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वाजपेयी ने कहा था- मुसलमान किसी को वोट दें, उनकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं

सुप्रतिम बनर्जी 24 अप्रैल 1996. यानी लोकसभा चुनाव से महज तीन रोज पहले. ये वो तारीख थी, जब अटल जी चुनाव प्रचार के सिलसिले में जमशेदपुर आये थे. शहर के गोपाल मैदान में उनकी चुनावी सभा थी और इसके बाद उन्हें तुरंत चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली लौटना था. प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी, जिनके भरोसे भारतीय […]

सुप्रतिम बनर्जी

24 अप्रैल 1996. यानी लोकसभा चुनाव से महज तीन रोज पहले. ये वो तारीख थी, जब अटल जी चुनाव प्रचार के सिलसिले में जमशेदपुर आये थे. शहर के गोपाल मैदान में उनकी चुनावी सभा थी और इसके बाद उन्हें तुरंत चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली लौटना था. प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी, जिनके भरोसे भारतीय जनता पार्टी उन दिनों चुनावी वैतरणी पार करने का सपना देख रही थी, वो ऐसे किसी मौके पर कितना व्यस्त हो सकते हैं, ये शायद किसी को बताने की जरूरत नहीं है.

उन दिनों मैं जमशेदपुर में प्रभात खबर की टीम का हिस्सा था और मुझे पत्रकारिता में आये हुए जुम्मा-जुम्मा चार, साढ़े-चार साल हुए थे. काम को लेकर मुझमें जोश की कोई कमी नहीं थी. लेकिन शायद मेरे नये होने की वजह से मेरे संपादक (अनुज कुमार सिन्हा) और सीनियर्स (विनोद शरण) को मुझसे बहुत ज्यादा की उम्मीद नहीं थी. मगर मैं किसी भी नये लड़के की तरह उन दिनों हमेशा ही कुछ ‘बड़ा’ करना चाहता था. और चुनाव से ऐन पहले अटल जी जैसी किसी शख्सियत का इंटरव्यू कर पाने से बड़ी बात और क्या हो सकती थी? मगर, एक छोटे से शहर का मामूली पत्रकार होते हुए तब ना तो इंटरव्यू के लिए कोई ‘व्यू रचना’ मुमकिन थी और ना ही उनका एप्वाइंटमेंट मिलना था. मगर, चांस लेने पर कोई रोक नहीं थी. मैंने चांस लिया और चुनावी सभा के बाद वापसी में अपनी मोपेड अटल जी की कॉनवॉय के पीछे लगा दी. वो सोनारी एयरपोर्ट से दिल्ली के लिए उड़ान भरने से पहले एयरपोर्ट के लाउंज में अपनी थकान मिटा रहे थे.

पुलिस वालों से लड़ता-भिड़ता मैं बड़ी मुश्किल से उनके कमरे तक पहुंचा. मेरे मन में इंटरव्यू के लिए अटल जी के तैयार होने और मना करने को लेकर जबरदस्त संशय था. मैंने उनसे बातचीत की गुजारिश की और बड़प्पन दिखाते हुए अटल जी तमाम थकान और व्यवस्तता के बावजूद मुझ जैसे नये-नवेले पत्रकार से बातचीत को फौरन तैयार हो गये. उन दिनों जैन बंधुओं का हवाला कांड कांग्रेस समेत तकरीबन सभी सियासी दलों के गले की फांस बना था. गरज ये कि शायद ही कोई ऐसी पार्टी या नेता रहा हो, जिसका नाम इन जैन बंधुओं की डायरी में ना हो. लिहाजा, मैंने भी बातचीत की शुरुआत इसी मुद्दे को लेकर की. बीजेपी के लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मदनलाल खुराना तक के नाम डायरी में आने को लेकर उनसे कई तीखे सवाल पूछ डाले. लेकिन बेहद हाजिर जवाब, वाकपटुता और सौम्य अटल जी ने मेरे सभी सवालों का जवाब पूरी तसल्ली से दिया. बगैर लाग लपेट के कह डाला कि सरकार के इशारे पर सीबीआइ किस तरह इस मामले में चुन-चुन कर विरोधियों को निशाना बनाने में लगी है.

मुसलमानों पर उन्होंने बेझिझक कहा कि वो चाहे किसी भी पार्टी को वोट दें, इससे उनकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं. सच तो ये है कि इसके बाद मैं ना मालूम कितनी बड़ी-बड़ी हस्तियों से मिला. कितनी बातें हुईं और हो रही हैं. लेकिन अटल जी जैसी शख्सियत से हुई वो मुख्तसर सी बातचीत आज भी मेरी यादों में उतनी ही ताजा है.
(लेखक प्रभात खबर के संवाददाता थे, वर्तमान में टीवीटीएन में डिप्टी एडिटर के पद पर कार्यरत हैं)

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