”जीजी ईरानी ट्रॉफी” के शुरुआत की कहानी है दिलचस्प, इस उद्देश्य से किया गया था आयोजन
पारसी समुदाय को आपस में जोड़ने और समाज के लड़के-लड़कियों के मेल-मिलाप के लिए पारसी क्रिकेट टूर्नामेंट ''जीजी ईरानी ट्रॉफी'' की शुरुआत डॉ जेजे ईरानी ने की थी. पांच स्थानों पर आयोजन ने वाले इस टूर्नामेंट के शुरुआत की कहानी भी दिलचस्प है
पारसी समुदाय को आपस में जोड़ने और समाज के लड़के-लड़कियों के मेल-मिलाप के लिए पारसी क्रिकेट टूर्नामेंट ”जीजी ईरानी ट्रॉफी” की शुरुआत डॉ जेजे ईरानी ने की थी. देश के पांच स्थानों पर आयोजन ने वाले इस टूर्नामेंट के शुरुआत की कहानी भी दिलचस्प है. डॉ जेजे ईरानी के पिता जीजी ईरानी क्रिकेट के काफी शौकीन थे. उनकी याद में इस टूर्नामेंट का आयोजन डॉ जेजे ईरानी ने शुरू कराया.
यह अब पारसियों को जोड़ने का एक बेहतर माध्यम बन गया है. टूर्नामेंट की शुरुआत 1978 में हुई थी. पहले पारसी समुदाय की पांच टीमें एक-दूसरे के घर में जाकर अकेले-अकेले मैच खेला करती थी. स्वर्गीय जीजी ईरानी उत्साही खिलाड़ी होने के साथ-साथ विभिन्न शहरों के पारसी समुदायों (युवा एवं बुजुर्ग) के बीच आपसी सौहार्द और मेलजोल को बढ़ावा देने के प्रति समर्पित थे.
इस टूर्नामेंट की शुरुआत उनकी पत्नी स्वर्गीय खोर्शेद ईरानी, पुत्री डायना आर होरमुजजी और उनके पुत्र डॉ जमशेद जे ईरानी (पूर्व एमडी, टाटा स्टील और पूर्व चेयरमैन, टाटा संस) ने की थी.
जेजे ईरानी के दान के सिक्कों से बना संग्रहालय
लौहनगरी अपनी कई विशिष्टताओं के लिए जाना जाती है, जिसमें यहां का सिक्का संग्रहालय भी शामिल है. झारखंड-बिहार में ऐसा संग्रहालय नहीं है. यह देश का इकलौता निजी सिक्का संग्रहालय है. इसकी विशेषता यह भी है कि यह दान के सिक्कों से शुरू हुआ और आज भी चल रहा है. साकची स्ट्रेट माइल रोड पर स्थित संग्रहालय का उद्घाटन टाटा स्टील के तत्कालीन सीओओ (चीफ ऑपरेटिंग आफिसर) हेमंत एम. नेरुरकर ने 29 अप्रैल 2009 को किया था. संग्रहालय की परिकल्पना छह मार्च 1994 को की गई थी.