कारगिल युद्ध : दोनों हाथ-पैर नहीं है, फिर भी भुजायें फड़क रहीं…
संजीव भारद्वाज जमशेदपुर : करगिल युद्ध में अपने दाेनाें हाथ आैर पैर गंवा देनेवाले 7 बिहार रेंजीमेंट के सिपाही मानिक वारदा के हाैंसलाें में कहीं काेई कमी नहीं आयी है. उन्हाेेंंने कहा कि भले ही करगिल युद्ध काे 20 साल बीत गये हाे, लेकिन उनके लिए यह कल की बात है. उनकी अांखाें के सामने […]
संजीव भारद्वाज
जमशेदपुर : करगिल युद्ध में अपने दाेनाें हाथ आैर पैर गंवा देनेवाले 7 बिहार रेंजीमेंट के सिपाही मानिक वारदा के हाैंसलाें में कहीं काेई कमी नहीं आयी है.
उन्हाेेंंने कहा कि भले ही करगिल युद्ध काे 20 साल बीत गये हाे, लेकिन उनके लिए यह कल की बात है. उनकी अांखाें के सामने हर एक मंजर आज भी दाैड़ता हुआ दिखता है. पाकिस्तान का नामाेंनिशान मिटाने की तमन्ना उनके दिल में आज भी है. भले ही उनके हाथ-पैर नहीं है, लेकिन उनकी भुजायें आज भी पाकिस्तान से बदला लेने के लिए फड़क उठती हैं.
डबल सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान काे यह बात अच्छी तरह से समझ आ गयी है अब यदि उसने किसी तरह का छद्म युद्ध छेड़ा ताे भारतीय सेना धरती से उसका नामाे निशान मिटा देगी. करगिल युद्ध के में झारखंड का नाम रोशन करनेवाले गाेविंदपुर गदरा निवासी मानिक वारदा हंसते-मुस्कुराते हुए मिलते हैं.
मानिक वारदा ने बताया कि करगिल से पहले श्रीलंका गयी शांति सेना का भी वे हिस्सा रहे हैं. हवलदार मानिक वारदा अपनी टुकड़ी के साथ 1999 में कारगिल युद्ध के लिए निकले थे. उन्हें उरी सेक्टर में बर्फीली पहाड़ियाें की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया. जैसे ही वे लाेग पहुंचे जबर्दस्त फायरिंग ने उनका स्वागत किया. फायरिंग से बर्फवाले पहाड़ भी खिसक रहे थे. इसी दाैरान बर्फीले पहाड़ ने उनके साथ चार साथियाें काे अपने आगाेश में ले लिया.
वे लाेग लगभग 18 घंटे बर्फ में दबे रहे. उनकी टुकड़ी के साथियाें ने उनकी खबर ली आैर उन्हें बाहर निकाला. इस दाैरान एक साथी शहीद हाे गया. मानिक वारदा की पत्नी पारा टीचर हैं, जबकि बड़ा बेटा दिल्ली में इंजीनियर है, छाेटा बेटा जमशेदपुर में उच्च शिक्षा हासिल कर रहा है.