टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट में देवदत्त पटनायक ने कहा – विज्ञान के पास क्यों का जवाब नहीं

विज्ञान घमंड बढ़ा सकता है, लेकिन उतार नहीं सकता है. विज्ञान को ज्यादा महत्व देना मूर्खता है. यह बात प्रसिद्ध माइथोलॉजिस्ट देवदत्त पटनायक ने कही.

By Prabhat Khabar News Desk | December 10, 2023 6:12 AM

विज्ञान घमंड बढ़ा सकता है, लेकिन उतार नहीं सकता है. विज्ञान को ज्यादा महत्व देना मूर्खता है. यह बात प्रसिद्ध माइथोलॉजिस्ट देवदत्त पटनायक ने कही. वह टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट में बोल रहे थे. शनिवार को इनकी लिखी पुस्तक बाहुबली : 63 इनसाइट्स इनटू जैनिज्म का विमोचन किया गया. श्री पटनायक धार्मिक मुद्दों का गंभीरता से विश्लेषण करते हैं. देवदत्त पटनायक ने आगे कहा कि भारत से ही भारत बनता है. यहां अलग-अलग भाषाएं कई जगहों से आती हैं. सभी भाषाओं के व्याकरण भी अलग-अलग हैं. यहां की पौराणिक कथाएं (माइथोलॉजी) बहुत पुरानी हैं. आज के युवा विज्ञान को ज्यादा तरजीह देते हैं. विज्ञान कैसे हुआ, यह तो बता सकता है, लेकिन यह नहीं बता सकता है कि कोई काम क्यों हुआ? विज्ञान के पास क्यों? का जवाब नहीं होता है. श्री पटनायक ने कहा कि आज 20 फीसदी जैनियों के पास संपत्ति है, जबकि इनकी आबादी मात्र दो फीसदी है. जैन सफल समुदाय हैं. यही कारण है कि इनके पास ज्यादा लक्ष्मी है. बुरे समय में लोग अध्यात्म का सहारा लेते हैं, जबकि अच्छे समय में मंदिर का सहारा लेते हैं.

तकनीक ने साहित्य से दूरी बना दी

प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी ने कहा कि आज कल देश के करीब हर शहर में साहित्य उत्सव हो रहे हैं. लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. लेकिन, लोगों में पढ़ने के प्रति रुचि घटी है. इसमें तकनीक का भी योगदान है. इसने साहित्य से दूरी कायम कर दी है. युवा अलग-अलग माध्यमों से पढ़ रहे हैं, लेकिन किताब पढ़नेवालों की संख्या कम हो रही है. यही कारण है कि साहित्य उत्सव भी बहुत प्रभावशाली नहीं हो पा रहे हैं. इन्हें प्रभावी करने में समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. साहित्य में जीवन दर्शन होता है. साहित्य ने कई महत्वपूर्ण आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभायी है. तकनीक का सकारात्मक असर भी है. तकनीक ने कई माध्यमों को सर्वसुलभ बनाया है, लेकिन, हम लोग अच्छी चीजों को पढ़ने की बजाय व्हाट्सएप व फेसबुक जैसी चीजों पर ज्यादा समय बिताते हैं. पहले हम पूरा-पूरा अखबार पढ़ जाते थे. अब केवल हेडलाइन तक ही सीमित रह जा रहे हैं. तकनीक ने हमें इ-कॉमर्स की सुविधा दी है. इससे अच्छी-अच्छी किताबें छोटे-छोटे शहरों में मिल जा रही है. मॉल संस्कृति तो आयी है, लेकिन वहां किताबें छोड़कर सभी चीज बिकती है.

Also Read: विश्व मानवाधिकार दिवस : अपने अधिकारों को जानें, तभी शोषण से मिलेगी मुक्ति

Next Article

Exit mobile version