अटलजी ने कहा था तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें झारखंड दूंगा

अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व मेरे मन मस्तिष्क को वाल्यकाल से ही प्रभावित करता रहा है. एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसने राष्ट्र सेवा के निमित फकीरी की साधना सिद्ध की. उन्होंने निज मोक्ष की स्वार्थ भावना को अलग रख कर राष्ट्र निष्ठा, राष्ट्र भक्ति एवं राष्ट्राद्वार हेतु आजीवन वैराग्य की राजनीतिक संन्यास मार्ग का रास्ता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 25, 2016 1:52 PM

अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व मेरे मन मस्तिष्क को वाल्यकाल से ही प्रभावित करता रहा है. एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसने राष्ट्र सेवा के निमित फकीरी की साधना सिद्ध की. उन्होंने निज मोक्ष की स्वार्थ भावना को अलग रख कर राष्ट्र निष्ठा, राष्ट्र भक्ति एवं राष्ट्राद्वार हेतु आजीवन वैराग्य की राजनीतिक संन्यास मार्ग का रास्ता चुना. यह देश की करोड़ो जनता को प्रेरित करता है. अटलजी के इस व्यक्तित्व को मैं उनके जन्मदिन पर नमन करती हूं. सार्वजनिक जीवन में मेरा सक्रिय प्रवेश 1998 में भारतीय जनता पार्टी की एक प्रत्याशी के रूप में हुआ. यह समय था 12वीं लोकसभा का चुनाव का. जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र से मुझे टिकट देने के बारे में पति शैलेंद्र महतो ने जब वाजपेयीजी से बात की थी, तो उन्होंने पूछा था कि आपकी पत्नी कितनी पढ़ी-लिखी है, तो उन्होंने जवाब दिया था कि वह राजनीतिक शास्त्र में स्नातक (ऑनर्स) है. अटलजी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि बहुत अच्छा. पहला तो यह कि मेरी जैसी एक साधरण महिला को भाजपा के प्रत्याशी के रूप में विजय हासिल हुई.

ऐसे तो जब मैं ब्याह कर जमशेदपुर आयी, तो मेरे पति का भी एक राजनीतिक व्यक्तित्व होने के कारण झारखंड की वन संपदा, खनिज संपदा के बाहुल्य के बावजूद लागों को गरीबी, अशिक्षा, बेकारी, बीमारी आदि समस्याओं को करीब से देखती थी. मेरे मन में भी जनता की समस्याओं से जुड़ने एवं उनके निराकरण हेतु प्रेरणा मिलती रही और अंतत: वह सुअवसर मुझे अटलजी के नेतृत्व में प्राप्त हुआ. जब मैं भीष्म पितामह की तरह विराट व्यक्तित्ववाले व्यक्ति अटलजी की तरफ देखती हूं, तो अनायास ही उनके प्रति श्रद्धा एवं भक्ति का भाव उमड़ पड़ता है. वह व्यक्ति, जिन्होंने राष्ट्र सेवा के लिए सारी जिंदगी को समर्पण के जीवंत रूप में प्रकटीकरण किया. भारतीयता एवं राष्ट्रीयता के समग्र चिंतन को एक व्यावहारिक रूप दिया, वह इस देश का सौभाग्य ही है. जब तक वे प्रतिपक्ष में रहे, तब उन्होंने राजनीतिक मर्यादाओं एवं सैद्धांतिक मूल्यों का अवलंबन नहीं छोड़ा.

