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जमशेदपुर एमजीएम अस्पताल : मेडॉल की भी जांच है जरूरी, मरीजों की फर्जी जांच दिखा वसूली जा रही मोटी रकम

चंद्रशेखर जमशेदपुर : एमजीएम अस्पताल परिसर में प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी ) मोड पर चल रहे पैथोलॉजी सेंटर मेडॉल पर सवाल उठ रहे हैं. मेडॉल के कुछ कर्मचारी फर्जी तरीके से अस्पताल की पर्ची पर बीपीएल मरीजों की पैथोलॉजिकल जांच दिखा कर लाखों रुपये वसूल रहे हैं. प्रभात खबर के पास मौजूद दस्तावेज से इसका […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 25, 2018 6:00 AM
चंद्रशेखर
जमशेदपुर : एमजीएम अस्पताल परिसर में प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी ) मोड पर चल रहे पैथोलॉजी सेंटर मेडॉल पर सवाल उठ रहे हैं. मेडॉल के कुछ कर्मचारी फर्जी तरीके से अस्पताल की पर्ची पर बीपीएल मरीजों की पैथोलॉजिकल जांच दिखा कर लाखों रुपये वसूल रहे हैं. प्रभात खबर के पास मौजूद दस्तावेज से इसका खुलासा हुआ है कि मेडॉल के कुछ कर्मी अस्पताल की पर्ची पर खुद से बीपीएल मरीजों के नाम लिख देते हैं.
इसके बाद इन मरीजों के नाम पर कई तरह पैथोलॉजिकल जांच दिखा देते हैं. फिर इससे संबंधित बिल अस्पताल में जमा कर लाखों रुपये वसूल रहे हैं. मेडॉल ने जुलाई माह में एमजीएम अस्पताल को 55 लाख व अगस्त में 48 लाख रुपये से ज्यादा का बिल दिया है. कई ऐसे बीपीएल कार्डधारी मरीज हैं, जिनकी जांच का बिल पांच हजार तक दिखाया गया है.
ओपीडी छह बजे तक, पर पर्ची में 6.30 बजे का समय भी दर्ज : एमजीएम अस्पताल में शाम छह बजे तक ही ओपीडी चलता है. ओपीडी में शाम छह बजे के बाद कोई भी डॉक्टर नहीं बैठते. शाम छह बजे के बाद आनेवाले मरीजों को इलाज के लिए इमरजेंसी में जाना पड़ता है.
अस्पताल के रजिस्ट्रेशन काउंटर पर बैठे कर्मी शाम लगभग 5.30 बजे तक ही ओपीडी के लिए रसीद बनाते हैं. मगर मेडॉल की ओर से अस्पताल को सौंपे गये बिल में कई मरीजों की पर्ची पर रजिस्ट्रेशन का समय शाम छह बजे के बाद लिखा गया है. कई मरीजों के ओपीडी के रजिस्ट्रेशन काउंटर पर आने का समय शाम 6.30 बजे दर्ज है. इन मरीजों के नाम पर हजारों की जांच लिखी गयी है.
विभाग के नाम और रूम नंबर नदारद : ओपीडी में आनेवाले हर मरीज की पर्ची पर, उसे किस विभाग में दिखाना है, दर्ज होता है. कंप्यूटर से बनायी गयी पर्ची में विभाग का नाम होता है. वहीं मैनुअल तरीके से बनायी गयी पर्ची में विभाग के डॉक्टर का रूम नंबर दर्ज होता है.
पर मेडॉल ने अस्पताल को बिल के साथ कई ऐसी मैनुअल पर्ची सौंपी है, जिनमें विभाग से संबंधित रूम नंबर दर्ज नहीं है. यानी मरीज ने किस विभाग में जाकर इलाज कराया, इसका जिक्र नहीं है.
पर्ची पर सीरियल नंबर भी नहीं : एमजीएम अस्पताल में रजिस्ट्रेशन पर्ची कटाने के बाद मरीज को इलाज के लिए संबंधित विभाग में भेजा जाता है.
विभाग में भी एक रजिस्टर मौजूद होता है, जहां मरीजों के नाम और डॉक्टर से दिखाने का सीरियल नंबर दर्ज किया जाता है. इसी सीरियल नंबर के अनुसार डॉक्टर मरीजों को देखते हैं. यही सीरियल नंबर मरीजों की रजिस्ट्रेशन पर्ची पर भी दर्ज कर दी जाती है. लेकिन मेडॉल की ओर से सौंपी गयी कई पर्ची में रजिस्टर का सीरियल नंबर तक दर्ज नहीं है.
जांच के दौरान रजिस्टर में भी मरीजों के नाम नहीं मिले. यहां तक कि मैनुअल तरीके से बनायी गयी कई पर्ची में मरीजों का पता तक अंकित नहीं है. इन सभी मरीजों की पांच हजार से अधिक की जांच दिखायी गयी है.
अस्पताल की पर्ची पर मनमाने तरीके से बीपीएल मरीजों के नाम और जांच लिख कर की जा रही है गड़बड़ी
कैसी-कैसी गड़बड़ियां
ओपीडी का रजिस्ट्रेशन काउंटर शाम 5.30 बजे तक ही खुला होता है. डॉक्टर शाम छह बजे के बाद नहीं मिलते. इसके बाद भी मरीजों की पर्ची बनाने का समय 6.30 बजे तक दिखलाया
आेपीडी में आनेवाले मरीजों की पर्ची में विभाग का नाम या रूम नंबर दर्ज होता है़ पर कई पर्चियां ऐसी मिली, जिनमें न विभाग का नाम है, न ही रूम नंबर
जिस विभाग में मरीज को दिखाना होता है, वहां भी पर्ची पर सीरियल नंबर लिखा जाता है. पर कई पर्चियों में यह सीरियल नंबर नहीं लिखा गया
विभागों में रजिस्टर मौजूद होता है, जिनमें दिखाने आये मरीजों के नाम, रजिस्ट्रेशन नंबर आदि तिथिवार लिखे जाते हैं. मरीजों का सीरियल नंबर भी दर्ज होता है. पर मेडॉल की ओर से दी गयी पर्ची का मिलान रजिस्टर से करने पर कई मरीजों के नाम रजिस्टर में नहीं पाये गये
अस्पताल कर्मियों की भी मिलीभगत
अब इस बात की जांच की भी आवश्यकता है कि मेडॉल को अस्पताल की रजिस्ट्रेशन पर्ची मिलती कहां से है. इसमें एमजीएम अस्पताल के कर्मियों की भूमिका संदेह के घेरे में है.
कैसे होता है बिल पास
मेडॉल हर माह की गयी जांच से संबंधित बिल एमजीएम के अधीक्षक की ओर से नियुक्त नोडल पदाधिकारी को भेजता है. नोडल पदाधिकारी का काम बिल की जांच पर उस पर हस्ताक्षर करना है, इसके बाद बिल कैशियर के पास जाता है.
कैशियर के बाद बिल एमजीएम के अधीक्षक के पास जाता है. अधीक्षक की साइन के बाद बिल कोषागार में चला जाता है. कोषागार से मेडाॅल के खाते में पैसे भेज दिये जाते हैं

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