सम्यक् ज्ञान के लिए आहार की शुद्धता जरूरी : स्वामी निर्विशेषानंद (रिषी 1)

सीआइआरडी में ज्ञान यज्ञ का तीसरा दिनजमशेदपुर : उपनिषद् हमारे प्राचीन ऋषियों के हजारों वर्षों के शोध का परिणाम है. ऋषियों ने बरसों स्वयं पर, अपने मन, बुद्धि तथा आत्मा पर विविध प्रयोग करते रहे. उनके आत्मिक प्रयोगों से प्राप्त परिणामों का संग्रह ही हमारे उपनिषद् हैं. उक्त बातें स्वामी निर्विशेषानंद तीर्थ ने सोमवार को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 3, 2014 11:02 PM

सीआइआरडी में ज्ञान यज्ञ का तीसरा दिनजमशेदपुर : उपनिषद् हमारे प्राचीन ऋषियों के हजारों वर्षों के शोध का परिणाम है. ऋषियों ने बरसों स्वयं पर, अपने मन, बुद्धि तथा आत्मा पर विविध प्रयोग करते रहे. उनके आत्मिक प्रयोगों से प्राप्त परिणामों का संग्रह ही हमारे उपनिषद् हैं. उक्त बातें स्वामी निर्विशेषानंद तीर्थ ने सोमवार को आत्मीय वैभव विकास केंद्र में चल रहे ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन प्रात: कालीन सत्र में प्रशिक्षण शिविर के दौरान बतायीं. उन्होंने बताया कि आध्यात्मिक प्रगति के लिए उदार मना होना बहुत जरूरी है, क्योंकि उदार मन ही ज्ञान को ग्रहण भी कर सकता है. संकीर्ण (राग द्वेष से पूर्ण, संकुचित) मन ज्ञान को ग्रहण करने के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं हो सकता. उन्होंने ज्ञान के लिए आहार की शुद्धता पर भी बल दिया. उन्होंने याद दिलाया कि आहार का मतलब सिर्फ भोजन ही नहीं, बल्कि हमारी सभी कर्मेंद्रियों से प्राप्त किये जाने वाले अनुभव (इनपुट) भी इस संदर्भ में आहार का काम ही करते हैं. हम आंखों से जो देखते हैं, कान से जो सुनते हैं, त्वचा से जो अनुभव करते हैं, ये सभी इसके अंतर्गत आते हैं तथा हमारे ज्ञान को प्रभावित करते हैं. आहार शुद्ध होने का मतलब है कि इनमें से कोई भी ऐसा नहीं होना चाहिए, जिसके कारण उत्तेजना पैदा हो, तभी ज्ञान की प्राप्ति स्वाभाविक रूप से हो सकती है. आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ आलोक सेनगुप्ता, टाटा पिगमेंट्स के एमडी पी सरोदे आदि समेत अनेक लोगों ने उल्लेखनीय भूमिका निभायी.

Next Article

Exit mobile version