आज विपक्ष सहित सभी राजनीतिक दलों अटलजी द्वारा स्थापित मान्यताओं से सीखनी चाहिए. जब वाजपेयी को देश का नेतृत्व करने का दायित्व मिला, तो उन्होंने मात्र 13 माह के छोटे से कार्यकाल में विश्व संकल्प एवं कुशलता से लोहा मनवाया. जिस तरीके से लाहौर बस यात्रा कर पाकिस्तान के साथ मैत्री, सदभाव एवं सौहार्द्र का हाथ बढ़ाकर शांति एवं समृद्धि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रकट किया और साथ ही करगिल में पाकिस्तान के शत्रुता, दुस्साहस के प्रयास शाैर्य, पराक्रम एवं वीरता के साथ पराजित भी किया, यह उस अटल व्यक्तित्व की अनंत गहराइयों प्रकट करता है. वह ऐसे साधु हैं, जो प्रेम, दया, सहानुभूति एवं सहिष्णुता की आराधना करता है. किंतु मातृभूमि पर किसी शत्रु द्वारा नापाक इरादे रखनेवाले का सिर कुचलने में परशुराम की भांति शस्त्र उठाने में भी आगे रहा. कारगिल के संदर्भ में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की हरकतों पर दुनिया के सभी देशों ने फटकार लगायी, वहीं भारत सामारिक, राजनीतिक एवं कूटनीतिक सफलता मिली.

अटलजी के नेतृत्व में पोखरण में परमाणु अस्त्रों का परीक्षण कर न केवल अमेरिका बल्कि उसके इशारे पर कूदनेवाले हमारे पड़ोसी राष्ट्र यह संदेश भेजा गया कि हम क्षमाशील हैं, विनयशील हैं, किंतु हमारी विनम्रता एवं मानवतावादी दृष्टिण हमारी कमजोरी एवं शक्तिहीनता न समझा जाये. अटलजी का यह दार्शनिक कथन है कि इतिहास तो बदला जा सकता है, किंतु भूगोल कैसे बदलेंगे. हम पड़ोसी राष्ट्र हैं, चाहे शत्रुतापूर्वक रहें, चाहे मित्रता से, हम दोनों साथ ही रहना है. हमने तीन युद्ध लड़े, परिणाम में रक्तपात और लाशें ही मिलीं. अत: विवेक इस बात में हैं कि हम ऐसा कोई कार्य न करें कि पुन: युद्ध की विभीषिका से हम ग्रसित हो. अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996,1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान जनसभाओं में जोर देकर कहा था कि तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें झारखंड दूंगा.

केंद्र में जैसी ही भाजपा की सरकार आयेगी, हम वनांचल राज्य गठन का मार्ग प्रशस्त करेंगे और यह भी स्पष्ट किया कि हमारा झारखंड नाम से ई विरोध नहीं है. अटलजी के इस आह्वान से झारखंड के मतदाताओं ने लोकसभा में भाजपा आंख मूंद कर समर्थन किया, जिसमें 14 लोकसभा सीटों में 11 पर भाजपा प्रत्याशियों जीत हासिल हुई. 13वीं लोकसभा (1999) में अटलजी के नेतृत्व में पुन: एनडीए की सरकार बनी और वर्षां से विकास, प्रगति के निमित्त प्रशासनिक दृष्टि से एक अलग राज्य की मांग स्वीकार कर मोहर लगा दी. उन्होंने राष्ट्रीय हितों राजनीतिक हितों से हमेशा ऊंचा रखा, चाहे 1962, 1965 और 1971 का युद्ध रहा हो या फिर 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पोखरण में परमाणु अस्त्रों का प्रथम परीक्षण का अवसर रहा हो, अटलजी ने हमेशा राजनीतिक मर्यादा का परिचय देते हुए राष्ट्रहित में सरकार के निर्णयों का समर्थन किया. अटलजी के छह साल प्रधानमंत्री कार्यकाल में जो उपलब्धियां हैं, वे सभी देश गौरवान्वित, शक्तिशाली संपन्न एवं विकास पथ के सोपान हैं. तो आइये आज हम अटलजी के जन्मदिवस पर संकल्प करें, शपथ लें. अटलजी के शब्दों में ही मैं भारत माता के सामने आ रही चुनौतियों को साहस, बल एवं धैर्य के साथ मुकाबला करने का आह्वान करती हूं. हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर, लिखता-मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं. जय हिंद

आभा महतो, पूर्व सांसद भाजपा, जमशेदपुर

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