पर्वतारोहण की तरह हो चेतना का ऊर्ध्वगमन

(फोटो आयी होगी)( फोटो दिख नहीं रही है)क्रियायोग इंटरनेशनल रिट्रीट में शिवेंदु लाहिड़ी ने कहावरीय संवाददाता, जमशेदपुरपर्वतारोहण की तरह चेतना का गमन भी ऊर्ध्व दिशा में होना चाहिए. उक्त आवाहन क्रियायोगी शिवेंदु लाहिड़ी ने शुक्रवार को क्रिया योग इंटरनेशनल रिट्रीट के तहत देश विदेश के क्रियावानों को दलमा के उत्तुंग शिखर पर स्थित शिव मंदिर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2015 11:02 PM

(फोटो आयी होगी)( फोटो दिख नहीं रही है)क्रियायोग इंटरनेशनल रिट्रीट में शिवेंदु लाहिड़ी ने कहावरीय संवाददाता, जमशेदपुरपर्वतारोहण की तरह चेतना का गमन भी ऊर्ध्व दिशा में होना चाहिए. उक्त आवाहन क्रियायोगी शिवेंदु लाहिड़ी ने शुक्रवार को क्रिया योग इंटरनेशनल रिट्रीट के तहत देश विदेश के क्रियावानों को दलमा के उत्तुंग शिखर पर स्थित शिव मंदिर की सीढि़यों पर संबोधित करते हुए कहीं. उन्होंने कहा कि क्रिया योग के आलोक में क्रिया का अर्थ है जीवन में प्रतिक्रिया का अभाव. और योग का अर्थ है वियोग का अभाव, अर्थात् चित्तवृत्ति से मुक्ति. समस्त प्रकार की प्रतिक्रियाओं से मुक्त, अनुक्रिया में रहते हुए जीवन जीना ही सच्चा धार्मिक जीवन है. इसके लिए वियोग से मुक्ति तथा जीवन में योग की स्वीकृति आवश्यक है. सामान्यत: मूढ़ वह है जो चित्तवृतियों के वशीभूत विषयों में रत है. ‘विषम’ संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है य: विष: अर्थात् जो विष है. सामान्य विष से व्यक्ति की एक बार ही मृत्यु घटित होती है, किन्तु विषय का विष उसे हर पल मरने को बाध्य किये रहता है. अत: यहां मुमुक्षु वह है जो विषय-विष से मुक्ति की यात्रा में है. किंतु ज्ञाता अर्थात् जो उधारी सूचनाओं के ज्ञात-सुख के मिथ्या भ्रम से बंधा तथाकथित ज्ञानी बना बैठा है, जबकि ज्ञानी वह है जो ज्ञात की सूचनाओं के बंधन एवं दबाव से मुक्त जागरण की अवस्था में है. अत: जागरण को उपलब्ध होने के लिए क्रियायोग एक उपयुक्त माध्यम है.

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