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शतरंज की दुनिया में झारखंड ने दिये कई ग्रैंड मास्टर और विश्व चैंपियन, एक ने तो विश्वनाथन आनंद को भी हराया है

5 दशकों में कोल्हान ने वर्गीज कोसी, नीरज मिश्रा, दीप सेनगुप्ता जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिये. विश्व चैंपियन रहे विश्वनाथन आनंद को भी जमशेदपुर के नीरज मिश्रा ने मात दी.

कोल्हान की भूमि शतरंज के लिए उर्वरा रही है. यहां की माटी ने ग्रैंड मास्टर और विश्व चैंपियन दिये हैं. इसका केंद्र जमशेदपुर और चक्रधरपुर रहा हैं. बिसात पर मोहरों की चाल चलने में माहिर यहां के खिलाड़ियों ने देश ही नहीं विदेशों में भी अपना परचम लहराया है. 20 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस है. देश-विदेश में शतरंज के विकास में जमशेदपुर समेत कोल्हान का भी योगदान रहा है. जमशेदपुर में चेस की शुरुआत 80 के दशक में हुई.

टाटा की कंपनियों के कर्मचारियों ने एक ग्रुप बनाकर इस खेल को शुरू किया, तब से लेकर आज तक पांच दशकों में कोल्हान ने वर्गीज कोसी, नीरज मिश्रा, दीप सेनगुप्ता जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिये हैं. पांच बार विश्व शतरंज में चैंपियन रहे विश्वनाथन आनंद को भी जमशेदपुर के नीरज मिश्रा ने मात दी है. नयी पौध भी विरासत को संवार रही है. शतरंज में कोल्हान के गौरवशाली इतिहास को बताती लाइफ@जमशेदपुर के लिए निसार अहमद, शीन अनवर व सुशील महतो की रिपोर्ट.

शहर के राधाकृष्णा कामथ हैं भारत के पहले वर्ल्ड यूथ चैंपियन

जमशेदपुर के रहने वाले राधाकृष्णा कामथ ने चेस की दुनिया में जमशेदपुर को अलग पहचान दिलायी. वे भारत के पहले खिलाड़ी हैं, जो वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप में चैंपियन बने थे. कामथ ने 1990 में यह पदक हासिल किया था. राधाकृष्णा कामथ के पिता जी सीडी कामथ ने भी जमशेदपुर में चेस को सींचा.

वह कुशल प्रशासक थे. कामथ के अलावा जमशेदपुर को अंतरराष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले खिलाड़ियों में बुद्धदेव त्रिपाठी, अभिषेक दास आदि ने कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में शिरकत की. इसके अलावा डी चंपा बोस ने भी वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप में चैंपियन बनीं. इसके अलावा वैशाकी दास, अन्नया सरकार ने अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.

1991 में इंटरनेशनल मास्टर बने नीरज मिश्रा दे रहे कोचिंग

जमशेदपुर में कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हुए हैं. इसमें से एक बड़ा नाम नीरज मिश्रा का है. इंटरनेशनल मास्टर नीरज मिश्रा 1990 में टाटा स्टील से जुड़े थे. जमशेदपुर छोड़ने से पहले वह कदमा में रहते थे. 1991 में नीरज मिश्रा इंटरनेशनल मास्टर बने. उन्होंने 1987 में कर्नाटक में आयोजित नेशनल चेस चैंपियनशिप में विश्वनाथन आनंद को मात दी थी. एशियन चेस चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल करने वाले नीरज मिश्रा फिलहाल कोचिंग के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं. साथ ही वह एक कुशल प्रशासक भी हैं.

जूनियर स्तर पर वत्सल और शौर्यदीप्ता का कमाल जारी

जमशेदपुर के चेस खिलाड़ियों का दबदबा अभी भी पूरे झारखंड व पूर्वी क्षेत्र में बरकरार है. जूनियर स्तर पर वत्सल सिंघानिया, सारा जैन, अधिराज मित्रा, शौर्यदीप्ता सरकार जैसे खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं. इसके अलावा उत्कर्ष, संचित मुखर्जी, यमिजला व देवांजन शर्मा जैसे खिलाड़ी भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.

