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पर्यावरण असुरक्षित: सालाना करोड़ों के राजस्व की भी चोरी, क्रशर मशीनों से दलमा को खतरा
पटमदा/जमशेदपुर: इको सेंसेटिव जोन में आने वाले दलमा क्षेत्र में सरेआम क्रशर मशीनें चलाई जा रही हैं. यहां पत्थर खनन के लिए ज्यादातर अवैध तरीके से अपनाए जाते रहे हैं. क्षेत्र के पत्थर माफिया पर्यावरण को नष्ट कर लोगों के जीवन से खेल रहे हैं. हाथी के लिए प्रसिद्ध दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी का अस्तित्व […]
पटमदा/जमशेदपुर: इको सेंसेटिव जोन में आने वाले दलमा क्षेत्र में सरेआम क्रशर मशीनें चलाई जा रही हैं. यहां पत्थर खनन के लिए ज्यादातर अवैध तरीके से अपनाए जाते रहे हैं. क्षेत्र के पत्थर माफिया पर्यावरण को नष्ट कर लोगों के जीवन से खेल रहे हैं. हाथी के लिए प्रसिद्ध दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी का अस्तित्व भी खतरे में है. उधर, सालाना करोड़ों रुपये के राजस्व की भी चोरी हो रही है.
इको सेंसेटिव जोन क्षेत्र में जहां वन विभाग द्वारा वैध व अवैध क्रशर मशीनों के अलावा पत्थर खनन कार्य को भी बंद दिखाया जाता रहा है, वहीं चांडिल के चाकुलिया क्षेत्र में एक साथ तीन-तीन क्रशर मशीनें चल रही हैं. जबकि क्षेत्र में प्रजनन केंद्र, म्यूजियम व करोड़ों रुपये की लागत से बने फॉरेस्ट गेस्ट के रहने से हमेशा पर्यटकों के अलावा व वन विभाग के आधिकारियों का आना-जाना लगा रहता है. बताया जाता है कि क्षेत्र के नेता, खनन विभाग के अफसर व पत्थर माफिया की िमलीभगत से यह अवैध कारोबार चल रहा है.
दलमा क्षेत्र के चांडिल, नीमडीह, बोड़ाम, पटमदा व जमशेदपुर प्रखंड के इलाके में कई वैध व अवैध क्रशर मशीन चलाने के अलावा पत्थर खनन का कार्य जारी है. जिले में अवैध खनन व क्रशर मशीनों को चलने से रोकने के लिए टास्क फोर्स भी गठित की गयी है, लेकिन छापेमारी से पूर्व ही खनन माफिया को इसकी जानकारी मिल जाती है.
टीबी, कैंसर, दमे से मजदूरों की असमय हो जाती है मौत
क्रशर व खदानों में काम करने वाले मजदूरों की टीबी, कैंसर, दमे जैसे बीमारी से असमय मौत हो जाती है. जानकारी होते हुए भी क्षेत्र के गरीब पत्थर खदानों में काम करने को मजबूर हैं.
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