105 साल पुराने आंदोलन का फल है झारखंड
जमशेदपुर : झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो ने इंदर सिंह नामधारी के उस बयान का विरोध किया है, जिसमें उन्होंने कहा कि झारखंड राज्य आंदोलन के आधार पर नहीं, कमिटमेंट के आधार पर मिला. श्री महतो ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा कि इसके पीछे 105 साल का आंदोलन रहा. बिरसा मुंडा […]
बिरसा मुंडा ने अबुआ दिशोम अबुआ राज के नारे के साथ आंदोलन शुरू किया था. इसके बाद छोटानागपुर उन्नति समाज बना. फिर बनी आदिवासी महासभा. इसके बाद झारखंड पार्टी, अखिल भारतीय झारखंड पार्टी का गठन हुआ. बिरसा सेवा दल, झामुमो का गठन हुआ.
इस तरह के कई संगठन बने, इन संगठनों ने आंदोलन का नेतृत्व किया. भाजपा ने तो कभी झारखंड के नाम से आंदोलन नहीं किया. आठ अगस्त 1987 को निर्मल महतो की हत्या के बाद झारखंड आंदोलन में जब तीव्रता आयी, तब 1988 में भाजपा की वनांचल प्रदेश कमेटी द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया कि वनांचल राज्य बनाया जाये. वनांचल के नाम से प्रस्ताव पारित हुआ और यह प्रस्ताव तक ही सीमित रहा. कभी आंदोलन नहीं किया. 1996 में जब सरकार बनी, तो भाजपा ने अलग राज्य का मुद्दा बनाया. अटलजी ने कहा कि हमें सरकार दें, हम अलग राज्य देंगे. इसके बाद सभी दलों का समर्थन मिला, जिसमें कांग्रेस पार्टी भी मुख्य रूप से शामिल है.
इसके साथ-साथ एनडीए में शामिल दलों ने अलग राज्य का समर्थन नहीं किया, लेकिन कांग्रेस का समर्थन मिलने से झारखंड बनना तय हो गया. इसलिए जब झारखंड अलग राज्य का बिल पारित हुआ, तो आडवाणी जी ने भाषण में कहा था कि इन तीनों राज्यों का गठन हो जायेगा. उन्होंने कहा था कि मुङो उम्मीद है कि एक नवंबर के पहले तीनों राज्य का गठन हो जायेगा. उन्होंने कहा कि अलग राज्य का श्रेय सांसदों को जाता है, इसलिए इसका कोई श्रेय लेने की कोशिश नहीं करे. श्री नामधारी को झारखंड गठन की पूर्ण कार्रवाई को जानना चाहिए. झारखंड के प्रथम विधान सभाध्यक्ष बनने का मौका मिला, इसलिए वे जाने.