बुराइयों के खिलाफ रण में बनीं चंडी
बुराइयों के खिलाफ रण में बनीं चंडी वैसे तो सामाजिक बुराइयों के खिलाफ समाज का हर जागरूक तबका अपने स्तर से कोई न कोई काम करता रहता है, लेकिन नवरात्रि की इस कड़ी में हम नव दुर्गा रूपी उन महिलाओं की बात करेंगे, जिन्होंने नारी सशक्तीकरण तथा परिवार के उन्नयन के लिए चल रहे अघोषित […]
बुराइयों के खिलाफ रण में बनीं चंडी वैसे तो सामाजिक बुराइयों के खिलाफ समाज का हर जागरूक तबका अपने स्तर से कोई न कोई काम करता रहता है, लेकिन नवरात्रि की इस कड़ी में हम नव दुर्गा रूपी उन महिलाओं की बात करेंगे, जिन्होंने नारी सशक्तीकरण तथा परिवार के उन्नयन के लिए चल रहे अघोषित रण में चंडी बन गयीं. इन महिलाओं ने शराबबंदी, डायन प्रथा उन्मूलन व महिला सशक्तीकरण का अलख जगाया और जगा रही हैं. पढ़िये लाइफ @ जमशेदपुर की खास रिपोर्ट…—————-शराब बंदी के लिए लड़ी बड़ी लड़ाई शांति घोष, कदमापूर्व एलआइसी कर्मचारी शांति घोष पिछले 45 वर्षों से सामाजिक कार्य में भागीदारी कर रही हैं. चाहे शराब बंदी की बात हो, या महिलाओं के उत्थान की वह हमेशा आगे रहीं. उन्होंने भाटिया बस्ती में शराब बंदी का आंदोलन चलाया व सरकार की मदद से उस पर रोक लगवायी. वह बताती हैं कि समाज में फैली कुप्रथाओं को मिटाने का जज्बा उन्हें अपने पति दिलीप घोष से हासिल हुआ. वही उनके प्रेरणास्रोत हैं. कई बार पीड़िता को हक दिलाने के लिए आंदोलन तक करना पड़ा. शहर में महिला सेल के गठन में भी उनका योगदान रहा. शहर में शुरुआती दौर में बहुत कम समाजसेवी थे. हम लोगों ने जिस पीड़िता को न्याय दिलाया व उनके हक में आवाज उठायी, ठीक वैसे ही लोग हमलोगों से जुड़ते चले गये. 70 के दशक में बेहद कम लोग समाजसेवी थे उस दौरान संचार व्यवस्था भी आज के समान दुरुस्त नहीं थी, बावजूद इसके लोग हमसे संपर्क करते व हम लोग हमेशा उनके लिए आवाज उठाते. महिला अत्याचार के मुद्दे को लेकर हमने घर-घर जाकर समझाया, उसके खिलाफ आंदोलन किया.—————-बाल विवाह के प्रति बुलंद की आवाज बर्नाली चक्रवर्ती, सोनारी अंध विश्वास, शराबखोरी व डायन प्रथा जैसी कुरीतियों की खिलाफत में इनका नाम आगे रहता है. पढ़ायी पूरी करने के बाद वह ग्रामीण क्षेत्र के विकास में सक्रिय हो गयीं. लोगों की सेवा व उनके हक के लिए लड़ सकें, इसके लिए ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद कानून की पढ़ायी की. रूरल डेवलेपमेंट के लिए दूसरे राज्यों में जाकर प्रशिक्षण हासिल किया. बर्नाली बताती हैं कि उनके पिता स्वर्गीय तपन कुमार चक्रवर्ती भी हमेशा दूसरों की मदद के लिए खड़े रहते थे. उनकी सोच यही थी कि ऐसा काम किया जाये, ताकि आत्म संतुष्टि मिलने के साथ ही दूसरों की मदद भी की जा सके. उन्होंने करीब 200 लोगों के साथ में मिलकर संस्था युवा का शुभारंभ किया. 2005 में पोटका के 33 सेंटरों में ड्रॉप आउट ट्राइबल बच्चों को शिक्षा की राह से जोड़ने का प्रयास किया गया. काम करने के दौरान पता चला कि अंधविश्वास, शराब सेवन, बाल विवाह जैसी भ्रांतियां समाज में फैली हुई हैं. ऐसे में उन ग्रामीण इलाकों में सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर विकास के जरिये बुराइयों का विनाश करने की शुरुआत की. धीरे-धीरे परिवर्तन दिखायी देना शुरू हो गया. महिलाएं आत्मनिर्भर हो सकें, इसके लिए उन्हें स्वावलंबन की दिशा से जोड़ा. महिलाओं को प्रशिक्षित कर उन्नत खेती के बारे में समझाया, मेडिशनल प्लांट्स के लिए बाजार तैयार किया. पोटका इलाके में सर्वे के दौरान यह पता चला कि यहां पर बाल विवाह जैसी बात आम है. छोटी उम्र में बच्चों की शादियां करायी जा रही हैं. ऐसे में कई लड़कियों का रेस्क्यू कर उन्हें सुरक्षित जगह पर पहुंचाया गया. अंधविश्वास व डायन प्रथा सहित तमाम भ्रांतियों को मिटाने के उद्देश्य से ही सेल्फ हेल्प ग्रुप की शुरुआत की.