Jharkhand News, जमशेदपुर न्यूज (अशोक झा) : अप्रैल 2000 से बंद इंकैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड (केबुल कंपनी) को दिवालिया घोषित करने के आदेश को नेशनल कंपनी लॉ अपीलिएट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने रद्द कर दिया है. शुक्रवार सुबह साढ़े दस बजे नेशनल कंपनी लॉ अपीलिएट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) के चेयरमैन ने अपना फैसला सुनाया. एनसीएलएटी के फैसले से केबुल कर्मचारियों में खुशी की लहर दौड़ गई है. एक बार फिर केबुल कंपनी के खुलने की संभावना बढ़ गयी है.
नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की डबल बेंच ने रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (आरपी) के आवेदन पर आठ फरवरी 2020 को इंकैब इंडस्ट्री को दिवालिया करने का आदेश जारी किया था. फैसले के खिलाफ केबुल कर्मचारियों की ओर से भगवती सिंह ने इंकैब को दिवालिया करने के आदेश को मई 2020 में अपीलिएट कोर्ट में चुनौती दी थी. इस पर सुनवाई करते हुए चेयरमैन की कोर्ट संख्या 1 ने आठ मई को अपना आर्डर रिजर्व कर दिया था. शुक्रवार को नेशनल कंपनी लॉ अपीलिएट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) के फैसला सुनाते हुए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की कोलकाता बेंच के आदेश को निरस्त कर दिया.
कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (सीओसी) की ओर से दिए गए सभी निर्णय को रद्द कर दिया गया है. कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स की अनुशंसा पर एनसीएलटी ने कंपनी को दिवालिया घोषित किया और इस आदेश के बाद परिसमापक शशि अग्रवाल की ओर से लिए गये सभी फैसले को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है. एनसीएलटी का काम कंपनी को पुर्नजीवित करना है. जो उसने नहीं किया. एनसीएलटी ने शशि अग्रवाल को परिमापक के रूप में प्रतिनियुक्त किया था. उन्होंने भी गैर कानूनी ढ़ंग से काम किया. ऐसे में अपीलिएट कोर्ट इनसॉल्वेंसी एंड बैंक करप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (आइबीबीआइ) को प्रस्ताव देती है कि इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे.
केबुल कंपनी अप्रैल 2000 से बंद है. साल 1920 में केबुल कंपनी स्थापित हुई थी. ब्रिटिश कैलेंडर केबुल के नाम से यह कंपनी थी. 1988 में इसका नाम इंकैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड हो गया. कंपनी का 26 फीसदी शेयर काशीनाथ तापुरिया ने खरीदा. इसके बाद पूरा प्रबंधन उनके हाथ में आ गया. करीब तीन साल तक उन्होंने कंपनी चलायी. 1991-92 में कंपनी के आर्थिक हालात काफी कमजोर हो गये. इस साल घाटा दिखाया गया, लेकिन इससे पहले यह कंपनी न्यूनतम दो करोड़ रुपये की आमदनी करती रही. इसके बाद काशीनाथ तापुरिया ने हाथ खींच लिया. 1996-97 में केबुल कंपनी को मलेशियाई कंपनी लीडर यूनिवर्सल ने अधिग्रहण कर लिया. वाइस चेयरमैन पीके सर्राफ की देखरेख में उत्पादन शुरू हुआ. वर्ष 1999 में उन्होंने अपना इस्तीफा सौंपा. इसके बाद मलेशियाई कंपनी ने भी हाथ खींच लिया. फिर पी घोष होलटाइम डायरेक्टर बने. 1999 के दिसंबर में कंपनी का कामकाज पूरा ठप हो गया. तब से लेकर आज तक कंपनी बंद है.
Posted By : Guru Swarup Mishra