Jamshedpur News: जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने कहा कि मेनहर्ट घोटाला के अभियुक्तों पर कार्रवाई के लिए झारखंड उच्च न्यायालय में दायर उनकी रिट याचिका की सुनवाई के दौरान उन्हें जो निर्देश-सुझाव मिला, उसके मुताबिक वे घोटाले के दोषियों के खिलाफ संबंधित थाना में जाकर प्राथमिकी दर्ज करायेंगे.
हाइकोर्ट में खारिज हो गई थी सरयू राय की याचिका
विधायक ने शनिवार को सोशल मीडिया पर लाइव होकर अपनी बातें रखी. 26 जून को झारखंड हाइकोर्ट ने अपने आदेश में मैनहर्ट मामले में सरयू राय की याचिका को खारिज करते हुए उन्हें तीन विकल्प दिये थे. उसी के मुताबिक वे थाना में जाकर प्राथमिकी दर्ज करायेंगे.
रांची के डोरंडा या धुर्वा थाने में दर्ज कराएंगे प्राथमिकी
सरयू राय ने कहा कि उन्होंने अपने अधिवक्ता के परामर्श पर रांची के डोरंडा अथवा धुर्वा थाना में उच्च न्यायालय के निदेशानुसार प्राथमिकी दर्ज कराने का फैसला किया है. वे मांग करेंगे कि एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने इस मामले में बंद लिफाफा में जो प्राथमिक जांच रिपोर्ट झारखंड हाइकोर्ट को सौंपी है, पुलिस उस रिपोर्ट को एसीबी से प्राप्त करे और उस पर कार्रवाई करे.
एसीबी की प्राथमिक जांच रिपोर्ट में दर्ज हैं अभियुक्तों के नाम
एसीबी ने इस मामले में प्राथमिक जांच कर उनकी रिट याचिका की सुनवाई के समय झारखंड हाइकोर्ट द्वारा मांगे जाने के बाद इसे बंद लिफाफा में न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी. इस प्राथमिक जांच रिपोर्ट में उन सभी अभियुक्तों के नाम हैं, जिनके विरुद्ध कार्रवाई के लिए थाना में एफआइआर करने का निर्देश हाइकोर्ट ने दिया है.
मैनहर्ट के परामर्शी चयन में भारी अनियमितता का है आरोप
विधायक सरयू राय ने कहा कि 26 जून को जब झारखंड हाइकोर्ट ने उनकी रिट याचिका खारिज करने का निर्णय लिया तो घोटालाबाज और उनके समर्थकों ने इसे बड़ी जीत व उनके लिए एक बड़ा झटका बताया. हाइकोर्ट के न्यायाधीश ने उनकी याचिका में उल्लेखित उन बिंदुओं का जिक्र किया है, जिसके अनुसार मैनहर्ट के परामर्शी चयन में भारी अनियमितताएं हुई हैं.
झारखंड हाइकोर्ट में क्यों खारिज हुई सरयू राय की याचिका
श्री राय ने कहा कि उनकी रिट याचिका को न्यायालय ने केवल इस आधार पर खारिज किया है कि इस विषय में 28 सितंबर, 2018 को झारखंड उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीश की खंडपीठ ने पहले ही निर्णय दिया है कि सरकार जांच के निष्कर्षों पर कार्रवाई करे. परंतु तत्कालीन सरकार ने इस पर कार्रवाई नहीं की. इसलिए उच्च न्यायालय का कहना है कि इस मामले में एक बार जब दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने निर्णय दे दिया है, तो उस पर एकल पीठ द्वारा विचार करना उचित नहीं है.