जमशेदपुर : इस्पातिका” को यूजीसी ने किया सूचीबद्ध

जमशेदपुर : वर्ष 2011 से प्रकाशित इस्पातिका को यूजीसी द्वारा मान्यता देते हुए देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में शामिल किया गया है. इस्पातिका भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन को इस्पातिका की इस उपलब्धि को उच्च शिक्षा, तकनीकी व कौशल विकास विभाग, झारखंड के उपनिदेशक डॉ. शंभुदयाल सिंह ने झारखंड के संदर्भ में युगांतरकारी उपलब्धि बताया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 29, 2017 6:58 PM

जमशेदपुर : वर्ष 2011 से प्रकाशित इस्पातिका को यूजीसी द्वारा मान्यता देते हुए देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में शामिल किया गया है. इस्पातिका भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन को इस्पातिका की इस उपलब्धि को उच्च शिक्षा, तकनीकी व कौशल विकास विभाग, झारखंड के उपनिदेशक डॉ. शंभुदयाल सिंह ने झारखंड के संदर्भ में युगांतरकारी उपलब्धि बताया है. उन्होंने कहा कि यूजीसी में सूचीबद्ध होने से पत्रिका को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अकादमिक मान्यता और प्रतिष्ठा मिली है.

उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्ति और प्रोन्नति के लिए यूजीसी की नियमावली के चौथे संशोधन के तहत देश-विदेश की प्रतिष्ठित और गुणवत्तापूर्ण पत्रिकाओं की सूची तैयार होनी थी. इन सूचीबद्ध पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित होने पर ही ए.पी.आई. देने का प्रावधान है. नियुक्ति और प्रोन्नति में ए.पी.आई. की निर्णायक भूमिका होती है. झारखंड जैसे नवगठित राज्य से शोध केंद्रित किसी पत्रिका की यह उपलब्धि झारखंड की उच्च शिक्षा नीति की सफलता का परिचायक है।
पत्रिका के संपादक, प्रकाशक और स्वत्वाधिकारी डॉ. अविनाश कुमार सिंह हैं. को-ऑपरेटिव कॉलेज में रहते हुए इसका प्रकाशन आरंभ हुआ और आज भी तमाम बाधाओं के बाद अनवरत प्रकाशित हो रही है. यह पत्रिका अपने मूल में अंतरविषयी शोध पर केन्द्रित है. प्रकाशन के दूसरे वर्ष ही इसका "आदिवासी" विशेषांक आया, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुआ. हॉलैण्ड और दक्षिण कोरिया तक इसकी प्रतियां मंगाई गईं. इसी तरह सामान्य अंकों के अलावा भारतीय सिनेमा विशेषांक, किसान विशेषांक, मजदूर विशेषांक तथा भारतीय उपन्यास विशेषांक का लगातार वर्षों में प्रकाशन हुआ। इन अंकों में देश के प्रतिष्ठित साहित्यविद के अलावा समाजशास्त्री, अर्थविज्ञान विशेषज्ञ सहित सामाजिक कार्यकर्ता, रंगकर्मी, आदिवासी विमर्शकारों की गंभीर व शोधपूर्ण रचनाएं प्रकाशित हुईं और चर्चा में रहीं.
पत्रिका की अनोखी खासियत यह है कि इसमें स्थापित रचनाकारों के साथ बिल्कुल नये, उभरते युवा लेखकों और शोधार्थियों की रचनाओं को भी उतने ही सम्मान के साथ शामिल किया जाता है। अभी "पत्रकारिता विशेषांक" की तैयारी चल रही है. इसमें देश, समाज और साहित्य के सवालों को पत्रकारिता के अतीत और वर्तमान के साथ-साथ समझने की कोशिश होगी.
संपादक डॉ. अविनाश ने बताया कि अपने वेतन का एक हिस्सा पत्रिका के लिए समर्पित कर रखा है. आलेख मंगाना, कंपोज करना, प्रूफ सुधारना, प्रेस में छपने के लिए देना, वहां से लाना फिर लेखकों तक खुद ही डाक से भेजना एक दुरूह कार्य है.. लेकिन पत्रिका का जीवित रहना जरूरी है। इसलिए संतान पालने के दायित्व की तरह इसको भी निभाता रहता हूं. सारी पीड़ा तब गायब हो जाती है जब कोई पाठक संपादकीय या किसी लेख को पढ़कर फोन करता है. चिठ्ठी भेजता है. उन्होंने आभार प्रकट करते हुए कहा कि यूजीसी ने इसे मान्यता देकर ज्ञान और सृजन को पहचान दी है.

Next Article

Exit mobile version