‘ कलपायेगा जो बेटी बोलो कैसे कल पायेगा ’
जमशेदपुर: नगर की प्रसिद्ध साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था ‘सुरभि’ के हास्य कवि सम्मेलन ने आज होलियाना हास-परिहास के साथ ही उल्लास और उमंग की शुरुआत कर दी. होली के चंद दिन बचे रहने के बाद भी शहर में पसरे सन्नाटे को देश के कोने-कोने से आये कवि-कवयित्रियों ने अचानक झकझोर कर जगा दिया. साकची रवींद्र भवन […]
जमशेदपुर: नगर की प्रसिद्ध साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था ‘सुरभि’ के हास्य कवि सम्मेलन ने आज होलियाना हास-परिहास के साथ ही उल्लास और उमंग की शुरुआत कर दी. होली के चंद दिन बचे रहने के बाद भी शहर में पसरे सन्नाटे को देश के कोने-कोने से आये कवि-कवयित्रियों ने अचानक झकझोर कर जगा दिया. साकची रवींद्र भवन में आयोजित उक्त साहित्यिक सम्मेलन में हंसी के फव्वारे छूटे तो परिहास की फुलझड़ियां भी.
इसमें देश की दुरवस्था की छवियां उभरीं तो राजनीतिक विद्रूपताओं के अक्स भी स्पष्ट हुए. देश की दुर्गति के लिए जिम्मेवार नेताओं, भ्रष्टाचारियों पर हमले हुए तो सीमाओं की रक्षा में प्राण होम करने वाले वीर सपूतों की याद में ‘काव्य-ऋचाओं’ का गान भी हुआ, और उपेक्षा, प्रताड़ना और शोषण का शिकार बन रही बेटियों का वास्तविक मूल्य बताने के ब्याज उनके सद्गुणों के गान के स्वर भी गूंजे, जिन्हें श्रोताओं ने तालियों से भरपूर समर्थन प्रदान किया. राजस्थान से पधारे सुरेंद्र यादवेंद्र की अध्यक्षता तथा वहीं के बलवंत बल्लू के संचालन में आयोजित कवि सम्मेलन में सर्वाधिक वार स्वाभाविक रूप से भ्रष्टाचारियों एवं नेताओं पर हुए, लेकिन ओज का स्वर लेकर श्रोताओं के समक्ष उतरीं लखनऊ की कविता तिवारी की वाणी ने सबको चेतना के शिखर तक पहुंचा दिया. कविता ने जब सुनाया –
‘टूटते साज बचाने के लिए मैं बात लिखती हूं/ शोख अंदाज बचाने के लिए बात लिखती हूं/छोड़ श्रृंगार की बातें होश की बात लिखती हूं
देश की लाज बचाने के लिए बात लिखती हू।’ तो लोगों ने करतल ध्वनि के साथ उनका स्वागत किया. बेटियों को बचाने, उन्हें भी बेटों के बराबर सम्मान देने का आह्वान करते हुए जब कविता ने आवाज चेताया – ‘कलपायेगा जो बेटी, बोलो कैसे कल पायेगा।/बेटियां नहीं बच पायीं, जग छार-छार हो जायेगा।।’ तो पूरा प्रेक्षागृह तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. इससे पूर्व मध्य प्रदेश से आये युवा कवि सुदीप भोला ने राजनीति और राजनीतिज्ञों की उलटी चालों पर करारे व्यंग्य किये. उन्होंने आगाह भी किया-
‘बूढ़े मां-बाप को न दे सके निवाला जो।
मेरी लानत है उस औलाद की जवानी को। अपने आंगन का कु आं आज न पूरो वरना। तुम भी तरसोगे कभी बूंद-बूंद पानी को।’
आयोजन के दूसरे कवि के रूप में आये लखनऊ के राजेंद्र पंडित ने तंज कसा –
‘उन्हीं को देश की चिंता है जिनके हाथ में कुछ भी नहीं है,
जिनके हाथ में कुछ है उन्हें ही देश की चिंता नहीं है।’ तो लोगों ने भरपूर तालियों से उनका समर्थन किया. इनके अलावा मुंबई से आयीं डॉ काव्या मिश्र ने अपने श्रृंगारिक गीतों से सबका मन मोहा तो इंदौर के गोविंद राठी ने भी अपने व्यंग्यों की बौछार से श्रोताओं की वाहवाही लूटी. संचालन कर्ता बलवंत बल्लू वैसे तो शुरू से ही अपने व्यंग्योक्तियों से माहौल को चुटीला बनाये रखा, लेकिन अपनी बारी में भी वे खूब जमे तथा लोगों ने उनके व्यंग्य चातुर्य को खूब दाद दी. सभाध्यक्ष सुरेंद्र यादवेंद्र ने भी लोगों को अपने नाम के अनुरूप खूब गुदगुदाया, साथ ही अपने व्यंग्य बाणों से विडंबनाओं-विद्रूपताओं को तार-तार करने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.