महंगाई की मार झेल रहा मिठाई उद्याेग

जमशेदपुर : स्टील उद्याेग जिस तरह मंदी की मार से परेशान है, वैसा ही हाल कुछ जमशेदपुर के मिठाई उद्याेग का भी हाेता दिख रहा है. 200 कराेड़ रुपये का सालाना काराेबार करनेवाला मिठाई उद्याेग कई तरह के झंझावताें में फंसता दिख रहा है. ईमानदारी के साथ मिठाई का काराेबार करनेवाले कुछ बड़े दुकानदाराें ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 29, 2016 9:09 AM
जमशेदपुर : स्टील उद्याेग जिस तरह मंदी की मार से परेशान है, वैसा ही हाल कुछ जमशेदपुर के मिठाई उद्याेग का भी हाेता दिख रहा है. 200 कराेड़ रुपये का सालाना काराेबार करनेवाला मिठाई उद्याेग कई तरह के झंझावताें में फंसता दिख रहा है.
ईमानदारी के साथ मिठाई का काराेबार करनेवाले कुछ बड़े दुकानदाराें ने डूब रहे इस उद्याेग में अपनी जिंदगी सुरक्षित बचाने के लिए इससे दूरी बनाने का फैसला कर लिया है. साकची, बाराद्वारी, काशीडीह, बिष्टुपुर, टेल्काेे में कुछ प्रमुख दुकानें बंद हाे चुकी हैं, जबकि शहर में मिठाई हाेटल की चेन चलाने वाला एक बड़ा ग्रुप खुद काे इससे अलग करने का मन बना चुका है. इसका असर अगले 10 दिनाें में दिखने लगेगा.
मंदी के कारणाें में सरकारी नियम कानून ताे अपनी जगह है ही, इसके अलावा स्कील मैन पावर, खटाल की लगातार कमी आैर शहर में डायबिटीज मरीजाें की लगातार वृद्धि काे भी मुख्य कारण माना जा रहा है. जमशेदपुर में 1991-92 में काेलकाता की तर्ज पर इक्का-दुकानाें का संचालन बेहतर ढंग से किया जाना शुरू हुआ. इसमें रसगुल्ला, खीरकाटी आैर दही का स्वाद कुछ अलग ही लगता था. इसके बाद इस पेशे से जुड़े लाेगाें ने अपनी दुकान-प्रतिष्ठान काे मॉडिफाइ करते हुए बाहर से कारीगर मंगवाये आैर बड़े स्वरूप में शुरू किया. 1994-95 से अब तक शहर में करीब 180-200 दुकानें ऐसी खुल गयी, जिनमें हर दिन व्यवसाय काे बेहतर बनाये रखने अाैर उसे मॉडिफाइ करने का प्रयास किया जा रहा है.
मिठाई दुकानाें के सामने परेशानियां हर उस काराेबार के समक्ष है, जिसका स्वरूप मध्यम आकार है, जिसमें मिठाई की दुकानें भी शामिल हैं. दुकानदाराें की मानें ताे जब से मनरेगा की स्कीम आयी है, काम करने वाले मजदूर एक बार जब गांव जाते हैं, ताे दाेबारा लाैट कर आने का नाम नहीं लेते. वाणिज्यकर विभाग के साथ-साथ दुकानाें में कार्यरत कर्मचारियाें काे न्यूनतम मजदूरी, पीएफ के साथ-साथ फूड क्वालिटी विभाग द्वारा गुणवत्ता काे लेकर की जाने वाली छापामारी भी मुख्य कारण है. दुकानदाराें ने दावा किया है कि यदि घर पर आने वाले दूध की क्वालिटी जांच की जाये, ताे वह भी मानकाें पर खरा नहीं उतरेगा. एक बार क्वालिटी टीम जब सैंपल टेस्ट के लिए लैब में भेजती है, ताे मामला दर्ज हाेना ही है. शहर आैर आस-पास खटाल की कमी हाेने के कारण दूध की विकट समस्या उत्पन्न हाेती जा रही है. पैकेट के दूध में मिठाइ की क्वालिटी नहीं बन पाती है. इसके अलावा एक बड़ा कारण है मिठाइ खाने वाले लाेगाें का डायबीटिज यानी शुगर मरीज हाेना. पहले लाेग चाव से मिठाइ न केवल दुकान पर खड़े हाेकर खाते थे, बल्कि पैक करवा कर भी ले जाते थे. अब जाे भी दुकानें चलती हुई दिखायी पड़ रही हैं, उनका प्राइमरी प्राेड्क्ट नमकीन है, मिठाई स्पाेर्टिंग आइटम बनकर रह गया है. घाटे में आ गया है मिठाई उद्याेग शुरुआती दिनाें में 40 प्रतिशत का मुनाफा प्रदान करनेवाला यह काराेबार पिछले 3-4 वर्षाें से घाटे में चल रहा है.
बाजार में जाे लाेग हैं, वे खुद काे अन्य काराेबार के साथ जुड़े हाेने के कारण इसमें बने रहना चाहते हैं, जबकि यह काराेबार 10 प्रतिशत घाटे में जा चुका है.
1992 में 25 पैसे की चाय आज 10 रुपये आैर एक रुपये का रसगुल्ला 8-10 रुपये का स्थान ले चुका है. ईमानदारी के साथ काराेबार करनेवालाें ने खुद काे इससे यह कहते हुए दूर करने का फैसला किया कि अपना नाम बदनाम कर वे लाेगाें के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते हैं. मिठाई का काराेबार काे कच्चा उत्पाद तैयार हाेता है, जिसे 1-2 दिनाें से अधिक रखा नहीं जा सकता है. मंदी के साथ-साथ मैन पावर मुख्य कारण है. मंदी की मार सभी तरफ दिखायी दे रही है, इसमें काेई संदेह नहीं की मिठाई उद्याेग भी इसमें शामिल है. मिठाईयां बनाने के काम में नये पीढ़ी के कारीगर आना नहीं चाहते, पुरानाें की संख्या दिन पर दिन कम हाेती जा रही है. मजदूराें का पलायन, कुछ अन्य दवाब भी इसकी वजह बनते दिख रहे हैं. सरकार काे इस काराेबार काे बचाने के लिए पुख्ता उपाय खाेजने हाेंगे, तभी इसे बचा पायेंगे. अचिंतम गुप्ता, दुकान मालिक

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