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अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को सींचने वाला ऐतिहासिक आदिवासी भवन पड़ा हुआ है वीरान व सुनसान

Jamshedpur news,यह वीरान सा दिख रहा भवन आदिवासी भवन नाम काफी से चर्चित है. यह भवन पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर प्रखंड क्षेत्र के करनडीह में अवस्थित है. एक समय था राजधानी रांची के बाद करनडीह और आदिवासी भवन नाम काफी सुर्खियों मेें था. अलग झारखंड राज्य बनने के बाद इस भवन में लोगों को […]

Jamshedpur news,यह वीरान सा दिख रहा भवन आदिवासी भवन नाम काफी से चर्चित है. यह भवन पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर प्रखंड क्षेत्र के करनडीह में अवस्थित है. एक समय था राजधानी रांची के बाद करनडीह और आदिवासी भवन नाम काफी सुर्खियों मेें था. अलग झारखंड राज्य बनने के बाद इस भवन में लोगों को आना-जाना कम हुआ और लोग इससे धीरे-धीरे भूलते चले गये. राज्य गठन से पूर्व 1950 के दशक में यह भवन अलग झारखंड राज्य के आंदोलन का केंद्र हुआ करता था.इसी भवन में बैठकर आंदोलन की रणनीति को तैयार किया जाता था. उसके बाद पूरे राज्य में आंदोलन की बिगुल को फूंका जाता था. इसी वजह से करनडीह को झारखंड की राजनीति का गढ़ भी कहा जाता था. वर्तमान समय में झारखंड आंदोलन को सींचने वाला ऐतिहासिक आदिवासी भवन वीरान पड़ा हुआ है. अब इस भवन में जमशेदपुर व आसपास के राजनीति से जुड़े लोग भी आना-जाना नहीं करते हैं.
मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा का यहां हमेशा होता था आना जाना
झारखंड आंदोलन के प्रणेता रहे जयपाल सिंह मुंडा, एनई होरो समेत अन्य कई राजनीतिक लोगों का इस भवन में हमेशा आना जाना होता था. इसी आदिवासी भवन में राजनीतिक मुद्दों पर मंथन होता था. इस भवन में झारखंड कॉ-ऑर्डिनेशन कमेटी की बैठक भी हो चुका है. वहीं ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन का सिंहभूम जिला कमेटी का पहला बैठक भी यहीं हुआ था. जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन आजसू के जिला अध्यक्ष नरेश मुर्मू ने किया था. एनई होरो की झारखंड पार्टी की बैठक भी अक्सर इसी भवन में ही आयोजित किये जाते थे. झारखंड बुद्धिजीवी मंच,झारखंड मजदूर संघ समेत अन्य कई कमेटी भी इसी भवन सें संचालित किये जाते थे.इस आदिवासी भवन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां आदिवासी-मूलवासी समाज राजनीति करने वाले सभी छोटे-बड़े नेता यहां आ चुके हैं.
सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का भी रहा केंद्र
राजनीति के साथ-साथ करनडीह का ऐतिहासिक आदिवासी भवन सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है. इसी आदिवासी भवन से ड्रामाटिक क्लब का संचालन होता था. सैकड़ों जनजातीय नाटकों को इसी भवन में तैयार किया गया है. वहीं आदिवासी पारंपरिक नृत्य व गीत से जुड़ी गतिविधियों का संचालन भी यहीं से होता था. इतना ही नहीं यह भवन खेलकूद करने वाले खिलाड़ियों का भी केंद्र था. यहां उनका एक कार्यालय हुआ करता था.

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