Loading election data...

सीएसआइआर-एनएमएल की तकनीक से तरक्की की राह पर भारत

सीएसआइआर-एनएमएल की तकनीक से तरक्की की राह पर भारत

By Prabhat Khabar News Desk | November 25, 2024 11:32 PM

जमशेदपुर. सीएसआइआर-एनएमएल आज अपनी स्थापना के 75 साल पूरे कर रही है. इस दौरान सीएसआइआर-एनएमएल ने देश और दुनिया को कई नयी टेक्नोलॉजी दी. जिस टेक्नोलॉजी के बल पर भारत आज कई मामलों में पहली पंक्ति में खड़ा है. सीएसआइआर-एनएमएल द्वारा तैयार की गयी टेक्नोलॉजी से ना सिर्फ भारतीय सेना मजबूत हुई, बल्कि कई कंपनियों का उत्पादन बढ़ा. बाजार के साथ ही घरेलू इस्तेमाल होने वाली चीजें भी सीएसआइआर-एनएमएल के द्वारा तैयार की गयी टेक्नोलॉजी के बल पर काफी कारगर साबित हुईं.

26 नवंबर 1950 को जवाहरलाल नेहरू ने की थी स्थापना

सीएसआइआर-एनएमएल की स्थापना 26 नवंबर 1950 को हुई थी. पिछले 75 वर्षों में एनएमएल ने देश के विकास में अहम भूमिका निभायी है. देश पर जब भी बाहरी आक्रमण हुआ, तो इस प्रयोगशाला ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. 1965 भारत-पाक जंग में मैंगनीज की आपूर्ति की थी. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 26 नवंबर 1950 को एनएमएल जमशेदपुर की स्थापना की थी. काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) के तहत आने वाली इस प्रयोगशाला की आधारशिला भारत के गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी ने 21 नवंबर 1946 को रखी थी. प्रयोगशाला की स्थापना में टाटा का अहम योगदान रहा. देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर शांति स्वरूप भटनागर ने 1940 में देश में ऐसे शोध संस्थानों की योजना बनायी थी.

कैंसर के इलाज के लिए सीएसआइआर-एनएमएल के वैज्ञानिकों ने जगायी उम्मीद

अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा कैंसर के मरीज भारत में हैं. 2020 में सामने आये कैंसर के 1.93 करोड़ नये मामले में 14 लाख से अधिक भारतीय के थे. भारत में सालाना बढ़ते कैंसर मामलों को देखते हुए 2040 तक इनकी संख्या में 57.5 फीसदी तक की बढ़ोतरी होने की आशंका है. ये आंकड़े डराने वाले हैं. लेकिन, इन्हीं आंकड़ों के बीच भारत से ही कैंसर को लेकर एक सकारात्मक संकेत भी मिले हैं. काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्चर (सीएसआइआर ) के वैज्ञानिकों ने कैंसर के मरीजों के लिए मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड ( एमआरएनए ) टीके को विकसित कर लिया है. इस टीके को तैयार करने में सीएसआइआर के वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभायी है. अमेरिका में इसी मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड तकनीक के इस्तेमाल से अमेरिकी दवा कंपनी का फाइजर और दूसरा टीका मोर्डना तैयार किया गया था. कैंसर को भी एमआरएनए टीकों का प्रोटीन हरा सकता है. विश्व में अब तक निपाह, जीका, हपींज, डेंगू और हेपेटाइटिस के लिए एमआरएनए टीकों की घोषणा की गयी है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से कैंसर के मरीजों को ठीक किया जा सकता है. सीएसआइआर के चीफ साइंटिस्ट सह इनोवेशन मैनेजमेंट एंड डायरेक्टोरेट डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इसके अलावा सीएसआइआर-एनएमएल ने कई ऐसी तकनीक दी, जो हर भारतीय के लिए उपयोगी साबित हो रहा है.

