जमशेदपुर के दलमा में बनेगा ग्रासलैंड, वन्य जीवों का बढ़ेगा फूड चेन
जमशेदपुर के दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी से सटे गांवों में हाथियों और मानव के आपसी संघर्ष को कम करने व वन्यजीवों की हो रही कमी को दूर करने के लिए वन विभाग ने कार्य योजना बनायी है. अब वन क्षेत्र में ग्रास लैंड विकसित किया जा रहा है, ताकि इसके माध्यम से जीव जंतुओं को बाहर निकलने से रोका जा सके.
Dalma Wildlife Sanctuary: जमशेदपुर के दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी से सटे गांवों में हाथियों और मानव के आपसी संघर्ष को कम करने व वन्यजीवों की हो रही कमी को दूर करने के लिए वन विभाग ने कार्य योजना बनायी है. अब वन क्षेत्र में ग्रास लैंड (घास का मैदान) विकसित किया जा रहा है, ताकि इसके माध्यम से जीव जंतुओं को बाहर निकलने से रोका जा सके. ग्रास लैंड के माध्यम से दलमा सेंचुरी क्षेत्र में शाकाहारी व मांसाहारी जीवों के लिए भोजन शृंखला सुदृढ़ करने की कवायद शुरू कर दी गयी है. ऐसा माना जा रहा है कि दलमा सेंचुरी क्षेत्र में लगातार हो रहे अतिक्रमण के चलते उसमें रहने वाले जानवरों को पर्याप्त भोजन वन क्षेत्र में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. यही कारण है कि हाथी और अन्य जानवर लगातार आबादी वाले क्षेत्र में घुस रहे हैं और बच्चों व मवेशियों को निशाना बना रहे हैं. इन हमलों को रोक पाने में नाकाम होने पर वन विभाग के खिलाफ लोगों में आक्रोश भी बढ़ रहा है.
मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर प्रभावी नियंत्रण पर कार्य शुरू
लगातार बढ़ रहे मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर वन विभाग ने भी इसके प्रभावी नियंत्रण पर कार्य शुरू कर दिया है. करीब 194 वर्ग किलोमीटर में फैले दलमा सेंचुरी क्षेत्र में अब ग्रास लैंड विकसित कर सभी जानवरों के लिए पर्याप्त फूड चेन तैयार की जायेगी. दलमा सेंचुरी में अभी 10 हेक्टेयर में ग्रास लैंड विकसित किया जा रहा है. इन ग्रास लैंड के विकसित होने से दलमा सेंचुरी में रहने वाले जंगली जानवरों की आबादी बढ़ेगी. शाकाहारी जानवरों के अलावा जीव जंतुओं का भी रखरखाव आसान हो सकेगा. भोजन के लिए पर्याप्त शिकार भी दलमा के अंदर ही उपलब्ध होगा.
शाकाहारी के साथ मांसाहारी भोजन के लिए नये ग्रासलैंड विकसित होंगे : डीएफओ
दलमा के डीएफओ डॉ अभिषेक कुमार ने बताया कि दलमा में पहले से कई ग्रासलैंड अपने से बने हैं, लेकिन शाकाहारी के साथ मांसाहारी के भोजन के लिए जरूरी है कि इस तरह के नये ग्रासलैंड विकसित किये जायें. इस दिशा में काम शुरू हो गया है. मानव-वन्य जीव संघर्ष रोकने और जानवरों की संख्या में बढ़ोतरी में अगर यह फार्मूला कारगर रहा, तो इसे और विकसित किया जायेगा.
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