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हेडिंग::: नहाय-खाय के साथ छठ व्रत प्रारंभ

हेडिंग::: नहाय-खाय के साथ छठ व्रत प्रारंभ फ्लैग::: व्रतियों ने जलाशयों व घरों में स्नान कर ग्रहण किया कद्दू-भात व चना दाल का भोग लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर लोकआस्था का महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ रविवार से प्रारंभ हो गया. व्रतियों ने नदी व तालाबों के साथ-साथ घरों में जल को गंगा जल से शुद्ध […]

हेडिंग::: नहाय-खाय के साथ छठ व्रत प्रारंभ फ्लैग::: व्रतियों ने जलाशयों व घरों में स्नान कर ग्रहण किया कद्दू-भात व चना दाल का भोग लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर लोकआस्था का महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ रविवार से प्रारंभ हो गया. व्रतियों ने नदी व तालाबों के साथ-साथ घरों में जल को गंगा जल से शुद्ध कर स्नान किया. इसके बाद भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करने के बाद व्रत की आज की विधि पूरी की. स्नान व अर्घ्य के बाद व्रतियों ने शुद्ध तरीके से अरवा चावल का भात, कद्दू की सब्जी व चने की दाल का भोग तैयार किया. इन सामग्री को उन्होंने सबसे पहले अपने इष्टदेव तथा कुलदेव को ग्रास के रूप में अर्पित किया. इसके बाद व्रतियों ने स्वयं उसे ग्रहण किया. इस आहार को ही बाद में घर के बाकी सदस्यों तथा इष्ट-मित्रों ने भी प्रसाद के रूप में ग्रहण किया. नहाय-खाय को छठ व्रत के प्रथम संयम के रूप में भी जाना जाता है. शाम में भी व्रतियों को शुद्ध खाना ही खाना होता है. उधर, नहाय-खाय के नियम के बाद व्रतियों तथा उनके परिजनों ने व्रत के लिए गेहूं सुखाया. आज ही छठ व्रत में प्रयुक्त होने वाली अधिकांश सामग्रियों की भी खरीदारी कर ली गयी. हालांकि, बाजार में आम की लकड़ी की किल्लत रही. इसके कारण उसकी कीमतों में भी काफी इजाफा देखा गया. खरना (द्वितीय संयम) आज नहाय-खाय के बाद छठ महापर्व का दूसरा एवं सबसे महत्वपूर्ण नियम खरना यानी द्वितीय संयम कल है. इस दिन व्रती सुबह शुद्धता से स्नान करने के बाद व्रत के काम निपटाती हैं. दोपहर बाद वे नदी, तालाब या कुआं आदि के जल से शुद्धता के साथ स्नान करती हैं तथा वहीं से शुद्ध जल घर लाकर उसी जल से खरना का प्रसाद (रोटी व खीर आदि) तैयार करती हैं. कुछ जगहों पर रोटी व खीर के अलावा सेंधा नमक डाल कर सब्जी आदि बनाने की परंपरा है. पंडित एके मिश्रा के अनुसार इसमें व्रती को अपनी कुल परंपरा का निर्वाह करना चाहिए. उन्होंने बताया कि पंचमी तिथि वैसे तो रात 12:14 बजे तक है, लेकिन सूर्यास्त शाम 5:00 बजे के करीब हो रहा है. खरना के लिए उपयुक्त समय प्रदोष काल में शाम 5:48 बजे से रात 8:15 बजे तक है. इस बीच व्रतियों को कम से कम पूजा की विधि जरूर शुरू कर देनी चाहिए. खरना में सबसे पहले षष्ठी माता के निमित्त भोग अर्पित करें. इसके बाद अपने कुल देव व इष्ट देव को भोग लगायें. प्रसाद खुद ग्रहण करने के बाद ही अपने परिजनों और मित्रों को दें. हां, छठ व्रत के दौरान अपने कुल व परंपरा को ही तरजीह देनी चाहिए.खरना का उपयुक्त समय शाम 5:48 से रात 8:15 तक शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला उपवास छठ महापर्व में खरना के साथ ही 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. यानी, खरना का भोग (पंचमी की शाम) ग्रहण करने के बाद व्रती षष्ठी को शाम का अर्घ्य देती हैं. इसके बाद सप्तमी की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही व्रती पानी भी ग्रहण करती हैं. यानी, खरना के बाद वह जल भी ग्रहण नहीं करतीं. आम की लकड़ी का विकल्प भी पंडित एके मिश्रा के अनुसार आम की लकड़ी की कम उपलब्धता की स्थित में प्रसाद आदि तैयार करने के लिए विकल्पों का इस्तेमाल किया जा सकता है. प्रसाद आदि आम की लकड़ी पर बनाना ही शुद्ध माना गया है, किन्तु वह उपलब्ध नहीं होने पर प्रसाद बनाने की कम से कम शुरुआत आम की लकड़ी से की जानी चाहिए.

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