PHOTOS: जमशेदपुर में बनी विभिन्न समाज की कैंटीन में मिलता है घर जैसा खाना, उठायें लुत्फ
टाटा स्टील की स्थापना के साथ ही एक तरफ कालीमाटी गांव टाटानगर बनने की ओर अग्रसर था, तो दूसरी ओर देश के विभिन्न स्थानों से लोगों ने यहां आकर बसना शुरू कर दिया था. इन्होंने न केवल अपनी संस्कृति व परंपरा को बचाये रखा, बल्कि अपने राज्य के पारंपरिक व्यंजनों से शहरवासियों को रूबरू भी कराया.
केरल से आकर शहर में बसे लोगों को घर जैसा खाना उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 1980 में साकची गुरुद्वारा के पीछे केरला समाजम स्कूल के एक हिस्से में कैंटीन की शुरुआत की गयी. बाद में स्कूल के साथ कैंटीन भी शिफ्ट हो गयी. वर्तमान इस कैंटीन में मात्र 100 रुपये में अनलिमिटेड चावल, दाल, सांभर, दो सब्जी, अचार, पापड़, रसम और मट्ठा का आनंद उठा सकते हैं. सुबह से लेकर रात तक तीन-चार तरह का डोसा, सांभर-चटनी के साथ परोसा जाता है. कैंटीन सुबह साढ़े सात से ढाई और शाम पांच से रात साढ़े नौ बजे तक खुली रहती है.
टाटा स्टील की जमीन पर वर्ष 1917 में मद्रासी सम्मेलनी बना. छोटे से भवन में मद्रासी संस्कृति को फलने-फूलने का अवसर मिला. यहां पर साउथ इंडिया से आये लोगों के ठहरने की अस्थायी व्यवस्था की गयी. उनके लिए भोजन की व्यवस्था एक छोटी से रसोई से की गयी. यहीं से कैंटीन की शुरुआत हुई. उस समय मात्र एक रुपये में थाली भर खाना दिया जाता था. वर्तमान 150 रुपये में सामान्य थाली (चावल, दाल, रोटी, दो सब्जी, सलाद, मट्ठा) परोसी जाती है. शनि और रविवार को 175 रुपये की साउथ स्पेशल थाली में चावल, तीन रोटी, रसम, सब्जी (कुट्टू, अवियल), रायता, पापड़, सलाद, चटनी, मट्ठा परोसा जाता है. लोगों की डिमांड पर रविवार को नॉर्थ इंडियन थाली भी उपलब्ध करायी जाती है. लंच की भी व्यवस्था है. शाम में नाश्ता में 18-20 तरह का डोसा परोसा जाता है.
1916 में महाराष्ट्र हितकारी मंडल की स्थापना की गयी थी. यहां वर्ष 1988 में महाराष्ट्र भगिनी समाज की सदस्याओं की देखरेख में कैंटीन की शुरुआत की गयी. कम कीमत पर घर जैसा भोजन भरपेट उपलब्ध कराना इसका उद्देश्य था. 100 वर्ष पूरे होने पर मंडल के साथ-साथ कैंटीन को भी आधुनिक रूप दिया गया. यहां 160 रुपये में भरपेट खाना मिलता है. थाली में चावल, फुलका रोटी, दो सब्जी, सलाद, चटनी, मट्ठा परोसा जाता है. रविवार को दोपहर व मंगलवार को रात में 190 रुपये में स्पेशल थाली मिलती है. इसमें सलाद, पूरी, पुलाव, काबुली चना/राजमा, खीर, चटनी, मट्ठा आदि परोसा जाता है. खाने में महाराष्ट्र से मंगाये जाने वाले विशेष मसाला का प्रयोग होता है. जिससे रोज बनने वाली सब्जियों में महाराष्ट्र का स्वाद मिलता है.
राजस्थान से रोजी-रोजगार की तलाश में शहर पहुंचे लोगों को घर जैसे खाने की कमी महसूस नहीं हो, इसी सोच के साथ जुगसलाई स्थित मारवाड़ी धर्मशाला में वर्ष 1942 में मारवाड़ी बासा की शुरुआत की गयी. दो रुपये में महीने भर दो टाइम का खाना मिलता था. राजस्थान का मसाला बिना प्याज-लहसुन के इस खाने को स्वादिष्ट बनाता है. जुगसलाई रेलवे फाटक के पास चौक बाजार स्थित मारवाड़ी बासा में अन्य समाज के लोग भी खाना बड़े चाव से खाते हैं.
राजस्थानी कढ़ी, गंवार फली सब्जी, गट्टे की सब्जी यहां की खासियत है. 80 रुपये की थाली में पांच रोटी, चावल, दाल, कढ़ी, सलाद, मिस्सी रोटी, तीन सब्जी, आचार, पापड़ परोसा जाता है. रविवार को खीर भी थाली की शान बढ़ाती है. यहां सुबह 11 से दोपहर तीन और शाम साढ़े सात से रात के 10 बजे तक लोग खाने का आनंद उठा सकते हैं.
रिपोर्ट : रीमा डे, जमशेदपुर