जमशेदपुर : झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री चंपई सोरेन का राजनीतिक सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है. 1990 के दशक में अलग झारखंड राज्य के लिए चली लंबी लड़ाई में योगदान के कारण इन्हें ‘झारखंड टाइगर’ के नाम से भी जाना जाता है. मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण के बाद पांच फरवरी को चंपई सोरेन सरकार की असली परीक्षा होगी. चंपई सोरेन को विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा. पंडित रघुनाथ मुर्मू से झाड़ग्राम में गुरुजी के साथ मिले : शिबू सोरेन के साथ चंपई सोरेन बेंद झाड़ग्राम में संतालों की सभा में पंडित रघुनाथ मुर्मू से भी मिले थे. इसके बाद 1981 में उन्होंने काचा में शिबू सोरेन की सभा आयोजित की और फिर धनबाद में 1984 में आयोजित केंद्रीय महाधिवेशन में केेंद्रीय सदस्य बने. 1999-2000 चुनाव में अनंतराम टुडू से हार गये, लेकिन 2005 में उन्होंने लक्ष्मण टुडू को मात दे अपनी सीट फिर से हासिल कर ली.
चंपई सोरेन हमेशा गुरुजी शिबू सोरेन के प्रति वफादार रहे हैं. यही कारण है की गुरुजी के आशीर्वाद से वे सीएम बने हैं. चंपई सोरेन के घर में रहने के दौरान प्रतिदिन सुबह में आवास पर दिन-दुखियारों की भीड़ लगी रहती है, यह नजारा हर दिन रहता है. जिसे कभी भी देखा जा सकता है.
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