जमशेदपुर. इंडियन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आइएपी) जमशेदपुर ब्रांच अर्धवार्षिक सम्मेलन रविवार को गोलमुरी क्लब में आयोजित किया गया.कार्यक्रम का उद्घाटन मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ प्रदीप कुमार, एमजीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ केएन सिंह, रानी चिल्ड्रेन अस्पताल रांची के चिकित्सक डॉ. राजेश कुमार, डॉ बीआर मास्टर, डॉ अखौरी मिंटू सिंह, डॉ मिथलेश कुमार ने संयुक्त रूप से किया. कार्यक्रम के दौरान बर्थ एसफिक्सिया के बारे में विस्तार से चर्चा की गयी.
बताया गया कि यह बच्चे के जन्म के तुरंत बाद होता है. ऑक्सीजन बच्चे के मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पाता. बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. ऑक्सीजन न लेने के कारण बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. शरीर में एसिड का स्तर बढ़ जाता है. यह जानलेवा हो सकता है. डॉ. राजेश कुमार ने बच्चों को ऑक्सीजन चढ़ाने में रखी जाने वाली सावधानियों के बारे में बताया. कहा कि अधिक ऑक्सीजन देने से नवजात के आंखों की रोशनी जा सकती है. सम्मेलन में 82 से अधिक शिशु रोग विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया.
क्यों जरूरी है संस्थागत प्रसव
रानी चिल्ड्रेन अस्पताल रांची के चिकित्सक डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि जन्म के बाद पहला घंटा नवजात के लिए महत्वपूर्ण होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व भर में कुल नवजातों की मौतों में 23 फीसद सिर्फ बर्थ एसफिक्सिया से होती है. इसलिए संस्थागत प्रसव की सलाह दी जाती है. बर्थ एसफिक्सिया की स्थिति में विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में नवजात को उचित इलाज उपलब्ध कराया जा सकता है. आइएपी अध्यक्ष अखौरी मिंटू सिन्हा ने कहा कि संस्था समय-समय पर विभिन्न प्रकार की बीमारियों के इलाज में अपनायी जाने वाली नयी तकनीकों की जानकारी देने के लिए संगोष्ठी आयोजित करती है. डॉ. मिथिलेश कुमार ने कहा कि कोरोना के बाद इलाज के तरीकों में बदलाव हुआ है, जिससे डॉक्टरों को अपडेट होने की जरूरत है.