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मौत को करीब से देखा, लेकिन जिद थी एवरेस्ट फतह करने की…रूह कंपा देगा अस्मिता दोरजी का अनुभव

जमशेदपुर की अस्मिता दोरजी एवरेस्ट फतह के बाद मंगलवार को अपने शहर लौटीं. उन्होंने 45 दिन के अपने अभियान का अनुभव साझा किया. उन्होंने बताया कि इस साल 14 पर्वतारोही बर्फ की सफेद चादर में हमेशा के लिए खो गये. उन्होंने मौत को बेहद करीब से देखा. उनका पूरा अनुभव रूह कंपा देने वाला है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 31, 2023 12:48 PM

जमशेदपुर, निसार. टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) की सीनियर इंस्ट्रक्टर अस्मिता दोरजी एवरेस्ट फतह करने के बाद मंगलवार को शहर लौटीं. 23 मई को एवरेस्ट फतह करने वाली अस्मिता दोरजी का जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में जोरदार स्वागत किया गया. इस मौके पर उन्होंने 45 दिन के अपने अभियान का अनुभव साझा किया.

इस साल 14 पर्वतारोही बर्फ की सफेद चादर में हमेशा के लिए खो गये

अस्मिता दोरजी ने कहा, मैंने दूसरी बार बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट फतह करने की कोशिश की थी. मौसम काफी सर्द होने के कारण पिछले वर्ष की तुलना में इस साल मेरा एक्सपीडिशन काफी मुश्किल था. हवा 45-50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी, जिससे ऊपर चढ़ने में कठिनाई हो रही थी. इस साल एवरेस्ट फतह करने गये 14 पर्वतारोही बर्फ की सफेद चादर में हमेशा के लिए खो गये. उसमें से एक साथी हमारी टीम का था.

कहा- मौत को काफी नजदीक से देखा

अस्मिता दोरजी कहती हैं कि हमने मौत को काफी नजदीक से देखा, एक समय मैं सहम गयी थी. लेकिन हिम्मत नहीं हारी और एवरेस्ट फतह किया. 26,000 किलोमीटर तक मुझे किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हुई. मैं बिना ऑक्सीजन के ऊपर चढ़ रही थी, लेकिन ऊंचाई पर पहुंचने के बाद हाई एल्टीट्यूड संबंधित कुछ परेशानियां होने लगी. तेज और सर्द हवा के कारण गला पूरी तरह से खराब हो गया. अजीब-सी दर्द होने लगी, जिससे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. इसके बाद मेरे शेरपा ने सलाह दी कि अस्मिता तुम ऑक्सीजन सिलिंडर का इस्तेमाल कर लो. मैंने उसकी बात मानी और ऑक्सीजन सप्लीमेंट इस्तेमाल किया.

पिता ने बछेंद्री पाल के साथ बिना ऑक्सीजन किया था एवरेस्ट फतह

अस्मिता ने बताया कि उसके पिता अंग दोरजी ने बछेंद्री पाल के साथ 1983 में एवरेस्ट फतह किया था. उस समय उनके पिता ने ऑक्सीजन का इस्तेमाल नहीं किया था. उसके रगों में भी उनका ही खून है. उन्होंने भी कोशिश की, लेकिन थोड़ी सी दूरी से चूक गयी, जिसका उसे मलाल है.

चढ़ाई करने से ज्यादा वापसी मुश्किल

एवरेस्ट विजेता अस्मिता दोरजी ने बताया कि एवरेस्ट पर चढ़ना और उसकी चोटी पर पैर रखना जितना मुश्किल है. उससे अधिक कठिन लौटना है. एक तो ढलान होती है. जब हम अपने कैंप से ऊपर चढ़ते हैं, तो कहीं-कहीं पर बड़े-बड़े हिम दरार दिखाई देते हैं. इसे सीढ़ी लगाकर पार करना पड़ता है. लौटने के दौरान इन दरारों में बर्फ थी, जिससे काफी दिक्कते हुईं. ऐसे ग्लेशियर जहां हम पानी पीते थे, वह भी पूरी तरह से जम गया था, इसलिए हमें पानी बनाने में काफी दिक्कत हुई. ऊपर से 15-17 किलो का अपना सामान लेकर चलना भी चुनौतीपूर्ण था. उन्होंने बताया कि उनकी टीम के एक सदस्य को हाई एल्टीट्यूड सेरेबल एडमा हो गया था, जिससे उनका सेंस काम करना बंद हो गया था. यह देखकर भी डर लग रहा था, लेकिन हिम्मत बनाये रखा. स्वागत के मौके पर टाटा स्टील के वीपी (सीएस) चाणक्य चौधरी, उत्तम सिंह और अन्य लोग मौजूद थे.

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