बुलंद हो रही नारी हित की आवाज :::::इंटरनेशनल डे ऑन वायलेंस अगेंस्ट वीमेन आज:::: वैसा कोई भी फील्ड नहीं, जहां आज लड़कियां मुकाम हासिल न कर पायी हों. कई क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहां वह लंबे समय से पुरुषों के मुकाबले आगे हैं. इसके बावजूद समाज में आज भी उन्हें अबला समझा जाता है. उन पर अत्याचार किया जाता है. कुछ महिलाएं अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाती हैं. और जमाना उनके खिलाफ हो जाता है. उन्हें घर छोड़ना पड़ता है. देश छोड़ना पड़ता है. गोलियों से भून दिया जाता है. जहर दे दिया जाता है. इसके बावजूद विरोध का स्वर नहीं थमा. पुरुष सतात्मक समाज में महिलाएं सत्ता संतुलन के लिए अपने हक की आवाज बुलंद कर रही हैं. बुधवार को इंटरनेशनल डे ऑन वायलेंस अगेंस्ट वीमेन मनाया जाएगा. बुक फेयर भी चल रहा है. इस अवसर पर हम ने अपनी कवर स्टोरी को महिलाओं की आवाज को सशक्त करतीं लेखिकाओं व उनकी रचनाओं पर केंद्रित किया है. पढ़िये लाइफ @ जमशेदपुर की खास पेशकश : ————1981 से हो रहा आयोजन हर साल ‘अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ विश्व भर में व्यापक तौर पर मनाया जाता है. इस दन का आयोजन 1981 से ही हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 17 दिसंबर 1999 को इसे अनुमोदित किया. 25 नवंबर 1960 को डोमिनिकन गणराज्य की तीन बहनों की वहां के तानाशाह शासक रफेल ट्रूजीलो ने निर्दयतापूर्वक हत्या करा दी थी. इस दिवस पर कार्यक्रमों के आयोजन का उद्देश्य महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़न व हिंसा के खिलाफ आवाज को बुलंद करना तथा एेसी हरकतों को रोकना है.—————————कट्टरपन के खिलाफ बेबाक लेखन चार कन्या तसलीमा नसरीन कीमत : 195 रुपये———-लज्जा तसलीमा नसरीन कीमत : 150 रुपये राधाकृष्ण प्रकाशन की किताब ‘चार कन्या’ लेखिका की दूसरी किताबों की तरह नारी हक में लिखी गयी है. इस किताब में ग्रामीण समाज में चार कन्याओं की स्थिति तथा उत्पीड़न का ब्योरा पेश किया गया है. यह यमुना, शीला, झुमुर व हीरा की कहानी है. यमुना अपने अधिकार के प्रति जागरूक है. उसे समाज के विरोध का सामना करना पड़ता है. शीला अपने प्रेमी द्वारा ठगी जाती है. दो अन्य कन्याओं की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. ‘लज्जा’ बांग्ला भाषा में लिखा गया उपन्यास है. बाद में इसका हिन्दी समेत कई भाषाओं में अनुवाद हुआ. यह उपन्यास सांप्रदायिक उन्माद के नृशंस रूप को रेखांकित करता है. इस्लामी कट्टरपन को उसकी पूरी बर्बरता से सामने लाने के कारण उन्हें इस्लाम विरोधी बता दिया गया और मौत का फतवा भी जारी किया गया. यहां तक कि उन्हें अपने बांग्लादेश से निकाले जाने पर भारत में आकर शरण लेना पड़ा. ————-छोटी उम्र में बाल विवाह के खिलाफ लिया लोहा द स्ट्रेंथ टू से नो लेखिका : रेखा कालिंदी व माउसीन इनाइमी कीमत : 299 रुपये पैंगविन प्रकाशन की इस किताब का प्रकाशन 2015 में हुआ. अंग्रेजी में लिखी इस किताब में बंगाल के सुदूर गांव की रहने वाली रेखा कालिंदी की कहानी है. रेखा के गांव में लड़कियों की छोटी उम्र में ही शादी कर दी जाती है. इसको लेकर रेखा ने आवाज उठायी. 