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शक्षिा को बनाया तरक्की का औजार

शिक्षा को बनाया तरक्की का औजार बात जब भी शक्ति की होती है, तब देवियों का जिक्र होता है. असुर वध की बारी आती है, तो शक्ति मां दुर्गा के रूप में प्रकट होती हैं. जब धन-वैभव की कामना होती है, तो उसकी सिद्धि मां लक्ष्मी करती हैं. जब शिक्षा और ज्ञान की कामना होती […]

शिक्षा को बनाया तरक्की का औजार बात जब भी शक्ति की होती है, तब देवियों का जिक्र होता है. असुर वध की बारी आती है, तो शक्ति मां दुर्गा के रूप में प्रकट होती हैं. जब धन-वैभव की कामना होती है, तो उसकी सिद्धि मां लक्ष्मी करती हैं. जब शिक्षा और ज्ञान की कामना होती है, तो मां सरस्वती की उपासना ज्यादा सार्थक होती है. वास्तव में ये सभी देवियां शक्ति की ही रूप हैं. अपने समाज में भी इन देवियों की प्रतिरूप मौजूद हैं. कोई समाज के शक्ति प्रदान कर रही हैं, तो कोई धन-वैभव. कुछ ऐसी भी हैं, जो शिक्षा के जरिये समाज और भावी पीढ़ी को सशक्त बना रही हैं. नवरात्र के इस मौके पर लाइफ @ जमशेदपुर पेश कर रहा है कुछ ऐसी ही नारी शक्ति की स्टोरी, जो समाज में शिक्षा का उजियारा फैला रही हैं… —————गरीबी नहीं बन बनने देंगी अशिक्षा की बेड़ी रूबी दत्ता, परसूडीह कॉलेज के दिनों में मैं कुछ बच्चों को टयूशन पढ़ाती थी. एक परिवार ऐसा भी था जो बेहद गरीब था और उनके दो बच्चे मुझसे पढ़ते थे. परिवार में एक लड़की थी, जो पढ़ने में बहुत अच्छी थी पर आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण नहीं आती थी. उसके पढ़ने की चाह ने मुझे उसे पढ़ाने को तत्पर कर दिया और मैं रोज सुबह दो घंटे उसे फ्री में पढ़ाने लगी. यहीं से रूबी ने अपने कार्य को आगे बढ़ाया. शादी के बाद उन्होंने गरीब व वंचित वर्गों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने की ठान ली. 2003 से कुछ बच्चों के साथ उनके संकल्प का कारवां शुरू हुआ था, जो अब 35 बच्चों तक पहुंच चुका है. वह एलकेजी से लेकर कक्षा नौ तक के बच्चों को पढ़ाती हैं. इनकी मां किसी के घर नौकरानी का काम करती हैं या फिर खुद वे बच्चे कहीं काम करते हैं. इन बच्चों को आगे बढ़ने के लिए शिक्षा की जरूरत है और इनका यही दायित्व रूबी ने उठाया है. कई बच्चे रूबी से प्राथमिक पढ़ाई करने के बाद स्कूलों में दाखिला ले चुके हैं. उन्हीं में से एक है राहुल, जो 10वीं की परीक्षा देकर खुद कमा रहा है. अब वह अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए सक्षम है. ऐसे कई बच्चे हैं, जिन्होंने रूबी से शिक्षा ग्रहण की और साक्षर हुए. ———————-40 बच्चों के जीवन से दूर कर रहीं अज्ञानता का अंधेरा कविता दास, बिरसानगरकविता जहां रहती हैं, वहां वंचित वर्ग के बच्चों की संख्या काफी है. बचपन से ही उन्हें गरीबी और शिक्षा के अभाव में काम की तलाश में इधर-उधर भटकते देखा है. उनमें से कई के मां-बाप बेरोजोगार हैं. कविता बताती हैं- पैसे न होने की वजह से बच्चों को क्या-क्या दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, वह मैंने खुद अपने पिता के निधन के बाद जाना. इसलिए गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने की बात मन में उठी. जब मैं कक्षा नौ में थी उसी वक्त से ही मैंने बच्चों को घर पर ट्यूशन देनी शुरू कर दी थी. पहले तो मैं बच्चों से फीस लिया करती थी और उससे घर का थोड़ा-बहुत खर्च उठाया. इसके बाद जब भाई कमाने लगा और घर में पैसे की किल्लत नहीं रही, तो फिर मैंने सभी बच्चों की फीस माफ कर दी. 13 वर्षों से इस काम में जुड़ीं कविता आज 40 बच्चों को पढ़ाती हैं. कविता ने इन गरीब बच्चों को न केवल शिक्षा दी, बल्कि इनमें अच्छे संस्कारों का बीज भी रोपा. कविता अपने एक स्टूडेंट कार्तिक के बारे में बताती हैं, जो कि आज पार्ट वन में पढ़ रहा है और बहुत ही डिसप्लींड, वेल-बिहेव्ड और वेल मैनर्ड है. आगे भी कविता अपने इस काम को इसी तरह बरकरार रखना चाहती हैं, ताकि वे अपने ज्ञान से समाज की भलाई कर सकें.—————-निर्बल बच्चों में भर रही हैं शिक्षा का बल नूतन कुमारी, नीलडीह ग्वालाबस्तीसाकची इसीजी और इजी डिपार्टमेंट में कार्यरत नूतन पिछले एक साल से बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रही हैं. नूतन बताती हैं कि वह इतनी सक्षम नहीं हैं कि गरीब बच्चों को पैसे से मदद कर सकें, लेकिन इतनी सक्षम जरूर हैं कि उनकी जिंदगी में शिक्षा की रोशनी भर सकती हैं. कई बार आसपास के लोगों की आलोचनाएं सुनने को मिलती हैं कि इतने पढ़े-लिखे होने के बावजूद इन गरीब और वंचित परिवार के बच्चों को पढ़ा कर क्या मिलेगा? पर इन सब बातों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. अच्छे घरों के बच्चों को पढ़ाने वाले कई मिल जाएंगे पर ये बच्चे जिनके पास दो वक्त की रोजी रोटी का भी कोई उपाय नहीं है, उनको कम से कम अक्षर का ज्ञान तो दे ही सकती हूं. भविष्य में ये बच्चे बड़े ओहदे पर न सही पर कुछ ढंग का कमा तो सकते हैं. शिक्षा आज की जरूरत है पर गरीबों को शिक्षा देने वालों की कमी है. सरकारी विद्यालय तो हैं, पर सभी में शिक्षण की नीति सही नहीं है. नूतन बताती हैं कि इस कार्य में जो आत्म तृप्ति मिलती है, वो दिल को सुकून देती है. इस काम को शुरू करने में अनुरंजन उनकी प्रेरणा रहे हैं. पति तथा सास सहयोग करते हैं. ————————— प्रस्तुति : प्रिया सांडिल

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