—————डायन प्रथा के खिलाफ जारी है आंदोलन पूर्वी पॉल, डिमनापीजी करने के बाद से ही महिलाओं के हक के लिए पूर्वी पॉल आवाज उठाने लगीं. वे 1988 से इस दिशा में काम कर रही हैं. पूर्वी बताती हैं कि समाज के हर कोने में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ इस दिशा में कुछ करना चाहा. अकेले कोई कुछ हासिल नहीं कर सकता. इसलिए जहां भी कार्य किया, वहां सबसे पहले महिला समूह व संगठन बनाया. समाज में उन महिलाओं के साथ ज्यादा शोषण होता था, जो विधवा या अविवाहित थीं. ऐसे में एकल महिलाओं के विकास का लक्ष्य बनाकर उनके लिए कार्य करने में जुट गयीं. इस दिशा में सरकार ने भी काफी मदद की. महिलाओं को विधवा सम्मान योजना, विधवा पेंशन योजना, जमीन का पट्टा आदि जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाया. पूर्वी बताती हैं कि 90 के दशक में महिलाओं का शोषण आम था. महिलाओं को समान मजदूरी नहीं मिलती थी. ऐसे में पटमदा के इलाकों में पंचायत स्तर पर करीब 52 संगठनों का निर्माण कर इस दिशा में कदम उठाया. उस दौरान, डायन प्रथा, अंधविश्वास, महिला अत्याचार जैसी घटनाएं भी देखने को मिलती थीं. महिलाओं को पंचायत स्तर की बैठकों में हिस्सा तक लेने नहीं दिया जाता था. ऐसे में महिलाओं को संगठित कर पंचायत स्तर की बैठकों में अपनी मांगों व हक के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया. धीरे-धीरे इसका असर भी दिखने लगा. अंधविश्वास, शराब बंदी व महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार में कमी आयी. पटमदा, घाटशिला, डुमरिया, राजनगर, मनोहरपुर सोनुआ आदि ग्रामीण इलाकों में जाकर कार्य किया. ————–सोनारी की स्लम बस्तियों के विकास के लिए किया संघर्ष प्रभा जायसवाल, सोनारी1987 से शहर के साथ-साथ दूसरे जिलों में भी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ प्रभा जायसवाल लड़ रही हैं. वे बताती हैं कि लोगों की मदद करने की प्रेरणा उस वक्त मिली, जब वे सोनारी के स्लम एरिया गयीं. वहां के लोगों की दयनीय स्थिति देख उनके लिए काम करने की ठानी. इस अर्बन स्लम में न तो बिजली-पानी की व्यवस्था थी और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं. ऐसे में सबसे पहले शिक्षा के जरिये लोगों को एकजुट करने का प्रयास किया. साधन न होने के कारण पेड़ के नीचे कक्षाएं चलायीं व बच्चों में शिक्षा का अलख जगाया. प्रभा जायसवाल बताती हैं कि जिनका मुद्दा है, लड़ाई भी उन्हीं को लड़नी चाहिए. उन्होंने महिलाओं को एकजुट कर उन्हें अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया. किशोरियों को शिक्षित करने के साथ ही उन्हें यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूक किया. आज सोनारी के स्लम एरिया का नजारा बदला हुआ है. लोगों के पास बिजली, पानी है. महिलाएं भी सरकारी योजनाओं का लाभ ले रही हैं.नुक्कड़ नाटक के माध्यम से किया जागरूकप्रभा जायसवाल बताती हैं कि महिलाओं की जरूरत, उनके साथ होने वाली घरेलू हिंसा, शराब बंदी व इसके दुष्परिणाम के खिलाफ नुक्कड़ नाटक के जरिये लोगों को जागरूक किया. बस्ती में कई शराब की दुकानें थीं. शराब दुकानों को बंद कराने के लिए अभियान छेड़ा, नशामुक्ति के खिलाफ छोटे बच्चों से लेकर बड़ों को जागरूक किया.