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महिलाओं ने खेला सिंदूर खेला, मां से मांगा अखंड सौभाग्य

बासंती दुर्गा पूजा में महादशमी पर पूजा-पाठ के बाद मां को दी गयी विदाई

जमशेदपुर. नौ दिनों के पूजन के बाद गुरुवार को विदाई बेला. आसछे बोछोर आबार एसो मां…की कामना लेकर मां बासंती को दी गयी विदाई. जमशेदपुर दुर्गा बाड़ी, साकची दुर्गा बाड़ी, नामदा बस्ती कालीबाड़ी, बेल्डीह कालीबाड़ी के अलावा सार्वजनीन श्री श्री बासंती दुर्गापूजा कमेटी द्वारा महाषष्ठी से लेकर महादशमी तक विधि-विधान के साथ मां बासंती देवी दुर्गा का आह्वान किया गया. वहीं, महादशमी पर सुहागन महिलाओं द्वारा सिंदूर दान के साथ एक-दूसरे को सिंदूर लगाते हुए मां को विदा किया गया और अखंड सौभाग्य की कामना की गयी.

क्रेन से प्रतिमा विसर्जन

बेल्डीह कालीबाड़ी आश्रम में आयोजित श्री श्री बासंती पूजा में महादशमी की पूजा सुबह साढ़े दस बजे समाप्त होने के बाद मायेर वरण का सिलसिला प्रारंभ हुआ. 15 फीट की प्रतिमा होने के कारण महिलाओं के लिए सीढ़ी की व्यवस्था की गयी. बारी-बारी से महिलाओं ने मां बासंती को सिंदूर लगाया. आरती की. बाद में एक-दूसरे को सिंदूर लगा कर अखंड सौभाग्य की कामना की. दोपहर 12 बजे विसर्जन जुलूस निकला, जो कपाली घाट पहुंचा. यहां प्रतिमा को क्रेन के सहारे नदी में प्रवाहित किया गया.

अखंड सौभाग्य का प्रतीक है सिंदूर खेला

सिंदूर खेला अखंड सौभाग्य का प्रतीक है. घर की आयी बेटी जब ससुराल जाती है, तो ठीक ऐसे ही सुहागन महिलाएं उसकी मांग भरती हैं. मीठा खिला कर उसे विदा करती हैं, ताकि वह हमेशा ही ऐसे रूप में दिखे. इसी परंपरा को निभाते हुए सुहागन महिलाओं ने हाथों से मां को मिष्टि पान व मिठाई खिलाकर, सिंदूर से मांग भरा. महादशमी के दिन मां को सिंदूर पहनाने के बाद उस सिंदूर को मां का आशीर्वाद माना जाता है. महिलाएं सिंदूर लगाते समय व मां का वरण करते समय अपने सुहाग की रक्षा के साथ अखंड सौभाग्यवती होने का वर मांगती है. इस मौके पर कुंवारी कन्याओं ने भी सिंदूर खेला में हिस्सा लिया.

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