11 साल की उम्र में शादी करने से इनकार कर समाज से लोहा लिया. इस कारण उसे प्रताड़ना का शिकार भी होना पड़ा. उसने 2010 में इंडिया नेशनल ब्रेवरी अवॉर्ड हासिल किया. ——————————-यौन हिंसा के खिलाफ आवाज उठाती किताब अरुणा स्टोरी लेखिका : पिंकी विरानी कीमत : 299 पैंगविन प्रकाशन की यह किताब 1998 की है. इसमें लेखिका पिंकी विरानी ने अरुणा के साथ घटी ऐसी वारदात को अपनी कलम के जरिये पेश किया है, जिसके चलते उसकी हंसती-खेलती जिंदगी जीती-जागती लाश में तब्दील हो जाती है. इस किताब में अरुणा के साथ हुए यौन हिंसा का उल्लेख है. इसके बाद वह कोमा में चली जाती है. कोमा में जाने के कारण व वक्त के गुजरने के साथ अपने भी मुंह मोड़ लेते हैं. किताब में तमाम ऐसी बातों को समेटा गया है. ————–बेटियों के अपमान व उपेक्षा की कहानी गंगा चली गईलेखिका : माधुरी मिश्राकीमत : 125 रुपये अभिधा प्रकाशन की इस किताब का पहला संस्करण 2012 में निकला. लेखिका शहर की ही हैं. माधुरी मिश्रा की इस किताब में सभी कहानियां महिलाओं को समर्पित हैं. एक कहानी में किशोरियों को लालच देकर आतंकवाद की ओर ले जाया जाता है, इस पहलू को बताया गया है. अपमानित व उपेक्षित बेटियों की स्थिति को मार्मिक कहानी के जरिये पेश किया है. इसके साथ ही तमाम ऐसी कहानियां हैं, जो महिलाओं से जुड़ी हैं. —————————मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की किताब परदा लेखक : मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी कीमत : 140 रुपये इस्लामी साहित्य ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित यह किताब उर्दू में है. पेशे से वकील रह चुके मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी ने इस किताब में महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक अधिकारों के साथ उनकी तालीम को विस्तारपूर्वक बताया है. किताब में स्त्री का सम्मान, रक्षा और उसकी हिफाजत करना, समाज का सदैव परम कर्तव्य है, इन बातों को बताया गया है. उर्दू के साथ-साथ इस किताब का अनुवाद हिंदी भाषा में भी है. ———————–महिलाओं के कानूनी व राजनीतिक अधिकार पर बात राइट ऑफ वीमेन इन इस्लाम लेखक : जाकिर नायक कीमत : 30 रुपये मधुर संदेश संगम द्वारा प्रकाशित इस किताब में इस्लाम के आधार पर महिलाओं के हक की बात बतायी गयी है. अंग्रेजी में लिखी इस किताब में स्प्रीचुअल अधिकार के साथ-साथ आर्थिक अधिकार को भी बताया गया है. मां, बहन, पत्नी व स्त्री के सभी रूप में उनके अधिकार को विस्तारपूर्वक विवरण किया गया है. लीगल अधिकार के साथ राजनीतिक अधिकारों का भी समावेश इस किताब में है. —————————-महिलाओं की दशा व दिशा की कहानी झारखंड में महिला सशक्तीकरण लेखिक : राज श्रीवास्तव कीमत : 150 केके पब्लीकेशन द्वारा 2011 में निकाली गयी इस किताब की लेखिका राज श्रीवास्तव है. किताब में झारखंड के माहौल के अनुसार महिला सशक्तीकरण की दशा व दिशा के बारे में बताया गया है. इसमें गतिशील समाज व महिलाओं के अस्तित्व के संघर्ष की गहराई देखने को मिलती है. —————————–श्रमिक महिलाओं के पलायन का विवरण झारखंड की श्रमिक महिलाएं लेखक : आलोका कीमत : 50 रुपये केके पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में झारखंड की श्रमिक महिलाओं की स्थिति के बारे में बताया गया है. किताब में झारखंड व अन्य स्थानों की महिलाओं का दूसरे राज्यों में हो रहे पलायन व औरतों की स्थिति पर आधारित शोध रिपोर्ट है. यह किताब औरतों की पहचान, सुरक्षा, भूख, काम पाने व आर्थिक तंगी जैसे तमाम सवालों को अपने में समेटे हुए है. बढ़ते तकनीकी युग के कारण कम होते रोजगार की बातें भी इस किताब में हैं. ————————-नारी के दर्द की कहानी मेरा जामन होयलेखक : समरस मजूमदार कीमत : 125 रुपये मित्र एंड घोष पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित यह किताब बांग्ला भाषा में है. इसमें ऐसी नारी के दर्द को कहानी के जरिये प्रस्तुत किया गया है, जो जन्म होने पर मां की मृत्यु होने के बाद परेशानियों से घिरी रही. इसके उसकी परेशानियों के बारे में लिख गया है.