Jamshedpur Vidhan Sabha|Jamshedpur Election 2024|Jharkhand Assembly Election 2024: ट्रेड यूनियन व कांग्रेस के नेता व जाने-माने चिकित्सक स्व डॉ मनोहर कृष्ण अखौरी की पत्नी व बॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की नानी मधु ज्योत्सना अखौरी वर्ष 1967 में जमशेदपुर की पहली महिला विधायक बनीं थीं. वे ट्रेड यूनियन से भी जुड़ी हुई थीं उन्हें जेम्को तार कंपनी ट्रेड यूनियन का अध्यक्ष भी चुना गया था.
ज्योत्सना अखौरी ने जमशेदपुर से 1962 में लड़ा था चुनाव
मधु ज्योत्सना अखौरी ने पहली बार कांग्रेस के टिकट से वर्ष 1962 में जमशेदपुर सीट से चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें 13138 वोट मिले थे. वहीं सीपीआइ प्रत्याशी रामावतार सिंह को कुल मत 25748 मिला था. उसके बाद 1967 में पुन: जमशेदपुर पूर्वी से लड़ी थीं. इसमें वह विजयी रही थीं. इसमें उन्हें कुल 17083 मत मिला था.
जमशेदपुर में मजदूर नेताओं की भरमार, पर टिकट के लाले
जमशेदपुर में मजदूर नेताओं की कमी नहीं है लेकिन किसी नेता को टिकट नहीं मिलता है. इंटक के नेताओं का यह शहर हब है, जहां राष्ट्रीय स्तर के नेता रहते हैं. लेकिन उनको भी टिकट के लाले पड़ जाते हैं.
जमशेदपुर में सांसद बनते रहे हैं श्रमिक नेता
जमशेदपुर लोकसभा चुनाव में भी मजदूर नेताओं को प्रतिनिधित्व मिलता रहा है. चार दशक तक टेल्को वर्कर्स यूनियन के महासचिव रहे गोपेश्वर ऐसे नेता रहे, जिन्होंने 1984 के इंदिरा गांधी की लहर में इस लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी. उन्होंने वामपंथी विचारधारा के मजदूर नेता टीकाराम माझी को हराया था.
1971 में भाकपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे एटक नेता केदार दास
हालांकि उनके बाद कोई मजदूर नेता संसद तक नहीं पहुंचा, न ही राजनीतिक दलों ने मजदूर नेता को लोकसभा चुनाव का टिकट दिया. जमशेदपुर लोकसभा सीट से एटक के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष केदार दास 1971 में भाकपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे और 206 मत से हार गये थे. चुनाव में कांग्रेस के सरदार स्वर्ण सिंह विजयी हुए थे.
जनता पार्टी के रुद्र प्रताप षाड़ंगी से हार गए थे वीजी गोपाल
वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में वीजी गोपाल मैदान में उतरे. वे टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष थे. वह जनता पार्टी के रुद्र प्रताप षाड़ंगी से पराजित हुए. 1980 के चुनाव में रुद्र प्रताप षाड़ंगी (भाजपा) व वीजी गोपाल (कांग्रेस) के टिकट पर फिर आमने-सामने थे. इस बार भी वीजी गोपाल की पराजय हुई. इसके बाद 1984 में गोपेश्वर को चुनाव लड़ने का अवसर मिला था.
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