सीएसआइआर-एनएमएल ने देश को कई महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी दी

1. आगरा के ताजमहल की चमक बरकरार रखने के लिए एनएमएल ने आसपास के कारीगरों के लिए स्मोकलेस कूपोला (धुआं रहित चूल्हा) बनाया, जिसने ताजमहल को प्रदूषण से बचाने में अहम भूमिका निभायी. 2. कोलकाता के हावड़ा ब्रिज के लिए कोटिंग तकनीक विकसित की. इसकी बदौलत आज भी यह ब्रिज नया दिखता है. इसमें जंग नहीं लगा है3. पुरी के जगन्नाथ मंदिर के गुंबद की अष्टधातु के मलीन पड़ते रंग के लिए नयी तकनीक विकसित की है. 4. स्टेनलेस स्टील की तकनीक एनएमएल की देन है. बिना निकेल के एनएमएल ने इस तकनीक को बनाने में सफलता हासिल की है. 5. लिथियम, निकेल, मैंगनीज और कोबाल्ट जैसी महत्वपूर्ण धातुओं को निकालने के लिए वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की पहली बैटरी री-साइक्लिंग पायलट सुविधा शुरू की. 6. हम जिस सिक्के का इस्तेमाल करते हैं, उसे तैयार करने का फॉर्मूला एनएमएल की देन है.

ई- वेस्ट से सोना निकालने की तकनीक विकसित की

राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला ने नयी दिल्ली की कंपनी मेसर्स नोवासेंसा प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक एमओयू किया. इसके तहत एनएमएल कंपनी को ई-वेस्ट रिसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने के लिए तकनीक प्रदान करेगी. एनएमएस नोवासेंसा प्राइवेट लिमिटेड को खराब बैटरी की री-साइक्लिंग एवं प्रिंटेड सर्किट बोर्ड को लेकर तकनीक हस्तांतरण करेगी. नोवासेंसा ई-कचरा की प्रोसेसिंग कर कीमती एवं बहुमूल्य धातु जैसे गोल्ड, लिथियम, कोबाल्ट, मैगनीज, निकिल, कॉपर, अल्युमीनियम और ग्रेफाइट निकालगी. यह रिसाइक्लिंग प्लांट पूर्ण रूप से ई-वेस्ट के लिए बहुमूल्य होगा, क्योंकि यह री-साइक्लिंग जीरो वेस्ट कॉन्सेप्ट पर कार्य करेगी.

किस-किस सेक्टर में किया गया है रिसर्च

खनिज प्रसंस्करण व अभियांत्रिकी : संचयन, कोयला एवं लौह अयस्क, पेट्रोग्राफी एवं पायलट पैमाने पर शोधलौह व अलौह धातु निष्कर्षण : एक्सट्रैक्टिव धातुविज्ञान, हाइड्रोमेटलर्जी, पायरोमेटलर्जी, इलेक्ट्रोमेटलर्जी एवं प्रोसेस मॉडलिंगसतह अभियांत्रिकी : संक्षारण, ट्राइबोलॉजी एवं सहत संशोधनअनुप्रयुक्त एवं विश्लेषणात्मक रसायन : रासायनिक विश्लेषण, जल रसायन एवं सहत रसायन मैटेरियल इंजीनियरिंग : मिश्र विकास, उनन्त सामग्री एवं प्रक्रिया, धातु रचना एवं सामग्री जॉइनिंग सामग्री मूल्यांकन : यांत्रिक व्यवहार, माइक्रोस्ट्रक्चरल चरित्र निर्धारण, गैर-विनाशकारी मूल्यांकन एवं एकीकृत कम्प्यूटेशनल सामग्री इंजीनियरिंग ऊर्जा एवं पर्यावरण : अपशिष्ट उपयोग, धातु रीसाइक्लिंग, ग्रीन धातु प्रौद्योगिकी एवं प्रदूषण शमन

डायरेक्टर डॉ संदीप घोष चौधरी ने कहा- देश को स्पेस टेक्नोलॉजी, हवाई जहाज निर्माण में आत्मनिर्भर बनाना लक्ष्य

सीएसआइआर-एनएमएल के डायरेक्टर डॉ संदीप घोष चौधरी ने संस्थान की स्थापना की पूर्व संध्या पर प्रभात खबर से विशेष बातचीत में अपनी भावी योजनाओं की जानकारी दी. उन्हाेंने बताया कि संस्थान का गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसे और समृद्ध करने के मिशन पर हमलोग काम कर रहे हैं. अब हमलोगों का अलगा सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी, सैन्य क्षेत्र और हवाई जहाज के निर्माण में आत्मनिर्भर बनाना है. उनसे बातचीत के मुख्य अंश…

सीएसआइआर-एनएमएल ने अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे किए. इन 75 वर्षों में आपकी संस्था ने देश और दुनिया को कई टेक्नोलॉजी दी, अब किस टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं ?