वहीं, दिवाकर सिंह, मालविका सिंह, नीलम सिंह, अन्नया सरकार व अनुग्रदीप चेस की बुलंदियों तक पहुंच चुके हैं. इन खिलाड़ियों के अलावा जमशेदपुर के जयंत भुइंया अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में आर्बिटर के रूप में अपनी छाप छोर चुके हैं. इसके साथ ही चंदन कुमार, विकास मिंज राष्ट्रीय स्तर पर आर्बिटर की भूमिका निभा रहे हैं.

चार वर्ष पहले जमशेदपुर आये थे ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद

भारत के सबसे कामयाब शतरंज खिलाड़ी और पहले ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद 1990 में जमशेदपुर खेलने आये थे. इसके अलावा कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी जमशेदपुर आ चुके हैं. विश्वनाथन आनंद चार वर्ष पूर्व एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने शहर आये थे. जिनको देखने के लिए युवाओं की भीड़ उमड़ परी थी.

देश की सबसे बड़ी इनामी राशि वाले टूर्नामेंट का रहा है मेजबान

जमशेदपुर शहर में 1983 के बाद कई बड़े टूर्नामेंट का आयोजन किया गया. लेकिन 2004 में भारत की सबसे बड़ी इनामी राशि वाले टूर्नामेंट का आयोजन हुआ. 2004 में जेआरडी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्सस में हुए ऑल इंडिया ओपन चेस टूर्नामेंट उस समय का सबसे बड़ी इनामी राशि वाला टूर्नामेंट था. पहली बार टूर्नामेंट में पुरस्कार राशि के रूप में पांच लाख रुपये बांटे गये. वहीं चैंपियन को इनाम स्वरूप एक लाख रुपये का इनाम दिया गया. इसके अलावा जमशेदपुर में 1997 में स्टील सिटी चैंपियनशिप, पीडी सिंह टूर्नामेंट, 1990 में इंटरनेशनल टूर्नामेंट, 1994 में ऑल इंडिया ओपन चैंपयिनशिप, 2000 में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप और 2011 में जेआरडी टाटा रेटिंग चैंपियनशिप का आयोजन हो चुका है. अब सात सितंबर से जूनियर एशियन चेस चैंपियनशिप का आयोजन अपने शहर में होने जा रहा है.

राजा-महाराजा भी खेलते थे शतरंज

भारत एक ऐसा देश है जहां खेलों के प्रति दीवानगी का इतिहास रहा है. रामायण-महाभारत काल में भी खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन का इतिहास रहा है. आज देश में भले ही क्रिकेट के प्रति लोगों की दीवानगी नजर आती हो, लेकिन कभी हमारे देश में मल्ल युद्ध, मलखंब, निशानेबाजी, तलवारबाजी एवं शतरंज जैसे खेलों के प्रति भी लोगों की दीवानगी दिखती थी. कई खेल ऐसे हैं जो भारत की मिट्टी में पनपे, ऐसा ही एक खेल है ‘शतरंज’.

भारत के सबसे पुराने खेलों में से एक है शतरंज. जिसे फारसियों ने चेस नाम दिया, लेकिन प्राचीन काल में इस खेल को ‘अष्टपद’ के नाम से भी जाना जाता था. राजा-महाराजा इस खेल में अपने दासों को हाथी, घोड़ा आदि बना कर खेला करते थे. शतरंज का इतिहास लगभग 1,500 वर्ष पुराना है. पहले इसका नाम था ‘चतुरंग’, फिर 7वीं शताब्दी में पर्शिया के लोगों ने इसे अपनाया और नाम दिया शतरंज. और कुछ साल आगे बढ़ने पर 1200 ई. के आसपास दक्षिण यूरोप को शतरंज के नियमों में बदलाव के लिए जाना जाता है.

