32 साल बाद बरसेगी अल्लाह की ऐसी रहमत

32 साल बाद बरसेगी अल्लाह की ऐसी रहमत-एक अंग्रेजी कैलेंडर में दो बार पड़ा ईद मिलादुन्नबी – ईद मिलादुन्नबी कल संजीव भारद्वाज, जमशेदपुर 2015 में दोबारा अल्लाह के रसूल माेहम्मद साहब की याैम ए- पैदाइश यानी ईद मिलादुन्नबी का त्याेहार मनाया जायेगा. हाजी हाफिज असरार अहमद करते हैं कि यदि यह त्योहार साल में दो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 22, 2015 8:15 PM

32 साल बाद बरसेगी अल्लाह की ऐसी रहमत-एक अंग्रेजी कैलेंडर में दो बार पड़ा ईद मिलादुन्नबी – ईद मिलादुन्नबी कल संजीव भारद्वाज, जमशेदपुर 2015 में दोबारा अल्लाह के रसूल माेहम्मद साहब की याैम ए- पैदाइश यानी ईद मिलादुन्नबी का त्याेहार मनाया जायेगा. हाजी हाफिज असरार अहमद करते हैं कि यदि यह त्योहार साल में दो बार आए, तो इसे अल्लाह की रहमत समझें. 32 साल बाद ऐसा संयोग आया है. 24 दिसंबर को ईद मिलादुन्नबी मनाया जायेगा. इसके पहले इसी साल 4 जनवरी को ईद मिलादुन्नबी मनाया गया था. अरबी कैलेंडर के मुताबिक रबी उल अव्वल पैगंबर ए इसलाम के जन्म का पावन महीना है. मसजिदाें आैर दरगाहों पर लोग ईदमिलादुन्नबी का इस्तकबाल करने के लिए तैयारियों में जुट गये हैं.लूनर कैलेंडर है वजह दुनिया में दो तरह के कैलेंडर हैं. सूर्य पर आधारित सोलर कैलेंडर कहलाता है. वहीं चंद्रमा पर आधारित लूनर कैलेंडर कहते हैं. ईसाइयों का कैलेंडर सोलर कैलेंडर है. वहीं इस्लामिक व हिंदू कैलेंडर चंद्र मास पर आधारित हाेते हैं. चंद्र मास में लगभग 28 दिन होते हैं. इसी वजह से त्योहार आगे-पीछे खिसकते रहते हैं. हिंदू कैलेंडर में हर चार साल पर मलमास की व्यवस्था है. इस वजह से त्योहार ज्यादा आगे-पीछे नहीं खिसकते, लेकिन इस्लामिक कैलेंडर में एेसी काेई व्यवस्था नहीं हाेने के कारण त्योहार आगे-पीछे खिसक जाते हैं. 1852 से 2015 तक छह बार आया ऐसा मौका वर्ष 1852 में 05 जनवरी और 24 दिसंबर वर्ष 1884 में 11 जनवरी और 30 दिसंबर वर्ष 1917 में 06 जनवरी और 26 दिसंबर वर्ष 1950 में 02 जनवरी और 22 दिसंबर वर्ष 1982 में 08 जनवरी और 28 दिसंबर वर्ष 2015 में 04 जनवरी और 24 दिसंबरकुरआन का हुक्म है कि अल्लाह की रहमत और उसका फजल हासिल होने पर खुशी मनाया करो. पैगंबर साहब अल्लाह की सबसे बड़ी नियामत हैं. उनकी पैदाइश पर हमें बढ़-चढ़कर खुशी का इजहार करना चाहिए. अल्लाह के रसूल की यौम ए पैदाइश का जश्न मनाने का मौका साल में दूसरी बार मिल रहा है. – हाजी हाफिज असरार अहमद, सदर फारुकी मसजिद, शास्त्रीनगर

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