#JharkhandResults: भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा मुखर रहे सरयू का टिकट काटना भारी पड़ा रघुवर दास को

संजीव भारद्वाज जमशेदपुर : जमशेदपुर पश्चिम से भाजपा के विधायक रहे सरयू राय का टिकट काटना मुख्यमंत्री रघुवर दास को भारी पड़ गया. निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सरयू राय ने जमशेदपुर पूर्वी से रघुवर दास को चुनौती दी और जीत हासिल की. बिहार के बक्सर के मूल निवासी और पटना के साइंस कॉलेज के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 24, 2019 1:38 PM

संजीव भारद्वाज

जमशेदपुर : जमशेदपुर पश्चिम से भाजपा के विधायक रहे सरयू राय का टिकट काटना मुख्यमंत्री रघुवर दास को भारी पड़ गया. निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सरयू राय ने जमशेदपुर पूर्वी से रघुवर दास को चुनौती दी और जीत हासिल की. बिहार के बक्सर के मूल निवासी और पटना के साइंस कॉलेज के विद्यार्थी रहे सरयू राय का झारखंड की राजनीति में पदार्पण वर्ष 2005 में हुआ जब रघुवर दास ने अपने सीटिंग विधायक और झारखंड के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष मृगेंद्र प्रताप सिंह का टिकट काटकर सरयू राय को टिकट दिया. रघुवर और भाजपा ने जो विश्वास दिखाया उस पर सरयू राय खरे भी उतरे. पहला चुनाव जमशेदपुर पश्चिम सीट से लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी बन्ना गुप्ता को (34733 मत) को 12,695 मतों से हराकर विजयी हुए. हालांकि 2009 में वे बन्ना गुप्ता से चुनाव जरूर हारे लेकिन पार्टी में सक्रिय रहे. वर्ष 2014 में फिर चुनाव लड़े और 10,517 मत से जीत कर दोबारा विधायक बने और रघुवर सरकार में कैबिनेट में मंत्री बने.

भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा मुखर रहे सरयू राय के बारे में कहा जाता है कि तीन मुख्यमंत्रियों (लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र और मधु कोड़ा) को जेल भिजवाने में उनकी अहम भूमिका रही. वही सरयू राय 2019 के चुनाव में मुख्यमंत्री रघुवर दास से भिड़ गये. सरयू राय ने चुनाव प्रचार के दौरान मीडिया से कहा था कि अगर उन्हें पहले ही बता दिया जाता कि पार्टी उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं देगी तो वह शांत बैठ जाते, लेकिन पार्टी ने कहा कि टिकट दिया जायेगा. पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी लिस्ट निकल गयी, लेकिन उनका नाम नहीं आया. इससे उन्हें लगा कि उन्हें अपमानित किया जा रहा है और टिकट नहीं मिलेगा. इसके बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा देकर रघुवर दास के खिलाफ चुनाव लड़ने का एलान कर दिया. उनका कहना था कि टिकट काटने के पीछे रघुवर दास ही हैं. मुख्यमंत्री से अनबन की बात पर उन्होंने कहा था कि 2005 में वह नगर विकास मंत्री थे. तब रांची के सीवरेज के काम के लिए सिंगापुर की एक कंपनी मेनहार्ट की नियुक्ति की गयी. मामला विधानसभा की उनकी समिति के सामने आया, जिसकी उन्होंने जांच की और कहा कि यह नियुक्ति गलत है. अब तो पांच अभियंता समूह के पैनल ने रिपोर्ट दी कि मेनहार्ट की गलत नियुक्ति हुई है. विजिलेंस की तकनीकी सेल ने भी कह दिया कि नियुक्ति गलत थी. टेंडर प्रक्रिया भी गलत हुई. कायदे से तो कार्रवाई होनी चाहिए थी. इसके बाद सरयू राय ने मंत्री रहते हुए भी कैबिनेट की बैठकों में जाना बंद कर दिया था. कैबिनेट की बैठक में कुछ फैसलों पर उन्होंने लिखित टिप्पणी भी की थी.

भारतीय राजनीति में सबसे चर्चित घोटालों में से एक पशुपालन घोटाले को उजागर करने वाले नेता के रूप में सरयू राय का नाम लिया जाता है. उन्होंने 1994 में पशुपालन घोटाले का भंडाफोड़ किया था. घोटाले के दोषियों को सजा दिलाने के लिए उन्होंने हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष किया. इस मामले में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस नेता सह मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ मिश्रा समेत कई नेताओं और अफसरों को जेल जाना पड़ा. भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा झंडा बुलंद करने वाले सरयू राय ने बिहार में अलकतरा घोटाले का भंडाफोड़ किया था. झारखंड के खनन घोटाले को उजागर करने में भी राय की महत्वपूर्ण भूमिका रही. सरयू राय ने 1980 में किसानों को दिये जाने वाले घटिया खाद, बीज, तथा नकली कीटनाशकों का वितरण करने वाली सहकारिता संस्थाओं के खिलाफ आवाज उठायी थी. जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता और नैतिक मूल्यों की राजनीति करने वाले सरयू राय ने अविभाजित बिहार में अपने जीवन का काफी लंबा हिस्सा व्यतीत किया और झारखंड अलग राज्य बनने के बाद उन्होंने इसे कर्मभूमि बना लिया.

सरयू राय लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं. 1962 में वह अपने गांव में संघ की शाखा में मुख्य शिक्षक थे. चार साल बाद वह जिला प्रचारक बनाये गये. संघ ने उन्हें 1977 में राजनीति में भेजा. फिर कुछ सालों तक राजनीति से अलग रहे. जेपी विचार मंच बनाकर किसानों के बीच काम किया. बाद में जब 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, उसके बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के कहने पर भाजपा में आये. यहां उन्हें प्रवक्ता व पदाधिकारी बनाया गया, फिर एमएलसी, विधायक, मंत्री तक तक की जिम्मेदारी उन्होंने संभाली.

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