भारत में ऑल इंडिया चेस फेडरेशन है, जो 1951 में चेन्नई में खुला था. वहीं जमशेदपुर शहर में यह खेल 1980 से भी पहले से खेला जा रहा है. संयुक्त बिहार के समय में लोग गली-मोहल्ले में बैठकर इस खेल को खेलते थे. लेकिन 1980 के बाद यह काफी संगठित रूप से होने लगा.

वर्गीस ने जमशेदपुर में चेस को दिलाया नया मुकाम

जमशेदपुर में चेस का खेल 1980 के बाद विकसित हुआ. टाटा स्टील ट्रेनिंग सेंटर के कोच जयंत भुइंया ने बताया कि पहली बार नरेश अग्रवाल, आरएस पांडे, बृज मोहन, एनके सिंह, बीटी राव, मो शफीक अंसारी व विश्वनाथ अग्रवाल ने मिलकर सिंहभूम जिला चेस एसोसिएशन की स्थापना की थी. इसके बाद धीरे-धीरे चेस परवान चढ़ा. 1983 में जब चाईबासा के वर्गीस कोशी टाटा स्टील से जुड़े, तो उन्होंने सिस्टमेटिक रूप से चेस का विकास किया.

इसके बाद 1984 में टाटा स्टील ने अंतर विभागीय चेस टूर्नामेंट की शुरुआत की. वर्गीस कोशी जो टाटा स्टील से जुड़ने से पूर्व सीआरपीएफ में कार्यरत थे. उनके साथ वहां पर झारखंड के सबसे मशहूर खिलाड़ी नीरज मिश्रा भी काम करते थे. उनको भी उन्होंने टाटा स्टील में चेस के विकास के लिए जोड़ा. वहीं उन्होंने देवेंदु बरुआ व पीके सिंह जैसे बड़े खिलाड़ियों को टाटा में चेस के विकास लिए अपने साथ जोड़ा. ये सभी दिग्गज एक टीम (टाटा स्टील) से खेलते थे. और कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भी एक साथ शिरकत की और ट्रॉफी जीते. साथ ही साथ इन्होंने मिलकर बच्चों को चेस सिखाना शुरू किया.

2004 में जूनियर वर्ल्ड कप का जीता था खिताब

चेस की दुनिया में जमशेदपुुर के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर के खिलाड़ी ग्रैंडमास्टर का खिताब अपने नाम कर चुके हैं. मूल रूप से चक्रधरपुर के रहने वाले दीप सेनगुप्ता जमशेदपुर में चेस की बारीकियों को सिखा. इसके बाद वह 2004 में जूनियर वर्ल्ड चैंपियन बने. फिर कॉमनवेल्थ चेस टूर्नामेंट के अलावा कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में शिरकत की. 2010 में दीप सेनगुप्ता चेस की सबसे बड़ी उपाधि ‘ग्रैंडमास्टर’ का खिताब अपने नाम किया. फिलहाल दीप सेनगुप्ता पोलैंड में हैं.

पहले पान लाइन में होता था चेस : जयंत

जयंत भुइंया ने बताया कि जमशेदपुर में पहले चेस का जब टूर्नामेंट होता था तो गली-मोहल्ले में खेलने वाले खिलाड़ियों को आमंत्रित किया जाता था. वहीं साकची स्थित पान लाइन में बड़े पैमाने पर लोग अपनी दुकान के सामने बोर्ड लगाकर चेस खेलते थे. उन सबों को यह सूचना दी जाती थी कि, आप टूर्नामेंट में हिस्सा लें. वहीं वर्गिश कोशी ने पहली बार साकची कब्रिस्तान के पीछे स्थित बिहार मैत्री संघ में चेस सिखाना शुरू किया. वहां से प्रीतम सिंह जैसे राष्ट्रीय खिलाड़ी निकले. और अपनी खेल प्रतिभा से एक अलग छाप छोड़ी.धीरे-धीरे ये कारवां निकल पड़ा.

