जमशेदपुर की स्नेहलता के अंगों से मिला चार को नया जीवन, अंगदान कर लोगों के लिए बनी उदाहरण
जमशेदपुर निवासी स्नेहलता चौधरी (63) के अंगदान से चार लोगों को नया जीवन और दो को नयी दृष्टि मिली है. उन्हें कुछ दिन पहले ‘ब्रेन डेड' घोषित किया गया था. नेत्रदान अभियान की प्रबल समर्थक थीं और उन्होंने जीवन भर अंगदान का समर्थन किया.
Jamshedpur News: जमशेदपुर निवासी स्नेहलता चौधरी (63) के अंगदान से चार लोगों को नया जीवन और दो को नयी दृष्टि मिली है. उन्हें कुछ दिन पहले ‘ब्रेन डेड’ घोषित किया गया था. उनके भाई आइएएस रवींद्र अग्रवाल एम्स प्रशासन के अतिरिक्त निदेशक के रूप में तैनात हैं और वह जमशेदपुर डीसी भी रह चुके हैं. स्नेहलता पिछले 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा के दौरान सुबह में जब गम्हरिया मुख्य मार्ग के पास सैर पर निकली थीं, तो बाइक सवार ने उन्हें धक्का मार दिया था. हादसे में सिर में गंभीर चोट लग गयी थी.
स्नेहलता चौधरी का किया गया था ऑपरेशन
वरिष्ठ चिकित्सक ने बताया कि स्नेहलता चौधरी (63) का पहले झारखंड के जमशेदपुर में सिर की चोट के लिए ऑपरेशन किया गया था और फिर आगे एम्स ट्रॉमा सेंटर लाया गया. उनके पति रमन चौधरी का सरायकेला में कपड़ा का व्यवसाय है. इधर, रविवार को दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार किया गया.
जीवनभर किया अंगदान का समर्थन
स्नेहलता स्वास्थ्य के प्रति काफी जागरूक थीं और 25 वर्षों से नियमित तौर पर सुबह की सैर के लिए जाती थीं. चिकित्सक ने बताया कि तमाम कोशिशों के बाद भी उनकी हालत नहीं सुधरी और 30 सितंबर को उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया. वह एक गृहिणी और सामाजिक कार्यकर्ता थीं. चिकित्सक ने बताया कि वह नेत्रदान अभियान की प्रबल समर्थक थीं और उन्होंने जीवन भर अंगदान का समर्थन किया. उन्होंने कौन बनेगा करोड़पति के लिए भी क्वालीफाई किया था. राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रतिरोपण संगठन की व्यवस्था के अनुसार स्नेहलता का दिल, एक किडनी और कॉर्निया एम्स के मरीजों को दान किये गये, जबकि उनके लिवर का इस्तेमाल सेना के आरआर अस्पताल में किया जायेगा. उनकी दूसरी किडनी राम मनोहर लोहिया अस्पताल में एक मरीज को दी गयी.
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नेक पहल बन गयी अन्य लोगों के लिए उदाहरण
चिकित्सक ने कहा कि फॉरेंसिक मेडिसिन टीम ने ‘वर्चुअल ऑटोप्सी’ और अंग निकालने के दौरान पोस्टमॉर्टम भी किया. एक नौकरशाह के परिवार के सदस्य द्वारा अंगदान ऐसे समय में किया गया है, जब सरकार इस मुद्दे पर जागरूकता उत्पन्न करने की कोशिश कर रही है. यह पहल अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बन गयी है. चिकित्सक ने कहा कि अप्रैल से, दिल्ली के एम्स ट्रॉमा सेंटर में 12 दान हुए हैं, जो 1994 के बाद से यहां सबसे अधिक है. ट्रॉमा सेंटर की टीम ने ‘ब्रेन डेथ’ प्रमाणन और अंग प्राप्त करने की प्रक्रियाओं में बदलाव किये हैं, जिससे अंग दान बढ़े हैं.