रतन टाटा ने कैसे ज्वॉइन किया था ‘Tata Group’, अमेरिका से इस कारण लौटना पड़ा भारत
रतन टाटा ने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से डिग्री ली. वहां से डिग्री लेने के बाद उन्होंने अमेरिका में ही नौकरी करने का मन बना लिया था लेकिन अपने दादी की तबीयत खराब होने की वजह से उन्हें भारत लौटना पड़ा था.
जमशेदपुर : मशहूर उद्योगपति रतन टाटा का 9 अक्टूबर को निधन हो गया. 86 साल की उम्र में मुंबई में अंतिम सांस ली. उनका जन्म 28 दिसंबर 1937 को गुजरात के सूरत में पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम नवल टाटा और माता का नाम सोनू टाटा था. लेकिन क्या आपको पता है कि उन्होंने टाटा ग्रुप कैसे कैसे ज्वाइन किया था. अगर नहीं तो आज हम इसकी पूरी कहानी आपको बताएंगे.
अमेरिका में ही बना लिया था नौकरी करने का मन, लेकिन इस वजह से आना पड़ा भारत
रतन टाटा ने आर्किटेक्चर एंड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी. इसके बाद वे कॉर्नेल यूनिवर्सिटी गए थे. वहां से डिग्री लेने के बाद उन्होंने अमेरिका में ही नौकरी करने का मन बना लिया था, लेकिन उनकी दादी यानी लेडी नवजबाई की तबीयत खराब होने के बाद उन्हें भारत वापस आना पड़ा. यहां आकर उन्होंने आइबीएम ज्वाइन कर लिया था. उनकी पहली नौकरी के बारे में उनके परिवार को भी नहीं पता था.
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जेआरडी टाटा क्यों हुए रतन टाटा से नाराज
माना जाता है कि उस समय टाटा ग्रुप के चेयरमैन जेआरडी टाटा को जब रतन टाटा की नौकरी के बारे पता चला तो वह काफी नाराज हुए. उन्होंने रतन टाटा को फोन करके बायोडाटा शेयर करने के लिए कहा. रतन टाटा के पास उस समय बायोडाटा नहीं था. उन्होंने आईबीएम में ही टाइपराइटर्स पर टाइप करके अपना बायोडाटा बनाया था. इसके बाद उन्होंने जेआरडी टाटा को अपना बायोडाटा शेयर किया था.
1962 में टाटा इंडस्ट्रीज में लगी थी नौकरी
वर्ष 1962 में टाटा इंडस्ट्रीज में उनकी नौकरी लग गई थी. रतन टाटा भले ही टाटा फेमिली के मेंबर थे फिर भी उन्हें कंपनी के सारे काम करने होते थे. वह अनुभव लेने के बाद कंपनी के सर्वोच्च पद पर पहुंचे थे. वर्ष 1991 में उन्होंने टाटा संस और टाटा ग्रुप के अध्यक्ष का कार्यभार संभाला था. इसके बाद 21 वर्षों तक उन्होंने कंपनी का नेतृत्व किया और कंपनी को कई बुलंदियों तक पहुंचाने में मदद की. रतन टाटा के अध्यक्ष पद पर कार्यरत करते समय ही टाटा ग्रुप ने टेटली टी, जगुआर लैंड रोवर और कोरस को टेकओवर किया था. इसके अलावा टाटा ग्रुप का कारोबार 100 से ज्यादा देशों तक फैला है.
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