एसो मां लक्खी बोसो घोरे…
एसो मां लक्खी बोसो घोरे… लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर बंगाली समाज में दुर्गोत्सव की पूरक पूजा के रूप में देवी लक्ष्मी (कोजागरी लक्खी पूजा) के पूजन का विधान है. इसके तहत शारदीय दुर्गा पूजा के बाद उसी पंडाल में लक्ष्मी, काली या मां सरस्वती की पूजा की जाती है. सोमवार की शाम बंगाली समाज के […]
एसो मां लक्खी बोसो घोरे… लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर बंगाली समाज में दुर्गोत्सव की पूरक पूजा के रूप में देवी लक्ष्मी (कोजागरी लक्खी पूजा) के पूजन का विधान है. इसके तहत शारदीय दुर्गा पूजा के बाद उसी पंडाल में लक्ष्मी, काली या मां सरस्वती की पूजा की जाती है. सोमवार की शाम बंगाली समाज के लोग अपने-अपने घरों में धूमधाम से लक्खी पूजा करेंगे. इसकी तैयारी प्रारंभ हो गयी है. लक्खी पूजा के दिन घर की विवाहिताएं दिन भर व्रत रखने के बाद शाम को कथा सुनती हैं. घरों में अल्पना से मां लक्ष्मी के पैरों की छाप बनाई जाती है. मान्यता है कि रात को मां भक्तों के घर आती हैं और उन्हें धन-धान्य से भर देती हैं. इस विश्वास के साथ घरों के दरवाजे भी खुले रखे जाते हैं. यह भी माना जाता है कि इस रात देवी लक्ष्मी ऐरावत पर सवार हो पृथ्वीलोक का भ्रमण करती हैं. ऐसे में इस पूजा को कोजागरी उत्सव के नाम से भी जाना जाता है. पूजा अनुष्ठान के दौरान गुड़, चूड़ा, लाई, ढूंढा, नारियल का लड्डू, पांच प्रकार के फल के साथ अन्नभोग भी अर्पित किया जाता है. रात में धान की बाली, सोना-चांदी व कौड़ी से मां लक्ष्मी का शृंगार किया जाता है. रात्रि जागरण के साथ भक्तगण मां लक्ष्मी का भजन करते हैं.————–(फोटो आरडी वन- टू)मुकुटी परिवार की कुलदेवी हैं मां लक्खी बाराद्वारी निवासी मुकुटी परिवार में मां लक्खी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती हैं. पूजा की शुरुआत बांग्लादेश में हुई थी. 1925 से यह पूजा लौहनगरी में हो रही है. स्वर्गीय अमृत लाल मुकुटी द्वारा प्रारंभ की गयी इस पूजा को उनके आठ बेटे मिलकर कर रहे हैं. पूजा की तैयारी घर की महिलाएं करती हैं अौर भोग बनाने की जिम्मेदारी पुरुषों के कंधों पर होती है. इसीसी फ्लैट, कदमा में 30 वर्षों से ही रही पूजाकदमा निवासी अरुण कुमार के पूर्वजों ने लक्खी पूजा की शुरुआत बांग्लादेश से की थी. अरुण के पिता स्वर्गीय सत्य भूषण विश्वास जब शहर पहुंचे तो उन्होंने यहां पूजा शुरू की. आज भी यहां पत्तल की थाली में ही भक्तों को प्रसाद खिलाया जाता है. इस बार भी प्रसन्नजीत पाल द्वारा बनायी गयी प्रतिमा स्थापित की जायेगी. नयी प्रतिमा को स्थापित कर पुरानी का विसर्जन किया जाता है. ——-मिथिलावासी मनाते है कोजागरामिथिलांचल के लोग शरद पूर्णिमा को कोजागरा के रूप में मनायेंगे. इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है. लोग रात्रि जागरण भी करते हैं. मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी अपने भक्तों को वरदान देने के लिए अर्धरात्रि में घूमती हैं. जो रात्रि जागरण करते हुए मां की पूजा-आराधना करते हैं, उन्हें ही वैभव-संपदा का आशीर्वाद मिलता है. इसी लिए इस व्रत को कोजागरा (को जाग रहा) भी कहा जाता है. मिथिला क्षेत्र में नव विवाहितों के लिए यह विशेष महत्व रखता है. इस दिन नवविवाहित पुरुष का चुमावन किया जाता है. इस अवसर पर वधू पक्ष की ओर से वर के परिवार के लिए नये वस्त्र दिये जाते हैं. वधू पक्ष की ओर से पान, मखाना, दही, मछली, मिठाई आदि की सौगात भी वर पक्ष को भेजा जाता है. भार आने पर वर पक्ष की ओर से भोज देने की परंपरा भी है.