झारखंड के पहले ग्रैंडमास्टर दीप सेनगुप्ता ने चक्रधरपुर को दिलायी देश-विदेश में पहचान

चक्रधरपुर शतरंज के विश्व चैंपियन दीप सेनगुप्ता का शहर है. चक्रधरपुर के दीप सेनगुप्ता ग्रैंडमास्टर, विश्व चैंपियन, सभी आयु वर्ग के राष्ट्रीय व कॉमनवेल्थ गेम के विजेता रहे. इन्होंने शतरंज के खेल से झारखंड व पूरे देश को गौरवान्वित किया. वर्तमान में दीप सेनगुप्ता ओएनजीसी के सहायक खेल अधिकारी हैं. दीप के पिता राजश्री सेनगुप्ता चक्रधरपुर में रेलवे में कार्यरत थे. लेकिन अब पुरा परिवार कोलकाता शिफ्ट हो गया है.

27 साल पहले चक्रधरपुर में खुला था चेस एकेडमी

लंबे समय के बाद शतरंज खिलाड़ियों को 20 अप्रैल 1996 में चक्रधरपुर के रेलवे स्कूल भवन में चेस एकेडमी मिला. यह एकेडमी इस वर्ष अपना 27वां वर्षगांठ मनायेगा. वर्ष 2004 में राष्ट्रीय व वर्ष 2006 व 2007 में अंतरराष्ट्रीय शतरंज चैंपियनशिप चक्रधरपुर में आयोजित हुआ. जो चक्रधरपुर शहर के लिए इतिहास बन गया.

राष्ट्रीय व रेटेड खिलाड़ी :

विश्वजीत चटर्जी, अमित मेद्दार, प्रतिक सेनगुप्ता, एम श्रीकांत शर्मा, शामु शर्मा, अरिन विश्वास, मिली सरकार, सुमा सरकार, उमेश साव, राजेश कुमार, मनीष शर्मा, कौशिक दास, आनंद प्रकाश, वरुण आनंद, वर्षा सेनगुप्ता, सागर मुखी, सोभन प्रमाणिक, सौकिन प्रमाणिक, कमल देवनाथ, डॉ एस सरेन, राहुल मुखी, सैकत दत्ता, भरत सिंह, मनिदीप मुखी, समरजीत प्रमाणिक व शत्रुघन सिंह, विकास चंद्र सरकार व नीतेश केजरिवाल शामिल हैं.

राज्य स्तरीय खिलाड़ी

सीनियर में विश्वजीत चटर्जी, मनीष शर्मा, कमल देवनाथ, सैकत दत्ता, राहुल मुखी, उमेश कुमार, भरत सिंह, जूनियर में कुमार सिंह, कैनथ मुखी, मनीष शर्मा, तनिष्का मुखी, मनीदीप मुखी, श्रीजीत भुमिज, अच्युतानंद प्रधान शामिल हैं.

जिला स्तरीय खिलाड़ी :

उमेश सोना तांती, अमित कुमार सिंह, मनीष प्रधान, अच्युतानंद प्रधान, कैनिथ मुखी, कनिष्का मुखी, ईशान अभिनव, पवन शर्मा, श्रीजीत भौमिक, मौनिदीप मंडल, अहाना शर्मा, वेद अहुजा, प्रत्यूश कर, पीयूष रंजन, निष्ठा दास, निभिया घोष, अरनब कोयल, चिरंजीत सरकार व अनिमेष शामिल हैं.

दीप सेनगुप्ता ने बनाया जीत का रिकॉर्ड

वर्ष टूर्नामेंट का नाम स्थान

1996 नेश्नल अंडर-8 चैंपियन

2000 वर्ल्ड अंडर-12 चैंपियन

2002 वर्ल्ड अंडर-14 चेस चैंपियनशिप दुबई चैंपियन

2003 अंडर-16 कॉमनवेल्थ चेस टूर्नामेंट चैंपियन

2003 नेश्नल अंडर-16 चेस सुपर लीग चैंपियन

2004 अंडर-18 कॉमनवेल्थ चेस चैंपियनशिप चैंपियन

2004 फास्ट विन टीवी इंटरनेश्नल ओपन रेटिंग आईएम नॉम

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