग याचिका दाखिल करनी होगी. नेशनल कंपनी ला अपिलेट ट्राइब्यूनल ने पहले तो टायो वर्कर्स यूनियन को हस्तक्षेप का अधिकार दिया पर बाद में अपनी ही व्यवस्था बदल कर टायो वर्कर्स यूनियन की याचिका को खारिज कर टायो कंपनी को अपनी स्वेच्छा से चार-पांच कामगारों और कर्मचारियों को टायो कंपनी को दिवालिया स्थिति से बाहर लाने की उनकी फर्जी याचिका में पार्टी बनाने को कहा. टायो वर्कर्स यूनियन ने उक्त दोनों व्यवस्थाओं के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. सर्वोच्च न्यायालय ने टायो वर्कर्स यूनियन की याचिका को मंजूर कर सुनवाई के बाद यह व्यवस्था दी कि टायो वर्कर्स यूनियन को कामगारों और कर्मचारियों के तरफ से हस्तक्षेप करने का हक है.

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