विश्व मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाएगा. इसका उद्देश्य अपनी-अपनी मातृभाषा को समृद्ध, संरक्षित और उसके प्रति रुचि बढ़ाना है. वहीं, सरकार क्षेत्रीय भाषा को संरक्षित करने और उसके प्रति रुचि बढ़ाने के लिए इसे कोर्स में शामिल कर चुकी है. प्रतियोगी परीक्षाओं में क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा की परीक्षा अलग से होती है और इस विषय को लेकर परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों को लाभ भी होता है.
लेकिन अगर हम बात करें, इन क्षेत्रीय और जनजातीय भाषा (टीआरएल) में कॉलेजों में हो रही पढ़ाई का, तो हाल बुरा है. कोल्हान विश्वविद्यालय में टीआरएल के लिए अलग से विभाग खोला गया है. भले ही प्रतियोगी परीक्षा के बहाने, लेकिन अच्छी बात है कि जनजातीय भाषा जिसमें हो, संथाली, कुड़माली, मुंडारी शामिल है, इसकी पढ़ाई करने वालों की संख्या 450 से ज्यादा है, लेकिन दुर्भाग्य है कि विवि के टीआरएल विभाग में एक भी स्थायी शिक्षक नहीं है.
विभाग खुलने के दौरान दो स्थायी शिक्षक थे, इसमें एक सेवानिवृत हो गये और एक की मौत कोरोना महामारी के दौरान हो गयी. अब 450 विद्यार्थी संविदा के शिक्षकों के भरोसे पढ़ाई कर रहे हैं. ये तो स्थिति विवि की है, अमूमन विवि के उन कॉलेजों की भी यही स्थिति है जहां हो, संथाली, मुंडारी, ओड़िया, बांग्ला, मैथिली, उर्दू भाषा में पढ़ाई हो रही है. जनजातीय भाषा के लिए तो किसी भी कॉलेज में स्थायी शिक्षक नहीं है. ओड़िया, बांग्ला, उर्दू, मैथिली भाषा को पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या न के बराबर है. जिन कॉलेजों में इन विषयों के शिक्षक नियुक्त थे, उन्हें दूसरी जिम्मेदारी दे दी गयी. जबकि मैथिली भाषा के दो शिक्षक को प्राचार्य बना दिया गया है.
को-ऑपरेटिव कॉलेज में ओड़िया, बांग्ला और उर्दू के पद स्वीकृत हैं, लेकिन उर्दू को छोड़ अन्य दोनों विषयों में न तो शिक्षक हैं और न विद्यार्थी हैं.
एलबीएसएम, एबीएम कॉलेज में मैथिली के पद हैं, लेकिन यहां विद्यार्थी नहीं हैं.
घाटशिला और एलबीएसएम कॉलेज में जनजातीय भाषा में अच्छी संख्या में विद्यार्थी हैं, लेकिन यहां भी स्थायी शिक्षक नहीं हैं. संविदा पर शिक्षक पढ़ा रहे हैं