प्रदर्शन/ घेराव, नारे / जीने के सहारे

प्रदर्शन/ घेराव, नारे / जीने के सहारे(फोटो दामिनी के नाम से सेव है)पुस्तक चर्चापुस्तक का नाम : दामिनी (हिंदी क्षणिकाएं)रचनाकार : मनोकामना सिंह ‘अजय’ प्रकाशक : सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन / तुलसी भवनमूल्य : 80 रुपयेआधुनिक जीवन की आपाधापी का मनुष्य पर सबसे बुरा प्रभाव यह रहा कि किसी के पास समय नहीं. समयाभाव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2015 9:58 PM

प्रदर्शन/ घेराव, नारे / जीने के सहारे(फोटो दामिनी के नाम से सेव है)पुस्तक चर्चापुस्तक का नाम : दामिनी (हिंदी क्षणिकाएं)रचनाकार : मनोकामना सिंह ‘अजय’ प्रकाशक : सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन / तुलसी भवनमूल्य : 80 रुपयेआधुनिक जीवन की आपाधापी का मनुष्य पर सबसे बुरा प्रभाव यह रहा कि किसी के पास समय नहीं. समयाभाव ने जिंदगी को हर क्षेत्र में प्रभावित किया, किन्तु मनुष्य ने हर परिस्थिति का विकल्प तलाश लिया. साहित्य के क्षेत्र में इस विकल्प की तलाश हमें साहित्य की विभिन्न विधाओं के रूपाकार में परिवर्तन के रूप में दिखता है. काव्य-क्षेत्र में महाकाव्य से लेकर क्षणिकाओं एवं हाइकू तक की विधाएं विकल्प के इसी तलाश का प्रतिफल हैं, जिसने साहित्यकारों को ‘कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक बातें कहने की क्षमता’ प्रदान की. आधुनिक साहित्य में क्षणिकाओं ने अपना अलग स्थान बनाया है, जिसमें साहित्यकार कम शब्दों में अपनी रचनाएं प्रस्तुत करता है और पाठक उन थोड़े शब्दों में निहित भावों तथा कलात्मक अभिव्यक्तियों तक पहुंचकर उनका आनंद लेेता है. इसमें रचनाकार पाठक को अभिप्रेत भाव या उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति के समक्ष लाकर खड़ा कर देता है, इसके आगे कला को समझने का दायित्व पाठक पर आ जाता है. जाहिर है कि यह कलाकार की कला और पाठक की समझ दोनों की परीक्षा जैसा ही है. मनोकामना सिंह ‘अजय’ शहर के ऐसे ही साहित्यकार हैं जिन्हें क्षणिकाएं रचने में महारत हासिल है. उनकी क्षणिकाओं के सद्य: प्रकाशित संग्रह ‘दामिनी’ का लोकार्पण मंगलवार (27 अक्तूबर) को संध्या 5:00 बजे से तुलसी भवन में होने जा रहा है. श्री ‘अजय’ की क्षणिकाएं आरंभ से ही सामाज एवं व्यवस्था की विद्रूपताओं एवं विडंबनाओं पर उंगली रखती रही हैं. उनके वर्तमान संग्रह में संकलित क्षणिकाएं भी इसी कोटि की हैं जिनमें राजनीति, समाज एवं मनुष्य में आ रहे स्वभावगत किन्तु अस्वीकार्य परिवर्तनों को सामने रखने का प्रयास किया गया है. इस प्रयास में वे हर संभव उपादान, हर मिथक, हर घटना का उपयोग करने की अपनी महारत दिखा पाने में सफल रहे हैं. वे कहते हैं, ‘लव के घर रहते राम / कुश के घर रहती सीता / पूछता नहीं कोई उनसे / रात कैसे बीती / दिन कैसे बीता।’ यह लघुकाय क्षणिका आधुनिक सामाजिक बदलावों की विद्रूपता को सहज ही सामने ला खड़ा करती है. इसी तरह वर्तमान राजनीतिक माहौल को बयां करती क्षणिका देखें – ‘कल विपक्ष का बंद / तो आज पक्ष का बंद / भुगत रहे हम / जरूरत मंद।’ या फिर -‘प्रदर्शन/ घेराव, नारे / जीने के सहारे।’ अजय जी की ये क्षणिकाएं अपनी अभिव्यक्ति में वर्तमान का आईना बन जाती हैं. इसी तरह उनकी क्षणिकाएं बहुत थोड़े शब्दों में वर्तमान जीवन की विडंबनाओं को उनकी पूरी भयावहता में सामने ला खड़ा करती हैं. सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन / तुलसी भवन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक अपने रचनाकार को तो लोकप्रियता प्रदान करायेगी ही, नगर के साहित्य जगत की श्रीवृद्धि भी करेगी, इसमें संदेह नहीं. दामिनी का लोकर्पण आजमनोकामना सिंह ‘अजय’ की क्षणिकाओं का संग्रह ‘दामिनी’ का लोकार्पण मंगलवार, 27 अक्तूबर को तुलसी भवन में होगा. संध्या 5:00 बजे से डॉ बच्चन पाठक सलिल की अध्यक्षता में आयोजित लोकार्पण समारोह में कोल्हान विवि के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ बालमुकुंद पैनाली पुस्तक का लोकार्पण करेंगे.

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