21 को करें महाष्टमी व महानवमी के विहित अनुष्ठान

21 को करें महाष्टमी व महानवमी के विहित अनुष्ठानपंचांगों का अंतर ज्योतिषीय गणना एवं उसकी पद्धति में अंतर के कारणधार्मिक अनुष्ठानों में विवाद भूल एकरूपता लाने का प्रयास जरूरीलाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि को माता भगवती की उपासना के अनेक अनुष्ठान आयोजित किये जाते हैं. इस कारण इसे महाअष्टमी के रूप में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 16, 2015 9:29 PM

21 को करें महाष्टमी व महानवमी के विहित अनुष्ठानपंचांगों का अंतर ज्योतिषीय गणना एवं उसकी पद्धति में अंतर के कारणधार्मिक अनुष्ठानों में विवाद भूल एकरूपता लाने का प्रयास जरूरीलाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि को माता भगवती की उपासना के अनेक अनुष्ठान आयोजित किये जाते हैं. इस कारण इसे महाअष्टमी के रूप में जाना जाता है. अष्टमी तिथि का शुभारंभ आगामी मंगलवार (20 अक्तूबर) को दिवा 9:48 बजे से हो रही है, जो बुधवार (21 अक्तूबर) को प्रात: 8:41 बजे तक रहेगी. आचार्य एके मिश्र ने बताया कि चूंकि मंगलवार को सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि है, अत: महाष्टमी के लिए विहित पूजा, दुर्गा सप्तशती पाठ आदि को हम दिवा 10:12 बजे के बाद आरंभ कर सकते हैं. हालांकि, महाष्टमी का पूजन एवं महाष्टमी व्रत हमें बुधवार 22 अक्तूबर को ही करना होगा क्योंकि शास्त्रानुसार महाष्टमी व्रत सप्तमी युक्त होना वर्जित है, जबकि नवमी युक्त अष्टमी तिथि ग्राह्य मानी गयी है. मान्यता के अनुसार इस दिन देवी शक्ति धारण करती हैं और नवमी को पूजा, हवन आदि भी होता है, इस कारण से परंपरानुसार सप्तमी युक्त महाष्टमी में पूजन व्रतादि करने से पुत्र, स्त्री, धन आदि की हानि होना बताया गया है. चूंकि हमें सूर्योदय के समय अष्टमी बुधवार, 21 अक्तूबर को ही प्राप्त हो रही है, अत: महा अष्टमी के लिए विहित व्रत उसी दिन (21 अक्तूबर को ही) करना चाहिए. उसी दिन अलग-अलग पंचांगों के अनुसार महा नवमी पूजन, संधि पूजा, बलि पूजा आदि भी भिन्न-भिन्न समय पर होंगे. वैसे संधि पूजा के लिए उपयुक्त समय प्रात: 8:17 बजे से 9:05 बजे तक है. बलि पूजन प्रात: 8:41 बजे होगा, जबकि महा नवमी पूजन का शुभारंभ 21 अक्तूबर को ही दिवा 9:15 बजे के बाद आरंभ किया जा सकता है. इसी दिन नवरात्र के विहित हवन, कुमारी पूजन आदि का भी आयोजन किया जाना चाहिए.नवमी पूजन प्रात: 10:04 बजे से 11:20 बजे के बीच आरंभ कर दें. कुमारी पूजन अपराह्न 2:22 से संध्या 5:10 तकइसी दिन कुमारी पूजन, नवमी विहित हवन आदि भी इसी दिन कर लेना चाहिए. वृहस्पतिवार, 22 अक्तूबर को प्रात: 7:11 बजे तक नवमी तिथि होने के कारण विजया दशमी के विधान हमें प्रात: 7:12 बजे के बाद आरंभ कर देने चाहिएं. महा दशमी पूजा, अपराजिता पूजा आदि प्रात: 7:12 बजे से ही किये जा सकते हैं. इसके अलावा इसके लिए दिवा 10:04 से 11:30 बजे तक उत्तम तथा दिवा 11:31 से अपराह्न 2:21 बजे तक सर्वोत्तम समय है.अलग-अलग पंचांगों में अलग-अलग समयश्री मिश्र ने बताया कि भिन्न-भिन्न पंचांगों में अलग-अलग समय होने के कारण कहीं कहीं वृहस्पतिवार, 22 अक्तूबर नवमी पूजन एवं दशमी दोनों किये जा रहे हैं. किन्तु इसमें हमें यह देखना चाहिए कि नवमी पूजन के लिए हमें सूर्योदय उपरांत कम से कम 4 घटी का समय अवश्य मिलना चाहिए, जो वाराणसी, मिथिला, बंगला आदि पंचांगों में नहीं मिल रहा है. इसके कारण इन पंचांगों को मानने वाले लोग नवमी के लिए विहित पूजन, हवन, कुमारी पूजन आदि 21 अक्तूबर को ही करेंगे एवं 22 को दशमी के लिए विहित विधान करेंगे. ऐसा अंतर हमें स्थानीय समय, गणितीय गणना आदि में भेद के कारण देखने को मिल रहा है. किन्तु हमें कम से कम पूजापाठ, व्रत आदि में एकमत होकर सर्व मंगल के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर आयोजन का प्रयास करना चाहिए. यहां राष्ट्रीय पंचांग का जिक्र करना हम नहीं भूलें, जिसमें बहुत अधिक अंतर दिख रहा है. ऐसा अंतर निराण एवं अनुसायण पद्धति से गणना के कारण ही देखने को मिल रहा है. इसके मद्देनजर हमें इन विवादों में न पड़ कर धार्मिक अनुष्ठानों में एकरूपता का प्रयास करना चाहिए.

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