जवाब : हां, सीएसआइआर-एनएमएल का गौरवशाली इतिहास रहा है. इस विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है. अब हम लोग भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी, सैन्य क्षेत्र और हवाई जहाज के निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं. इसके लिए सीएसआइआर-एनएमएल मैग्नीशियम का पायलट प्लांट स्थापित किया जा रहा है, जहां से हम हाई प्योरिटी के मैग्नीशियम का उत्पादन कर सकेंगे. इससे देश को राजस्व का भी फायदा होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो तक कम करने का वादा किया है, इस दिशा में सीएसआइआर-एनएमएल क्या प्रयास कर रहा है ?

जवाब : इस दिशा में हमारी संस्था कार्य कर रही है. हम आयरन मेकिंग में हाइड्रोजन का इस्तेमाल करने की टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं. इससे कार्बन डाइऑक्साइड जो उत्सर्जन करते हैं, वह कम हो जाएगा. इससे ग्लोबल वार्मिंग पर बुरा असर नहीं पड़ेगा. इसके लिए किसी कंपनी के साथ करार करने की दिशा में काम हो रहा है.

देश में बैट्री की किल्लत की वजह से बैट्री से चलने वाले दोपहिया वाहन और कार की कीमत कम नहीं हो पा रही है, क्या एनएमएल इस पर कोई काम कर रही है ?

जवाब : देश में लीथियम नहीं है. बैट्री बनाने के लिए पूरी तरह से हम चीन पर निर्भर हैं, क्योंकि यह चीन में ही मिलता है. चीन से आयात होने की वजह से उसकी रेट अधिक रहती है, इस वजह से देश में बैट्री से चलने वाली सभी चीजों की रेट अधिक है. लेकिन, अब सीएसआइआर-एनएमएल ने उस तकनीक का ईजाद कर लिया है, जिससे हम पुरानी बैट्री को रिसाइकिल कर सकते हैं. पुरानी बैट्री का रिसाइकिल कर उसका 100 फीसदी इस्तेमाल नए सिरे से हो सके, इस पर काम किया जा रहा है और यह सफल भी हो गया है. अब हम उम्मीद कर सकते हैं कि देश में मोबाइल फोन, लैपटॉप से लेकर बैट्री से चलने वाली मोटर साइकिल और कार की कीमत भी आने वाले दिनों में कम हो जाएगी.

सीएसआइआर-एनएमएल को एक पैसा, पांच पैसा, 10 पैसा, 20 पैसा का एल्यूमीनियम क्वाइन बनाने का गौरव भी हासिल है, अब यह क्वाइन चलंत में नहीं है, तो इसका क्या होगा ?

जवाब : भारत सरकार ने इसके लिए सीएसआइआर-एनएमएल से संपर्क किया है. पुराने एल्यूमीनियम के क्वाइन का ढेर लग गया है. उस क्वाइन को अब मेल्ट करके उसके अंतर के सभी तत्वों को अलग-अलग करने का काम भी सीएसआइआर-एनएमएल करने जा रही है. जल्द ही इसकी शुरुआत होगी.

भारतीय सेना के लिए किस मिशन पर आप काम कर रहे हैं ?

जवाब : कई बार भारतीय सेना बड़े मिशन पर जब जाती है, तो सैनिक जिस वाहन में बैठते हैं, वह काफी भारी होती है. जिस वजह से ऊंचाई वाली जगहों पर पहुंचने में उसे दिक्कत होती है. लेकिन, अब हमलोग आर्म्ड व्हीकल तैयार कर रहे हैं. इसमें सेना की गाड़ियों के ऊपर मैग्नीशियम की एक प्लेट लगायी जायेगी. ऐसा करने से सेना की गाड़ियों का वजन कम हो जाएगा, जिससे उसकी स्पीड तो बढ़ेगी ही और वह बुलेट प्रूफ होगी. बुलेट प्रूफ करने के चक्कर में गाड़ियां अभी भारी होती हैं.

बंदूक की गोली को चमकदार बनाने को लेकर क्या प्लान है ?

जवाब : सीएसआइआर-एनएमएल भारतीय सेना व विभिन्न राज्यों की पुलिस के जवानों के पास जो बंदूक की गोली होती है, उसकी लाइफ ज्यादा रहे, उसकी शाइनिंग ज्यादा रहे, इसके लिए ब्रास पर एक केमिकल का कोट लगाने की तकनीक पर काम कर रही है. इसके लिए बंदूक की गोली बनाने वाली कंपनी के साथ बातचीत हुई है. जल्द ही इस पर काम शुरू होगा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version