लोन की राशि नहीं लौटाने में रांची व जमशेदपुर अव्वल
जमशेदपुर : बैंकों से लोन (ऋण) लेकर नहीं लौटाने के मामले में झारखंड की स्थिति काफी निराशाजनक है. बैंकों के 425.39 हजार लाख रुपये डूबने के कगार पर हैं. इतनी ही राशि एनपीए (नन परफॉर्मिंग एसेट्स) के रूप में चिह्नित हुई है. अगर सेक्टर के अनुसार देखा जाये तो सबसे ज्यादा पैसा एमएसइ (मिडियम एंड […]
जमशेदपुर : बैंकों से लोन (ऋण) लेकर नहीं लौटाने के मामले में झारखंड की स्थिति काफी निराशाजनक है. बैंकों के 425.39 हजार लाख रुपये डूबने के कगार पर हैं. इतनी ही राशि एनपीए (नन परफॉर्मिंग एसेट्स) के रूप में चिह्नित हुई है. अगर सेक्टर के अनुसार देखा जाये तो सबसे ज्यादा पैसा एमएसइ (मिडियम एंड स्मॉल इंटरप्राइजेज) सेक्टर में लगा हुआ है, जिसकी हिस्सेदारी 41.0 फीसदी के करीब है. वहीं दूसरे नंबर पर गैर प्राथमिकता के सेक्टर (एनपीएस) 28.3 फीसदी व अन्य प्राथमिकता के सेक्टर (ओपीएस) 10.5 फीसदी हैं जबकि कृषि क्षेत्र में 20.1 फीसदी एनपीए में हिस्सेदारी है.
यही हालात रही तो कर्ज देने से हिचकेंगे बैंक. वैसे तो बैंकों द्वारा लोन वसूली के प्रयास किये जाते हैं, लेकिन उसे प्रशासन का पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता. झारखंड में अगर यही स्थिति रही, तो आने वाले समय में बैंक यहां कर्ज देने से हिचकेंगे. इसका खामियाजा यहां के उद्योगों और जरूरतमंद लोगों को भुगतना पड़ेगा.
हर साल बढ़ता जा रहा एनपीए का दायरा. बड़े शहर यानी रांची, जमशेदपुर, धनबाद व बोकारो में कर्ज लेकर पैसा नहीं चुकाने के मामले सबसे ज्यादा हैं. कॉरपोरेट ही नहीं, एजुकेशन लोन के तहत दी गयी राशि भी लोग नहीं लौटा रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि कर्ज लेकर नहीं चुकाने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है. पांच साल में झारखंड में एनपीए लगभग तीन गुना बढ़ गया है. 2011 में जहां एनपीए 1300 करोड़ रुपये था, वह बढ़ते हुए 2015 में 3680 करोड़ पार कर गया और यह आंकड़ा इस बार 425.39 हजार लाख रुपये तक पहुंच चुका है.
जिलों में एनपीए
की स्थिति
जिला राशि (हजार लाख रु.में)
रांची 117.60
पूर्वी सिंहभूम 60.83
धनबाद 38.42
बोकारो 22
देवघर 18.5
पश्चिमी सिंहभूम 11
सरायकेला-खरसावां 10.2
गारंटर से भी की जा सकती है वसूली
डिफॉल्टर होने पर सबसे पहले खाताधारक को नोटिस भेजा जाता है. इसके बाद यदि कोई सिक्यूरिटी (बंधक) एफडी आदि हो तो उससे वसूली की जाती है. प्रोपर्टी के बंधक होने पर होने पर डीआरटी में केस कर नीलामी की जाती है. सिक्यूरिटी नहीं होने पर छोटे लोन में वन टाइम सेटलमेंट का भी प्रावधान है. इसके बावजूद पैसे की वसूली न हो तो सर्टिफिकेट केस, मनी सूट आदि किये जाते हैं. खाताधारक से पैसे नहीं वसूली होने पर गारंटर से भी वसूली की जा सकती है.
पांच साल में तीन गुना हुआ एनपीए
पांच साल के आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में एनपीए लगभग तीन गुना बढ़ गया है. लोगों द्वारा जानबूझ कर पैसे नहीं लौटाने की मानसिकता के कारण ऐसा हो रहा है. बैंककर्मी भी वसूली के लिए बड़ा कदम नहीं उठा रहे हैं. हालांकि कानून में कर्ज लेकर चुकता नहीं करनेवालों के खिलाफ कार्रवाई करने और सजा दिलाने का प्रावधान है.