जमशेदपुर : बालू झारखंड का, लीज दे रही ओड़िशा सरकार

मामला : ओड़िशा ने सीमा बदलकर पूर्वी सिंहभूम के पांच गांवों की 2000 एकड़ जमीन पर किया कब्जा जमशेदपुर : ओड़िशा के कब्जे में मौजूद झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के पांच गांवों सोना पेटपाल, भुरसान, छेड़घाटी, काशीपाल, कुड़िया मोहनपाल और कैमा के लोग बड़ी संख्या में महुलडांगरी में रहते हैं. ये लोग ओड़िशा के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 18, 2018 9:47 AM

मामला : ओड़िशा ने सीमा बदलकर पूर्वी सिंहभूम के पांच गांवों की 2000 एकड़ जमीन पर किया कब्जा

जमशेदपुर : ओड़िशा के कब्जे में मौजूद झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के पांच गांवों सोना पेटपाल, भुरसान, छेड़घाटी, काशीपाल, कुड़िया मोहनपाल और कैमा के लोग बड़ी संख्या में महुलडांगरी में रहते हैं.

ये लोग ओड़िशा के कब्जे में गयी अपनी जमीन का लगान भी भर रहे हैं. वर्ष 2014 तक महुलडांगरी में बसे लोगों ने झारखंड सरकार को लगान दिया और इसकी रसीद भी कटायी. ग्रामीणों का कहना है कि नदी उस पार की जमीन उनकी है, पर इस पर पसरे बालू का लीज ओड़िशा सरकार देती है. लीज से ओड़िशा सरकार को बड़ा राजस्व मिल रहा है.

लोगों के अनुसार, सुवर्णरेखा के कटाव के कारण सोना पेटपाल सहित दो गांव पूरी तरह से नदी में समा गये हैं. वर्तमान में दोनों गांव में बालू भरा है. लोग इसका भी लगान रसीद कटा रहे हैं. ग्रामीणों के अनुसार महुलडांगरी व बामडोल में तटबंध और पंखा बने हैं.

जमीन उस पार चली गयी, 2014 तक लगान दिये हैं : असीत कुमार पांडा

महुलडांगरी निवासी असीत कुमार पंडा के अनुसार नदी के उस पार सोना पेटपाल में उनके पिता स्व कामेश्वर पंडा के नाम पर आठ एकड़ जमीन है. 2014 तक जमीन की लगान रसीद कटी है. 1980-83 तक नदी उस पार जाकर खेती की. इसके बाद वहां के लोगों ने जमीन पर दावा कर भगा दिया. गांव में पसरे बालू के लिए वहां की सरकार लीज बांट रही है. 38 सालों से झारखंड सरकार ने कुछ नहीं किया. इसलिए उम्मीद खत्म हो चुकी है.

ओड़िशा ने जमीन पर कब्जा कर लिया खेती करने से भी रोक िदया : महादेव

महुलडांगरी निवासी 75 वर्षीय महादेव पाल बताते हैं, उनके पिता स्व केशव चंद्र पाल कमारअाड़ा में रहते थे. 1937 में आयी भयावह बाढ़ में 50 प्रतिशत घर डूब गये. कुल 20 एकड़ जमीन थी. इसमें 10 एकड़ जमीन नदी में समा गयी. सोना पेटपाल में 10 एकड़ पर खेती करते थे. 1987 में जमीन को लेकर लड़ाई शुरू हो गयी. खेती करने गये, तो वहां के प्रशासन ने रोक दिया. इसके बाद सिंहभूम के डीसी ने दौरा किया था और सीमांकन किया था. लेकिन ओड़िशा प्रशासन ने नहीं माना.

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