———————-सुझाये आत्मरक्षा के गुर लड़कियां अपनी आत्मरक्षा कैसे करेंलेखक : लव कुमार सिंह कीमत : 140 रुपये किताब महल द्वारा प्रकाशित इस किताब में लव कुमार सिंह ने लड़कियों की हिफाजत के तरीके सुझाये हैं. इस किताब में ऐसी व्यावहारिक जानकारियां, सावधानियां व उपाय हैं, जिसके जरिये जरूरत पड़ने पर महिला या लड़कियां खुद अपनी हिफाजत कर सकती हैं. ————————-स्त्री की आजादी पर की बातबाजार के बीच : बाजार के खिलाफ लेखिका : प्रभा खेतान कीमत : 300 रुपये वाणी प्रकाशन द्वारा 2010 में प्रकाशित की गयी इस किताब में प्रभा खेतान ने स्त्री की आजादी पर बात की है. इसमें स्त्री की शक्ति व स्त्री असुरक्षा जैसे मुद्दों पर विचार हैं. —————————सामाजिक बुराइयों के खिलाफ एक किताब औरत होने की सजालेखक : अरविंद जैन कीमत : 80 रुपये राजकमल पेपर बैग्स द्वारा प्रकाशित इस किताब में समाज में महिलाओं के साथ घटित घटनाओं को पेश किया गया है. इसमें लिंग परीक्षण, कन्यादान, कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न, शोषण से दबी स्त्री जैसे मुद्दों पर अरविंद जैन ने बातों को रखा है. ————————–महिलाओं के कानूनी अधिकार का ब्योरा किताब : महिला कानूनी अधिकार कीमत : 80 रुपये धीरज पॉकेट बुक्ट द्वारा प्रकाशित गयी इस किताब में भारत सरकार द्वारा महिलाओं की सुरक्षा, स्वतंत्रता व समानता के अधिकारों को लेकर बनाये गये अधिनियमों की सम्पूर्ण जानकारी दी गयी है. इसके जरिये महिलाएं अपने कानूनी अधिकार जान सकती हैं.——————- ——–कोट्स यह जरूरी है कि महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की बातें महिलाएं जानें. किताबों से महिलाओं के अधिकार व महिला सशक्तिकरण की बातें पता चलती हैं. -रंजू वर्मा, बारीडीहकिताबों से काफी कुछ नया जानने को मिलता है. महिला हिंसा व महिला सशक्तीकरण की बातें, वैसे लोग भी जान पाएंगे, जो इससे वंचित थे. -सीमा अग्रवाल, कदमामहिलाओं के मुद्दों को किताबों के जरिये पेश किया जाना काफी अच्छी बात है. महिलाओं के साथ हिंसा न हो इसके लिए खुलकर बहस होनी जरूरी है. -एस मजूमदार, नीलडीह किताबों के जरिये केवल महिलाएं ही नहीं, हर वर्ग जागरूक होता है. ऐसे में जरूरी है कि इसका विस्तारीकरण हो. ऐसी किताबें आज हमारे पास मौजूद है, जिससे नारियां और भी मजबूत हो सकती हैं. -तनुजा झा, टेल्को महिला हिंसा व महिला सशक्तीकरण जैसी किताबों को पुरुषों को भी पढ़ना चाहिए. महिलाएं इन किताबों की रीडर तो हैं ही. इससे समाज को बेहतर किया जा सकता है. -राबिया जमिल, जुगसलाई महिला हिंसा को रोकने के लिए जरूरी है आवाज उठाना. किताबों के जरिये ही सही, कई लोग इस दिशा में लगे हुए हैं. -श्वेता राज, बेल्डीहइन किताबों से हमें महिलाओं के साथ हुए शोषण जैसी बातों का पता चलता है. ये किताब समाज में महिलाओं की स्थिति का आईना हैं. जरूरी है कि लोग ऐसी किताबों को भी खरीदें.-पी वाहिनी, धोड़ाबांधा महिला हिंसा व सशक्तीकरण जैसी किताबें महिलाओं में लोकप्रिय तो हैं ही, जरूरी है कि यह पुरुष वर्ग में भी लोकप्रिय हों. वे भी किताबों को पढ़ें.-सुदीपा कर्मकार, सोनारी
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