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टाटा समूह के पहले चेयरमैन थे सर दोराबजी टाटा, जमशेदजी के सपनों को किया साकार

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जमशेदपुर: टाटा परिवार की परंपराओं का निर्वाह करने राले, हीराबाई और जमशेदजी नसरवाजी टाटा के ज्येष्ठ पुत्र दोराबजी टाटा की कल्पनाशीलता और दूरदर्शिता ने उन्हें अपने पिता जमशेदजी नसरवानजी टाटा द्वारा देखे गये प्रत्येक सपनों को साकार करने के लायक बनाया. उनके देखे गये सपनों में भारत में एक विश्वस्तरीय स्टील संयंत्र, मुंबई के निकट […]

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जमशेदपुर: टाटा परिवार की परंपराओं का निर्वाह करने राले, हीराबाई और जमशेदजी नसरवाजी टाटा के ज्येष्ठ पुत्र दोराबजी टाटा की कल्पनाशीलता और दूरदर्शिता ने उन्हें अपने पिता जमशेदजी नसरवानजी टाटा द्वारा देखे गये प्रत्येक सपनों को साकार करने के लायक बनाया. उनके देखे गये सपनों में भारत में एक विश्वस्तरीय स्टील संयंत्र, मुंबई के निकट एक महत्वपूर्ण पनबिजली परियोजना और बैंगलुरु के पास एक विश्वस्तरीय अनुसंधान संस्थान को स्थापित करना शामिल था. सर दोराबजी टाटा द्वारा रखी गयी मजबूत नींव ने राष्ट्र निर्माण और उनके सामाजिक विकास की विरासत को संजोये रखा है.
पत्नी का गहना तक गिरवी रखा
स्टील कंपनी के प्रारंभिक दिन कठिनाइयों से भरे हुए थे. उस समय युद्ध से संबद्ध मित्र राष्ट्रों के विस्तार को तीव्र समर्थन मिलने के साथ सन 1920 के दौरान बढ़ती महंगाई के साथ मंदी का दौर आ गया. परिवहन और श्रमिक उपलब्धता में दिक्कतों के अलावा जापान, जो कि अब तक टिस्को का सबसे बड़ा ग्राहक है, में भूकंप आ गया. कंपनी को इस अवधि में 12 साल के लिए अपने लाभांश को स्थगित करना पड़ा और 1924 में इसके बंद होने तक की नौबत आ गयी. ऐसे में दोराबजी टाटा को टाटा स्टील बनाये रखने और बचाने के लिए बैंकों से लोन लेने के लिए अपनी पत्नी के गहने और निजी संपत्ति तक को गिरवीं रखना पड़ा था.
सन 1898 में सर दोराबजी टाटा ने 38 साल की आयु में 18 साल की मेहरबाई भाभा से विवाह किया, जो तत्कालीन मैसूर राज्य के शिक्षा विभाग के महानिरीक्षक एचजे भाभा की पुत्री थी.
साकची को आदर्श शहर के रूप में विकसित किया
1904 में अपने पिता जमशेदजी टाटा की मृत्यु के बाद सर दोराबजी टाटा ने अपने पिता के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया. लोहे की खानों का ज्यादातर सर्वेक्षण उन्हीं के निर्देशन में पूरा हुआ. वे टाटा समूह के पहले चैयरमैन बने और 1908 से 1932 तक चैयरमैन बने रहे. साकची को एक आदर्श शहर के रूप में विकसित करने में उनकी मुख्य भूमिका रही है जो बाद में जमशेदपुर के नाम से जाना गया. 1910 में उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा नाईटहुड से सम्मानित किया गया था. पिता की योजनाओं के अनुसार झारखंड में इस्पात का कारखाना स्थापित किया और उसका बड़े पैमाने पर विस्तार भी किया.

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