झारखंडी अस्मिता की अंदरूनी चुनौतियों पर हुआ मंथन

झारखंडी अस्मिता की अंदरूनी चुनौतियों पर हुआ मंथन(फोटो दुबे जी 3, 4 की होगी)सीताराम शास्त्री के स्मृति दिवस पर संगोष्ठी आयोजितझारखंडी अस्मिता की चुनौतियों पर बोले वक्ताछात्र युवा संघर्ष वाहिनी एवं जसवा का आयोजनजमशेदपुर : छात्र युवा संघर्ष वाहिनी एवं जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी की ओर से सीताराम शास्त्री के स्मृति दिवस पर सर्किट हाउस क्षेत्र […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 24, 2015 8:08 PM

झारखंडी अस्मिता की अंदरूनी चुनौतियों पर हुआ मंथन(फोटो दुबे जी 3, 4 की होगी)सीताराम शास्त्री के स्मृति दिवस पर संगोष्ठी आयोजितझारखंडी अस्मिता की चुनौतियों पर बोले वक्ताछात्र युवा संघर्ष वाहिनी एवं जसवा का आयोजनजमशेदपुर : छात्र युवा संघर्ष वाहिनी एवं जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी की ओर से सीताराम शास्त्री के स्मृति दिवस पर सर्किट हाउस क्षेत्र में जुटे बुद्धिजीवियों ने झारखंडी अस्मिता की रक्षा में बाधक बन रही आंतरिक कारकों पर गंभीरता से विमर्श किया गया. ‘झारखंडी अस्मिता की आंतरिक चुनौतियां’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में शामिल दोनों संगठनों के वक्ताओं के साथ ही अन्य संगठनों के लोगों ने भी अपने विचार रखे. वक्ताओं ने राज्य में झारखंडी अस्मिता को बरकरार रखने के मार्ग की बाधा बन रही आंतरिक स्थितियों की चर्चा की. साथ ही उन स्थितियों के लिए जिम्मेवार वाह्य कारणों पर भी प्रकाश डाला. वक्ताओं ने झारखंड की अस्मिता की मुख्य चुनौतियों में बाहरी लोगों के सांस्कृतिक-धार्मिक आरोपण के साथ ही लुटेरी एवं विस्थापित करने वाली विकास नीति को भी जिम्मेवार ठहराया. अनेक वक्ताओं ने लूट, दमन एवं विस्थापन का कारण बनने वाली शक्तियों के खिलाफ संगठित लड़ाई की कमजोरियों को पहचानने की जरूरत बतायी, तो कई अन्य ने आदिवासियों एवं झारखंडियों की दुर्दशा के लिए उनकी अपनी कमजोरियों को भी जिम्मेवार ठहराया. वक्ताओं ने कहा कि झारखंडी हासा-भाषा को बचाने के लिए सामाजिक – राजनीतिक एकजुटता भी नहीं बना पाते, एकजुट होकर वोट नहीं करते, वोट बेच देते हैं, यहां तक कि आदिवासी मुख्यमंत्री भी भ्रष्टाचार में लिप्त होकर झारखंडी जनता के हितों की बलि चढ़ा डालते हैं. वक्ताओं ने झारखंडी अस्मिता की रक्षा के लिए समता, स्वतंत्रता, सम्मान जैसे सकारात्मक तत्वों के आधार पर समाज निर्माण, उसके लिए जनता में एकजुटता लाने तथा व्यापक एकता के आधार पर चुनौतियों से निपटने की जरूरत पर बल दिया. मदन मोहन एवं कुमार दिलीप के संचालन में आयोजित संगोष्ठी में अरविंद अंजुम ने विषय प्रवेश कराया, जबकि पूर्णेंदु महतो, रवि कुमार, अमर सेंगेल, जयनंदन, गौतम बोस, ठाकुर प्रसाद, सियाशरण शर्मा, कपूर बागी, जवाहरलाल शर्मा, अजय कुमार, मनमोहन पाठक, सालखन मुर्मू, दिनेश शर्मा, नसर फिरदौसी, हरमोहन महतो, आरबी साहू, विजेंद्र शर्मा, प्रेरणा आदि ने अपने विचार रखे.

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