माता-पिता के एक फैसले ने संवार दी इम्तियाज की तकदीर

पढ़ाई में कमजोर होने के कारण कक्षा 8 पास करने के बावजूद इम्तियाज को उनके माता-पिता ने नौंवी में प्रमोट करने से रोक दिया था. जमशेदपुर : हर मां-बाप का सपना हाेता है कि उनका बच्चा बेहतर ढंग से पढ़ाई करे, अच्छे नंबर लाये, लेकिन काफी मां-बाप ऐसे हाेते हैं, जाे अपने बच्चाें की प्रतिभा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 3, 2016 8:50 AM
पढ़ाई में कमजोर होने के कारण कक्षा 8 पास करने के बावजूद इम्तियाज को उनके माता-पिता ने नौंवी में प्रमोट करने से रोक दिया था.
जमशेदपुर : हर मां-बाप का सपना हाेता है कि उनका बच्चा बेहतर ढंग से पढ़ाई करे, अच्छे नंबर लाये, लेकिन काफी मां-बाप ऐसे हाेते हैं, जाे अपने बच्चाें की प्रतिभा काे खुद आंकने का काम करते हैं. ऐसे मां-बाप अपने बच्चाें के सही दाेस्त आैर भविष्य के बेहतर साथी हाेते हैं.
साेनारी में रहनेवाले सैय्यद मंसूर अली के ऐसे ही एक फैसले ने वर्तमान में मशहूर डायरेक्टर इम्तियाज अली न केवल मजबूती प्रदान की, बल्कि उनका लाइफ स्टाइल ही बदल दिया. इम्तियाज अली अपने परिवार के साथ पटना में रहते थे. पटना से लाैटने के बाद जमशेदपुर में उनका दाखिला के लिए जब प्रयास किया गया, ताे उन्हें डीबीएमएस में एडमिशन मिल गया.
पढ़ाई में साधरण रहने वाले इम्तियाज के रिपाेर्ट कार्ड में नंबराें के नीचे लाल स्टैंड काफी रहने लगे. आठवीं कक्षा के बाद जब उन्हें नाैंवी में जाने से राेकने का स्कूल प्रबंधन ने फैसला किया, ताे इस पर चर्चा के लिए पिता मंसूर अली काे बुलाया गया. उन्हें बताया गया कि एक बार यदि उसे राेकेंगे, ताे वह इसे चुनाैती के रूप में लेगा आैर आगे बेहतर करेगा. प्रमाेट कर देंगे, ताे काफी कमजाेर रह जायेगा. पिता मंसूर अली ेंने वक्त गंवाये आैर इम्तियाज से पूछे बगैर हां कर दी. इस फैसले से माता-पिता दाेनाें ही सहमत थे. उनके इस फैसले का इम्तियाज की जिंदगी पर गहरा असर पड़ा. वह समझ गया कि बिना पढ़े काेई गुजारा नहीं है. फिर उसने बेहतर रिजल्ट किया. दिल्ली जाकर अंग्रेजी में अॉनर्स आैर मास कम्यूनिकेशन किया. इसके बाद आज वह अपनी जिंदगी जी रहा है, दुनिया देख रहा है.
बॉलीबुड में अपनी कुछ अलग पहचान बनाकर चल रहा है. उनकी फिल्म जब वी मेट, तमाशा, रॉक स्टार, हाइवे, लव आजकल जैसी सुपर हिट फिल्में बनाकर उन्हाेंने समाज-युवा काे एक नयी दिशा दिखाने का काम किया है.
कई बार माता-पिता काे कड़े निर्णय बच्चाें के हित में लेने पड़ते हैं, इसे समझने की जरूरत है. बच्चाें के परिणाम देखे, उन पर उतना ही बाेझ डाले, जितना उठा पाने के वे लायक हैं.

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