ब्रह्नानंद में वीडियो असिस्टेड हार्ट सर्जरी जल्द

जमशेदपुर: ब्रह्नानंद नारायणा हृदयालय के डॉक्टर परवेज आलम ने कहा कि देश की कुछ जगहों पर वीडियो असिस्टेड हार्ट सर्जरी की जा रही हैं. इस पद्धति को जल्द ही ब्रrानंद नारायणा हृदयालय में चालू कर दिया जायेगा. इसके लिए तैयारी की जा रही है. इस पद्धति से मरीजों को काफी लाभ होगा. डॉ परवेज आलम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 13, 2015 8:25 AM
जमशेदपुर: ब्रह्नानंद नारायणा हृदयालय के डॉक्टर परवेज आलम ने कहा कि देश की कुछ जगहों पर वीडियो असिस्टेड हार्ट सर्जरी की जा रही हैं. इस पद्धति को जल्द ही ब्रrानंद नारायणा हृदयालय में चालू कर दिया जायेगा. इसके लिए तैयारी की जा रही है. इस पद्धति से मरीजों को काफी लाभ होगा. डॉ परवेज आलम ने एसएनटीआइ में तीन दिवसीय आयोजित सालाना कॉन्फ्रेंस जैक्सकॉन-2015 के अंतिम दिन रविवार को यह जानकारी दी. सेमिनार ब्रrानंद नारायणा मल्टी स्पेशियालिटी हॉस्पिटल व झारखंड चैप्टर ऑफ कॉर्डियोलॉजी सोसाइटी ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में किया गया. इस दौरान शहर के बड़ी संख्या में डॉक्टर उपस्थित रहे.
हार्ट के इलाज में आया परिवर्तन
डॉ परवेज आलम ने कहा कि पहले हार्ट का इलाज दवा से होता था, लेकिन अब इसके इलाज में काफी परिवर्तन आया है. आज के समय में एक छोटा सा चीरा लगा कर हार्ट का ऑपरेशन किया जा रहा है. दो दिन बाद ही मरीज अपने घर चला जाता है और 15 दिनों में वह काम करने लगता है. उन्होंने कहा कि मरीजों की मांग व अस्पताल में उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए काम करने की जरूरत है. इसके लिए टीम वर्क होना बहुत आवश्यक है. टीम में मेडिकल डॉक्टर, एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टिक सर्जन व कॉडियोलॉजिस्ट सर्जन तीनों का होना जरूरी है. उन्होंने कहा कि कितने भी बड़े डॉक्टर हों, लेकिन वे अकेले कुछ नहीं कर सकते. इस दौरान बीएम बिरला हार्ट रिसर्च सेंटर से आये कॉडियोलॉजिस्ट डॉ ललित कपूर ने छोटा सा चीरा लगा कर हार्ट का ऑपरेशन करने व रांची से आये डॉक्टर दीपक गुप्ता ने गंभीर मरीज का इलाज करने की जानकारी दी.
क्या है वीडियो असिस्टेड हार्ट सजर्री
इस पद्धति के तहत मरीज को छोटा सा छेद कर कैमरा डाला जाता है, इसके बाद टीवी स्क्रीन पर देख कर उसका ऑपरेशन किया जाता है. इससे खून बहुत कम निकलता है. मरीज को दर्द भी नहीं होता है. दो या तीन दिन अस्पताल में रहने के साथ ही वह घर चला जाता है. इससे पहले ऑपरेशन में कम से कम आठ से दस दिन मरीज को अस्पताल में रहना पड़ता था.

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